Varuthini Ekadashi 2022: वरूथिनी एकादशी 26 अप्रैल 2022 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा इस दिन भगवान विष्णु की पूजन किया जाता है. वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की तिथि को आने वाली एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है.यह व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है.बहुत ही कल्याणकारी व्रत होता है तथा सुख की प्राप्ती होती है.
27 अप्रैल 2022 दिन बुधवार समय 6:44से लेकर 7:54 मिनट तक है
हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है. व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए. कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए.
7 अप्रैल 2022 दिन बुधवार
समय 6:44 मिनट सुबह
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व्रत के एक दिन पहले सायंकाल से पहले भोजन करे
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वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के पीला वस्त्र धारण किये जाते हैं.
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दूसरे का दिया हुँआ शहद ,अन्न,मसूर की दाल ,चना ,या अन्य प्रकार की वस्तुओं का उपयोग नही करे
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व्रत करने वाले दिन मे स़िर्फ एक बार खाना खायेंगे कांसे के बर्तन मे खाना नही खाना है.
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यदि घर के पास पीपल का पेड़ हो, तो उसकी पूजा भी की जाती है और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाया जाता है.तथा पीले फूल चढ़ाया जाता है.
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भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए, धन के साथ-साथ सुख और समृद्धि की भी प्राप्ति होती है.
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व्रत के रात में भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना की जाती है.तथा जागरण किया जाता है
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अगले दिन सुबह स्नान करके पूजा की जाती है और किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है.
भगवान विष्णु के लिए पीला वस्त्र श्री विष्णु जी की मूर्ति, फूलों की माला, नारियल, सुपारी, धूप, दीप तथा घी कपूर पंचामृत, अक्षत, तुलसी पत्र, चंदन, कलश, प्रसाद के लिए मिठाई,ऋतुफल इत्यादि
वैशाख मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया होता है एकादशी का व्रत रखने से कष्टकारी समय को भी बदला जा सकता है. इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन में सुख समृद्धि, और सौभाग्य प्राप्त करते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करते हैं. पूजा संपन्न होने के बाद अपने यथाशक्ति के अनुसार व्रत रखने वाला व्यक्ति दान पुण्य करता है. इस पावन दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वरुथिनी एकादशी को दुख और कष्ट मुक्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना गया है.जिनको स्वास्थ सम्बन्धी समस्या है या यमराज की डर सता रही हों उन्हें यह पूजा जरूर करना चाहिए भक्त सच्चे मन से उपवास, दान, तर्पण और विधि विधान से पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. उनके सभी पापों का अंत होता है. जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान मिलता है,सुख समृधि मिलती है.
भगवान श्री कृष्ण ने यह कथा युधिष्ठर के आग्रह करने पर सुनाई थी. उन्होने कहा था कि बहुत समय पहले की बात है नर्मदा किनारे एक राज्य था जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे. राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे. वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे. एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा. लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई.
विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया. लेकिन तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था. राजा बहुत दुखी थे दर्द में थे. भगवान विष्णु ने कहा वत्स विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि वरुथिनी एकादशी कहलाती है पर मेरे वराह रूप की पजा करना. व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे. भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है. इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी. भगवन की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला हो. वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया. अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद्भक्ति में लीन रहने लगा.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594 /9545290847