Varad Chaturthi 2022: आज मनाई जा रही है वरद चतुर्थी, इस दिन जरूर करें इन मंत्रों का जाप
Varad Chaturthi 2022: कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वरद चतुर्थी के नाम से जानते हैं. इस बार पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी आज यानी 6 जनवरी को मनाई जा रही है.
Varad Chaturthi 2022: हर माह की चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है.पौष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वरद चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. आज देश भर में वरद चतुर्थी मनाई जा रही है. इस दिन गणेश भक्त विघ्नहर्ता भगवान गणेश के लिए व्रत (Lord Ganesh Vrat) रखते हैं. विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है. शुभ-लाभ को भगवान गणेश की संतान माना जाता है.
Varad Chaturthi 2022: शुभ मुहूर्त
पौष, शुक्ल चतुर्थीे
प्रारम्भ – 02:34 PM, जनवरी 05
समाप्त – 12:29 PM, जनवरी 06
Varad Chaturthi 2022: पूजा विधि
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इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें
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इसके बाद घर के मंदिर में सफाई कर दीप प्रज्वलित करें
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दीप प्रज्वलित करने के बाद भगवान गणेश का गंगा जल से जलाभिषेक करें
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इसके बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं
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भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें
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भगवान गणेश को दूर्वा अतिप्रिय होता है। जो भी व्यक्ति भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करता है, भगवान गणेश उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं
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भगवान गणेश की आरती करें और भोग लगाएं. आप गणेश जी को मोदक, लड्डूओं का भोग लगा सकते हैं
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इस पावन दिन भगवान गणेश का अधिक से अधिक ध्यान करें
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अगर आप व्रत रख सकते हैं तो इस दिन व्रत रखें
Varad Chaturthi 2022: पूजा मंत्र
इन मंत्रो को बोलन से नौकरी और व्यापार में तरक्की होती है. साथ ही हर मनोकामना की पूर्ति होती है.
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
जाननं भूतगणाधिसेवितं,
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्न,
मामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये
वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा:
ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते
वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
Varad Chaturthi 2022: गणपति स्तुति
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।