Uttarakhand Glacier Disaster, Jharkhand News, Latehar News, लातेहार (चंद्रप्रकाश सिंह) : उत्तराखंड के चमोली स्थित पावर प्रोजेक्ट में मजदूरी करने गये लातेहार जिला के बारियातू खालसा जागीर के मजदूरों ने बताया कि मौत उनको छूकर निकल गयी. भगवान की कृपा रही कि वे सभी सकुशल अपने घर लौट आये. शुक्रवार को पलामू एक्सप्रेस से लातेहार पहुंचने के बाद सभी अपने घर गये. हालांकि, पहले से ही मोबाइल फोन पर मजदूरों ने अपने लौटने की जानकारी परिजनों को दी थी.
शुक्रवार को रूपलाल सिंह, अंकित सिंह, चंदन सिंह, योगेश्वर सिंह, आनंद सिंह और अमलेश उरांव जैसे ही गांव पहुंचे, गांव में खुशी का माहौल छा गया. कोई अपने पति, तो कोई अपने पुत्र से चमोली में हुए हादसे की जानकारी ले रहा था. काफी देर बाद गांव में सब कुछ सामान्य हो गया. रूपलाल सिंह अपने साला छठनु सिंह के साथ दुबियाखांड में आयोजित 2 दिवसीय मेला देखने चला गया. गांव में महिलाएं धूप तेज होने के बाद एक जगह चटाई बिछाकर आपस में बात करने लगी. रूपलाल सिंह की पत्नी ममता देवी, अंकित सिंह की पत्नी सोनी देवी और सत्येंद्र सिंह की मां कमली देवी ने बताया कि हमलोगों के परिवार के ऊपर आये संकट का दौर गुजर गया.
चमोली में गांव के रूपलाल और योगेश्वर ही सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे. योगेश्वर, आनंद, अमलेश, चंदन और आनंद सिंह ने आप बीती सुनाते हुए कहा कि मौत छूकर निकल गयी, लेकिन सब कुछ पानी का सैलाब बहा ले गया. आगे कहा कि हमलोग गेट पास के इंतजार में थे. पावर प्रोजेक्ट में काम करने के लिए पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है. मालूम हो कि योगेश्वर बाये पैर से आंशिक रूप से दिव्यांग हैं.
मजदूरों ने बताया कि गांव के सभी मजदूर एक साथ थे. तभी पहाड़ टूटने पर ऊपर काम कर रहे नेपाली मजदूरों ने शोर मचाया कि पहाड़ टूट गया है. जब तक हमलोग सब कुछ समझ या देख पाते तब तक पानी का सैलाब सब कुछ बहा ले गया. स्थानीय प्रशासन ने हम सभी को सुरक्षित बाहर निकाला. इसके बाद ठेकेदार ने बस से हरिद्वार भेज दिया. वहां से ट्रेन की यात्रा तय कर डिहरी ओन सोन पहुंचे. उसके बाद पलामू एक्सप्रेस से लातेहार पहुंचे. यात्रा के दौरान ट्रेन में टीटीई और सुरक्षा कर्मियों ने काफी सहयोग प्रदान किया.
मजदूर योगेश्वर सिंह ने बताया कि मनरेगा में काम के लिए जॉब कार्ड बना है. लेकिन, बहुत लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है. उन्होंने कहा कि चमोली जाने से पहले मनरेगा से मेढ़बंदी की योजना मेरे नाम से स्वीकृत हुआ था. मेढ़बंदी में एक सप्ताह काम भी किया, लेकिन मजदूरी नही मिली. मजदूरी मिल जाती, तो शायद बाहर कमाने नहीं जाते.
Posted By : Samir Ranjan.