प्रख्यात जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर जी गिरिडीह के मधुबन में रूके थे दो माह, ऐसी थी उनकी लाइफ स्टाइल

विद्यासागर जी महाराज सन 1983 में सम्मेद शिखर आये थे. लगभग दो माह तक मधुबन में रुकने के बाद इसरी के लिए विहार कर गये थे. इसरी में आचार्य श्री ने एक चातुर्मास किया था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2024 5:59 AM

प्रख्यात जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार रात करीब 2:30 बजे छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़-राजनंदगांव में अंतिम समाधि ले ली. 18 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार हुआ. जैन मुनि ने डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में आचार्य पद का त्याग करने के बाद तीन दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था. मुनि जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था. उन्होंने 22 साल की उम्र में घर-परिवार छोड़ दीक्षा ली थी. 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली. दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की.

1983 में मधुबन में रुके थे दो माह

रांची/पीरटांड़ (गिरिडीह)
विद्यासागर जी महाराज सन 1983 में सम्मेद शिखर आये थे. लगभग दो माह तक मधुबन में रुकने के बाद इसरी के लिए विहार कर गये थे. इसरी में आचार्य श्री ने एक चातुर्मास किया था. विद्यासागर जी महाराज को जब मन करता, वे दूसरे स्थान के लिए विहार कर जाते थे. शिखरजी में प्रवेश के बाद दो माह तक रुकने के बाद अचानक आचार्यश्री इसरी के लिए विहार कर गए थे. जैन समाज के लोगों ने बताया कि श्री विद्यासागर जी महाराज ने कभी कोई रस का सेवन नहीं किया. कभी कोई दवाइयां नहीं ली. लकड़ी के पाटे पर सोते थे. कभी कोई ओढ़ना नहीं लिया.

उदासीन आश्रम में पांच मुनियों ने ली थी दीक्षा

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का इसरी बाजार स्थित श्री पारसनाथ जैन दिगंबर शांति निकेतन उदासीन आश्रम से गहरा संबंध रहा. साल 1983 में विद्यासागर जी महाराज उदासीन आश्रम पहुंचे थे. इन्होंने यहां नौ महीने की साधना की. इस दौरान उन्होंने अपने शिष्यों को शिक्षा-दीक्षा दी. आचार्यश्री के सान्निध्य में शांति निकेतन उदासीन आश्रम में 1983 में दीक्षा कार्यक्रम हुआ था, जिसमें पांच मुनियों ने दीक्षा ली थी. दीक्षा लेने वालों में पूज्य मुनि सुधा सागर जी, समता सागर जी, स्वभाव सागर जी, समाधि सागर जी और सरल सागर जी शामिल थे. इसरी बाजार उदासीन आश्रम में साधना कर रहे पंकज भैया ने बताया कि आचार्य भगवन गुरुवर विद्यासागर जी महाराज सभी के गुरु थे. सिर्फ जैन धर्म ही नहीं, अपितु समस्त जनमानस के वह संत थे. उन्होंने कहा कि आचार्यश्री ने धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने कार्यों से लोगों को प्रेरणा दी. अपने जीवन में इस तरह के कार्यों को किया. बंगाल के लोगों को धर्म से जोड़ने को लेकर बहुत बड़ा उपक्रम किया था. विद्यासागर जी महाराज से उनके गृहस्थ आश्रम के पिता मुनि माली सागर जी की मुलाकात शांति निकेतन आश्रम में हुई थी और यहां रहकर उन्होंने सभी को धर्म का उपदेश दिया था. सभी लोगों के अंदर, संयम, आचरण की प्रेरणा उन्होंने दी. लोगों को धर्म से जोड़ने का कार्य किया. उदासीन आश्रम इसरी में इसका लाभ जनमानस को मिला.

महाराज जी के कमरे में आज भी साधक करते हैं साधना


संयुक्त बिहार, बंगाल, एमपी सहित कई प्रांतों और विदेशों के भी लोग इनकी सेवा कर अपने जीवन काे सार्थक करते थे. पूरे जीवन में समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए कार्य किये. समाज के लोगों का कहना है कि 1983 में विद्यासागर जी महाराज शांति निकेतन उदासीन आश्रम पहुंचे. जैन परंपरा के मुताबिक कर-साधना प्रवचन हुआ. इससे लोग लाभान्वित हुए. संयुक्त बिहार के राज्यपाल एआर किदवई 1983 में महाराज से मिलने उदासीन आश्रम पहुंचे थे. जब विद्यासागर महाराज इसरी बाजार के उदासीन आश्रम पहुंचे, तो जैन धर्म के लोगों में काफी खुशी थी. आश्रम में बने ऊपरी तल के एक कमरे में महाराज ने 9 महीने की अखंड साधना की थी. उसी कमरे में आज भी कई साधक साधना करते हैं.

कभी धन को नहीं किया स्पर्श

मुनि जी दिनभर में सिर्फ एक बार एक अंजुली पानी पीते थे. खाने में सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी लेते थे. आजीवन नमक, चीनी, फल, हरी सब्जियां, दूध, दही, सूखे मेवे, अंग्रेजी दवाई, तेल, चटाई का त्याग किया. इसके अलावा थूकने का भी त्याग रखा. आजीवन सांसारिक और भौतिक पदार्थों का त्याग कर दिया. हर मौसम में बिना चादर, गद्दे, तकिए के सख्त तख्त पर सिर्फ एक करवट में शयन करते थे.

350 से अधिक लोगों को दीक्षा दी

जैन मुनि विद्यासागर जी कभी भी और कहीं भी यात्रा के लिए निकल पड़ते थे. इसके लिए पहले से कभी योजना नहीं बनायी. अक्सर नदी, झील, पहाड़ जैसे प्राकृतिक जगहों पर ठहरते और साधना करते. आचार्य विद्यासागर महाराज अकेले ऐसे मुनि हैं, जिन्होंने संभवत: पूरे भारत में अकेले 350 से अधिक दीक्षा दी है. 130 मुनि दीक्षा, 172 आर्यिका दीक्षा, 56 एकल दीक्षा, 64 क्षुल्लक दीक्षा और तीन क्षुल्लिका दीक्षा दी. 
पैदल ही पूरे देश का भ्रमण किया. मुनि जी ने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया. उनकी तपस्या को देखते हुए श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने 22 नवंबर 1972 को उन्हें आचार्य पद सौंपा था. आचार्य विद्यासागर के पिता का नाम श्री मल्लप्पा था, जो बाद में संन्यास लेकर मुनि मल्लिसागर बने. माता का नाम श्रीमंती था, जो आगे आर्यिका समयमति बनीं. मुनि उत्कृष्ट सागर जी दिवंगत विद्यासागर जी के बड़े भाई हैं. वहीं, भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने भी आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण कर लिया है. अनंतनाथ जी अब मुनि योगसागर जी हैं और शांतिनाथ जी मुनि समयसागर जी के नाम से जाने जाते हैं. आचार्य विद्यासागर पूरे भारत के संभवत: ऐसे अकेले आचार्य रहे, जिनका पूरा परिवार संन्यास ले चुका है. 

100 से अधिक शोधार्थी कर चुके हैं पीएचडी  

आचार्य जी संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी और कन्नड़ में पारंगत थे. जैन धर्म और दर्शन का गहन अध्ययन किया. हिंदी और संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे हैं. 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य पर पीएचडी किया है. आचार्यश्री ने काव्य मूकमाटी की भी रचना की है, जिसे कई संस्थानों में स्नातकोत्तर के हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. 

दान-दक्षिणा में कभी भी पैसे नहीं लिये

आचार्य विद्यासागर जी धन संचय के खिलाफ थे. दान-दक्षिणा में भी कभी भी पैसे नहीं लिये. ना ही कोई बैंक अकाउंट खुलवाया और ना ही ट्रस्ट बनाया. लोगों का तो यहां तक कहना है कि आचार्यश्री ने पैसे को कभी हाथ भी नहीं लगाया. उनके नाम पर यदि कोई दान देता भी था, तो वे समाज सेवा के लिए दे देते थे.

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