Varanasi News: जापान में संपन्न हुए 34वें टोक्यो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में वाराणसी की स्ट्रीट डांसर और बुनकर पर आधारित फीचर फिल्म झीनी बीनी चदरिया (द ब्रिटल थ्रेड) की इन फ़िल्म की धूम मची हुई है. 97 मिनट की झीनी बीनी चदरिया फ़िल्म में वाराणासी के मनमोहक घाटों के दृश्य को दिखाया गया है. इस फ़िल्म का प्रीमियर केरल के 26वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में होने जा रहा है. पहली बार इस फ़िल्म के माध्यम से वाराणासी के बुनकरों की जिंदगी और हुनर को पर्दे पर लाने का कार्य किया है.
फिल्म के निर्देशक रितेश शर्मा का बचपन काशी में ही बीता है, उनके पिता यहां रेलवे में कार्यरत थे. इसलिए यहां की गलियों से वह बहुत परिचित हैं और इस शहर से जुड़ा उनका लगाव ही उन्हें इस फ़िल्म को बनाने के लिए प्रेरित करता गया. फ़िलहाल रितेश अभी गोवा में रहते हैं.
रितेश शर्मा की फिल्म झीनी बीनी चदरिया कबीर दास की एक कविता से प्रेरित है. इस कविता में 15वीं सदी के रहस्यवादी कवि ने शरीर की तुलना एक भंगुर धागे से की है. एक तरह से हम सभी आपस में जुड़े हुए हैं. एक धागे से पूरी साड़ी नहीं बन सकती. हमारे सभी काम कभी-कभी उन लोगों पर परिणाम लाते हैं, जिनके अस्तित्व के बारे में हमें जानकारी नहीं है. फिल्म में रानी अपनी बहरी बेटी के बेहतर जीवन के लिए समाज से लड़ती है.
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वहीं, शाहदाब (जिन्होंने शहर में 1992 के दंगे में अपने मां-बाप को खो दिया था) एक इजरायली यात्री के साथ एक अप्रत्याशित दोस्ती शुरू करता है. उनका कहना है कि इस शहर में मंदिरों और मस्जिदों के अलावा भी बहुत कुछ है. यह वह जगह है जहां ठुमरी की शुरुआत हुई थी. यह तुलसी, कबीर, रैदास और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे अनेकों महान विभूतियों का शहर है. हिंदी, अंग्रेजी और हिब्रू में झीनी बीनी चदरिया फिल्म की शूटिंग वाराणसी में उन्हीं जगहों पर की गई है, जहां वह बचपन में घूमते थे.
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रितेश शर्मा के अनुसार, यथार्थवाद में डूबी यह फिल्म अपने केंद्रीय पात्रों स्ट्रीट डांसर, रानी और बुनकर शाहदाब को दो समानांतर दुनिया में रखती है. वाराणसी के लोग अब अपने बुनकरों और नर्तकियों के बारे में बात नहीं करते हैं. हथकरघा बुनकरों को आधुनिकीकरण से खतरा है. स्ट्रीट डांसर्स को शोषण का सामना करना पड़ता है. हम वाराणसी को स्मार्ट सिटी में बदलना चाहते हैं, लेकिन इसका इतिहास खंडहर में है.
रिपोर्ट- विपिन सिंह