लोहरदगा में ब्रिकेटिंग प्लांट ने बदली ग्रामीणों की तकदीर, संवरने लगे हैं जीवन स्तर

लोहरदगा के तिसिया गांव में ब्रिकेटिंग प्लांट की स्थापना की गई है. इस प्लांट की स्थापना से ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिल रहा है. इसके साथ ही जंगलों से पेड़ों की अवैध कटाई में भी कमी आयी है. गांव में स्थापित ब्रिकेटिंग प्लांट से सैकड़ों ग्रामीणों की जिंदगी खुशहाल हो गई है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 24, 2023 12:00 PM
an image

लोहरदगा, संजय कुमार: लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड अंतर्गत पाखर पंचायत के तिसिया गांव में स्थापित ब्रिकेटिंग प्लांट ना सिर्फ ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने में कारगर साबित हो रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी सहायक साबित होता जा रहा है. इससे तिसिया सहित आसपास के कई गांवों के ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मुहैया होने से काफी हद तक पलायन पर भी विराम लगा है. वहीं ब्रिकेटिंग प्लांट के माध्यम से जंगलों में पेड़ों की हो रही कटाई पर कमी होने की संभावना जतायी जा रही है.

मालूम हो कि तिसिया गांव में गरीबों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से तत्कालीन उपायुक्त दिलिप कुमार टोप्पो की पहल पर साल 2020 में सरकार द्वारा ब्रिकेटिंग प्लांट की स्थापना की गयी है. जबकि हिंडाल्को कंपनी की सीएसआर मद की 7,87,300 राशि से ब्रिकेटिंग प्लांट का शेड निर्माण कराया गया है. यह ब्रिकेटिंग प्लांट क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए कई मायनों में खास है. रोज कमाने और खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों के अलावा गरीबों के लिए यह वरदान साबित हो रहा है.

ब्रिकेटिंग प्लांट लगने से ग्रामीणों की बढ़ती आमदनी के साथ ही जंगलों में लगने वाली आग के मामलों में भी अप्रत्याशित कमी हुई है. सरकार की पहल पर यहां ना केवल कोयला का विकल्प तैयार हुआ, बल्कि इससे स्थानीय युवाओं के साथ महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है. जिससे ग्रामीणों की माली हालत में बदलाव के साथ-साथ जीवन स्तर में भी सुधार हो रहा हैं. अब यहां के लोग अपने परिवार का बेहतर जीविकोपार्जन कर बच्चों को अच्छी शिक्षा व्यवस्था मुहैया कराने की दिशा में भी सक्षम हो रहे हैं.

Also Read: आज दोपहर 1 बजे के बाद रांची के इस रास्ते से न निकलें, हो जाएंगे परेशान, जानिए वजह
क्या है ब्रिकेटिंग प्लांट

तिसिया गांव में स्थापित ब्रिकेटिंग प्लांट कोयला के विकल्प के रूप में तैयार किया गया है, जहां सुखी पत्तों से लकड़ी तैयार किया जाता हैं और ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. पतझड़ के इस मौसम में ग्रामीण और जंगली इलाकों में आसानी से सूखी पत्तियां उपलब्ध हो जाती हैं. ग्रामीण इन सुखी पत्तियों को चुनकर ब्रिकेटिंग प्लांट में बिक्री करते हैं. प्लांट में उत्पादन शुरू होने के बाद पत्ते चुनने के कार्य में जुटे ग्रामीण प्रतिदिन 250-300 रुपए पत्ते बेचकर आसानी से कमा रहे हैं. इससे सैकड़ों ग्रामीणों के जीवन स्तर संवरने लगे हैं.

दो रुपये किलो की दर से होती है पत्तों की खरीदारी

तिसिया गांव में स्थापित ब्रिकेटिंग प्लांट में ग्रामीणों से 2 रुपये प्रति किलो की दर से सूखे पत्तों की खरीदारी की जाती है. इस कार्य में तिसिया गांव के अलावा आसपास के सलैया, काशीटांड, हुटाप, मसुरिया खाड़ जैसे दर्जनों गांवों के सैकड़ों ग्रामीण जुटे हैं. सूखे पत्तों को चुनने के कार्य में आमतौर पर सुदूर ग्रामीण इलाकों में निवास करने वाली महिलाएं और बच्चियां जुड़ी हैं. इस कार्य में महिलाओं के साथ पुरुष भी हाथ बटा रहे हैं. किसी-किसी परिवार में परिवार के सभी सदस्य पत्ते बेचने के कार्य में जुटे हैं.

उत्पादन से अधिक है ब्रिकेट की मांग

ब्रिकेटिंग प्लांट में उत्पादित ब्रिकेट की मांग बाजार में उत्पादन से अधिक है. ब्रिकेटिंग प्लांट के अध्यक्ष राजेंद्र यादव ने बताया प्लांट की उत्पादन क्षमता को देखें तो प्रति घंटा 700 किलो और औसतन प्रतिदिन 6-7 क्विंटल सूखे पत्तों से लकड़ी तैयार जाती है. ब्रिकेटिंग प्लांट में बने ईंधन का उपयोग ना सिर्फ घरेलू कार्यों में होता है, बल्कि ईंट भट्ठों और होटल संचालकों के बीच भी इसकी काफी मांग है. 2 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदारी की गई सूखे पत्तों को प्लांट में लकड़ी तैयार करने बाद 5 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जाता है.

Also Read: Sarhul Festival: सिरमटोली सरना स्थल को बचाने के लिए हुई थी सरहुल शोभायात्रा की शुरुआत
बेहतर उत्पादन के लिए निर्बाध बिजली जरूरी

बताया जाता है कि ब्रिकेटिंग प्लांट के समीप लगाए गए ट्रांसफार्मर खराब हो जाने के बाद उत्पादन कुछ दिनों तक बिल्कुल ठप रहा, लेकिन हाल के दिनों में विद्युत बहाल होने के बाद उत्पादन फिर से शुरू हो गया है. इस कार्य से जुड़े ऑपरेटरों का कहना है कि निर्बाध रूप से बिजली की आपूर्ति होती रही तो उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी. यहां श्रम शक्ति की भी कमी नहीं है और सूखे पत्तों को बारिश से बचाव के लिए शेड की भी बेहतर व्यवस्था की गयी है.

प्लांट मशीन संचालन के लिए लगाए गए 12 ओपरेटर

ब्रिकेट ईको-फ्रेंडली होने के साथ-साथ ताप में भी कोयला की तुलना में बेहतर है. इसमें ईंधन का खर्च भी कम पड़ता हैं. ब्रिकेटिंग प्लांट को 12 ऑपरेटर के माध्यम से संचालित किया जा रहा है. वहीं इसकी देखरेख के लिए समिति गठित कर अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष बनाये गए हैं.

रोजगर के नए साधन से ग्रामीण प्रफुल्लित

ब्रिकेटिंग प्लांट से तिसिया गांव सहित आस-पास के 15-20 गांवों के ग्रामीणों को रोजगार मिल गया है, सूखे पत्तों को बेचने पर उन्हें हाथों-हाथ दो रुपये प्रति किलो की दर पर भुगतान किया जा रहा है. इस कार्य के माध्यम से लोगों की दैनिक आय में बढ़ोतरी हो रही है. वहीं दूसरी ओर इस ईंधन के प्रयोग से जंगल में सूखे पत्तों के कारण लगने वाली आग, जलावन के लिए लकड़ी की अवैध कटाई पर रोक लगी है. अपने ही गांव घरों में रोजगर के नए साधन से ग्रामीण प्रफुल्लित हैं.

Also Read: सरहुल शोभायात्रा निकलने पर कटेगी बिजली, अलर्ट रहेंगे कर्मी, परेशानी होने पर इन नंबरों पर करें कॉल
ब्रिकेटिंग प्लांट से लाभान्वित हो रहे ग्रामीण

ब्रिकेटिंग प्लांट समिति के अध्यक्ष राजेंद्र यादव ने बताया कि ब्रिकेटिंग प्लांट से काफी लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है. वहीं प्रदूषण में भी कमी आई है. यह प्लांट गरीबों के लिए वरदान साबित हो रहा है. इसकी उपयोगिता को देखते हुए जिले के अन्य प्रखड़ो में भी ब्रिकेटिंग प्लांट स्थापित करने की जरूरत है. जिससे दूसरे प्रखडों के लोगों को भी इसका लाभ मिल सके.

क्या कहती हैं गांव की महिलाएं

रोजगर के नए साधन उपलब्ध होने के बाद सूखे पत्तों के चुनने के कार्य से जुड़ी तिसिया गांव की महिला महंती देवी बताती हैं कि प्लांट लगाए जाने के बाद अब रोजगार मिलने की चिंता दूर हुई है. अपने गांव-घरों के आसपास ही काम मिल जा रहा है. उन्होंने बताया कि वे आसानी से डेढ़ से दो क्विंटल सूखे पत्तों को एकत्रित कर बिक्री कर लेती हैं. इस काम में परिवार के 4-5 अन्य सदस्यों के जुड़ जाने से आर्थिक तंगी भी दूर हुई है. सुनीता हांसा, मालती उरांव, बुधनी देवी, आशा देवी, फूलों देवी, मनियारो उरांव जैसी कई महिलाओं ने गांव और ग्रामीणों के विकास के लिए ब्रिकेटिंग प्लांट की स्थापना को सहायक बताया.

Exit mobile version