अंतरगृही परिक्रमा यात्रा में उमड़ा आस्था का सैलाब, नंगे पांव 25 किमी के सफर पर निकले काशीवासी

काशी की पुरानी परंपरा के अनुसार अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को काशी के अंदर अंदर परिक्रमा यात्रा निकलती है जिसे अंतरगृही यात्रा कहते हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | December 18, 2021 9:53 PM

Varanasi News: वाराणसी में अगहन की अंतरगृही यात्रा के लिए शनिवार की सुबह काशीवासियों ने मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान कर नंगे पांव 25 किलोमीटर लंबी अंतरगृही यात्रा शुरू की. अंतरगृही यात्रा में काशी के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और पुरुष नंगे पांव काशी के अंदर-अंदर परिक्रमा करते हैं. पंचांग के अनुसार आज ही पूर्णिमा लग जाने के कारण यह यात्रा आज ही शुरू हो गयी है.

मार्गशीर्ष यानी अगहन मास की कड़ाके की ठंड के बीच शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी में श्रद्धालु सिर पर गठरी लिए हुए घाटों के किनारे-किनारे होते हुए मणिकर्णिका घाट से अस्सी घाट, जगन्नाथ मंदिर, संकटमोचन, साकेत नगर, खोजवां, लहरतारा, मंडुवाडीह, होते हुए कैंटोनमेंट पहुंचे. चौकाघाट में रात्रि विश्राम के बाद रविवार की सुबह आदिकेशव घाट पर गंगा-वरुणा के संगम में डुबकी लगाकर श्रद्धालु बाटी-चोखा का भोग लगाएंगे. इसके बाद घाटों के सहारे वापस मणिकर्णिका घाट आकर अपनी यात्रा और संकल्प पूरा करेंगे.

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काशी की पहचान वहां के धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन से ही है. अगहन मास के ठंड के बीच हर-हर महादेव शंभु काशी विश्वनाथ गंगे के जयघोष के साथ सिर पर समान लिए नंगे पांव महिला और पुरुष श्रद्धालु बड़े मनोयोग भाव पूर्वक काशी की परिक्रमा पर निकले हैं. इन्हीं की वजह से आज काशी की पहचान है. इन्हीं लोगों के धार्मिक परंपराओं के निर्वहन करने से आज काशी की पहचान बची हुई है.

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काशी की पुरानी परंपरा के अनुसार अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को काशी के अंदर अंदर परिक्रमा यात्रा निकलती है जिसे अंतरगृही यात्रा कहते हैं. पाप और भूलों के प्रायश्चित को काटने के लिए काशी की अंतरगृही यात्रा में शामिल श्रद्धालु चौकाघाट में विश्राम करेंगे.

बढ़ती ठंड के प्रकोप में रात में उपलों के अहरे दहकेंगे और बाटी-चोखा बनेगा. रात्रि विश्राम के बाद श्रद्धालु अपनी यात्रा यहां से फिर शुरू करेंगे. इसे प्रदक्षिणा यात्रा भी कहा जाता है. मान्यता है कि नंगे पांव चलने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है. काशी के पंचांग के अनुसार, अगहन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अंतरगृही यात्रा के साथ पिशाचमोचन स्थित कर्पदीश्वर महादेव के दर्शन का भी विधान है.

इसके पौराणिक महत्व को लेकर श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि त्रेतायुग में माता सीता ने अंतरगृही यात्रा की शुरूआत की थी. तभी से काशी में अंतरगृही यात्रा की परंपरा चली आ रही है. अंतरगृही यात्रा करने से श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. यात्रा की शुरूआत भी माता सीता का ध्यान करके की जाती है. अंतरगृही यात्रा मणिकर्णिका घाट से संकल्प लेकर शुरू होता है.

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मणिकर्णिका घाट से नाथद्वारा नाव द्वारा अस्सी घाट, अस्सी घाट से पैदल जगन्नाथ मंदिर, रामानुज कोट, संकटमोचन, साकेत नगर कॉलोनी, खोजवां, लहरतारा, मडुवाडीह, कैंटोनमेंट होते हुए वरुणा पुल होते हुए यात्रा मणिकर्णिका घाट पर संकल्प छुड़ाकर यात्रा का समापन होता है. शनिवार भोर मे 4 बजे से ही यात्रा शुरू हो गया. यात्रा में शामिल ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं-पुरुष नंगे पांव हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे का जयघोष करते हुए चल रहे थे. भीषण ठंड में भी उनका यह उत्साह देखने लायक बन रहा था.

रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी

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