Varanasi News: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने संस्कृति संसद के दूसरे दिन बतौर मुख्य वक्ता रुद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन को संबोधित किया. उन्होने कहा कि, भारतीय संस्कृति वह है जिसमें सुदृढ़ करने की प्रक्रिया निरंतर चलती है. यह प्रक्रिया भी सनातन है. जो हम सब की संस्कृति है वही पूरे राष्ट्र की संस्कृति है. इसे दुनिया मानती है. इसी संस्कृति के आधार पर भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है.
आरिफ मोहम्मद ने कहा कि, भारत का यह मत है कि हम किसी को भी बाहर नहीं कर सकते. मानव सेवा ही माधव सेवा होती है. हम सब एक ही आत्मा के बंधन से बंधे हुए हैं. हमारी संस्कृति में विपरित भक्ति की भी व्यवस्था है, यानी जो निंदा करता है, उसे भी अपने साथ लेकर चलिए. धर्म और अर्धम के उलझे आदमी को शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द और संतों की जरूरत होती है.
राज्यपाल ने कहा, आदि शंकराचार्यजी ने शांति की स्थापना के लिए भारत के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए, जो चार वेदों के उपदेश से संचालित होते हैं. परंतु वेद से नहीं बल्कि विचार से एकता सुदृढ़ होगी. विदेशों में बोलने वाले स्वामी विवेकानन्द के विचार सुनकर विश्व के लोगों ने उसे अपनाया, क्योंकि उनके विचार भारतीय संस्कृति से जुड़े थे. हम अपनी संस्कृति पर गर्व करें अहंकार नहीं लेकिन जरूरत इसकी भी है कि थोड़ी शर्म करें. शर्म इसलिए कि हम अपनी संस्कृति को दुनिया में बताने में नाकाम हो रहे हैं.
Also Read: काशी संस्कृति संसद: सलमान खुर्शीद की किताब पर नाराजगी, वक्ताओं ने कहा- हिंदू धर्म हमलावर नहीं
उन्होंने कहा, विद्या और विनय ये दोनों मनुष्य के लिए सबसे बड़ा ज्ञान हैं. सभी जीवों में एक ही परमात्मा का निवास होता है. भारत को नई दिशा दिखाने के लिए दुनिया में संस्कृति नस्ल, भाषा, रूप-रंग से बांटी जाती है, परंतु ऋषि-मुनियों और संतों ने इन सभी को आधार ना मानकर आत्मा को आधार बनाया है. एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं.
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि, आधुनिक लोकतंत्र भले ही पश्चिम की देन है, परंतु भारत में आध्यात्मिक लोकतंत्र हजारों वर्ष पुराना है. इस आध्यात्मिक लोकतंत्र का मूल आधार आत्मा है और यही आत्मत्व सबको एक करती है. उन्होंने कहा कि भारत में उस समय से महिलाओं का सम्मान है जबकि पश्चिम में महिलाओं में आत्मा को न मानने की परम्परा थी. उन्होंने कहा कि समभाव भारत की संस्कृति का मूल आधार है. इसे हमें मजबूत करना चाहिए.
रिपोर्ट- विपिन सिंह