Varanasi News: देश के सभी राज्यों में दशहरा मनाने के बाद लोग अपनी दिनचर्या पर लौट आते हैं, मगर इस बीच प्रदेश का एक जिला ऐसा है जो भरत-मिलाप के साथ विजयादशमी का आयोजन सम्पन्न मानता है. दो भाइयों के मिलन का गवाह बनने के लिये हज़ारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं. शनिवार को उसी भरत-मिलाप का आयोजन किया गया था. कोविड प्रोटोकॉल के बाद दो वर्षों बाद भरत-मिलाप की लीला हुई थी.
वाराणसी को धर्म-संस्कृति और तीज-त्योहारों का शहर कहा जाता है. यहां की गलियों में सालभर त्योहारों की रौनक रहती है. नवरात्रि और दशहरा के बाद रावणदहन के ठीक दूसरे दिन यहां पर भरत-मिलाप का उत्सव भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां पर इस पर्व का आयोजन कई अलग-अलग स्थानों पर होता है, लेकिन चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित ऐतिहासिक भरत-मिलाप को देखने के लिए लाखों की भीड़ उपस्थित रहती है. लीलास्थल पर सुरक्षा-व्यवस्था के लिए कई थानों की फ़ोर्स के साथ क्यूआरटी और पीएसी के जवान तैनात किये गये थे. इस दौरान ट्रैफिक पुलिसकर्मी ड्रोन कैमरे के साथ मुस्तैद नज़र आये.
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शनिवार शाम करीब 4:44 बजे जैसे ही अस्तांचल गामी सूर्य की किरणें भरत-मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ीं तो ऐसा लगा कि पूरा समां थम सा गया है. एक तरफ भरत और शत्रुघ्न अपने भाइयों के स्वागत के लिए जमीन पर लेट जाते हैं तो दूसरी तरफ राम और लक्ष्मण वनवास ख़त्म करके उनकी और दौड़ पड़ते हैं. चारों भाइयों के मिलन के बाद जय-जयकार शुरू हो जाती है. पूरा लीलास्थल ‘बोलो, राज रामचंद्र की जय’ के घोष से गूंज उठा. लगभग 500 वर्ष पुराने इस लीला को जीवंत होते देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ उपस्थित थी.
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उधर, जब काशी नरेश लीलास्थल पहुंचे तो काशीवासियों ने हर-हर महादेव के जयघोष के साथ उनका स्वागत किया. महाराज बनारस ने सोने की गिन्नियां भगवान स्वरूपों को दीं. इसके बाद यादव बंधुओं ने परम्परा का निर्वहन करते हुए भगवान श्रीराम का पुष्पक विमान अपने कंधों पर उठा लिया और मैदान के चारों तरफ घुमाया और अयोध्या की तरफ रवाना हो गए. आस्था के अटूट इस पर्व को देखने के लिए काशी के लोग सालभर तक इंतजार करते हैं. काशी ही नहीं, जनपद के बाहर से भी लोग इस आयोजन को देखने के लिये आते हैं. वहीं, आसपास के स्थलों पर मेला लगा रहता है.
रिपोर्ट- विपिन सिंह