हावड़ा.सांकराइल ब्लॉक के सारेंगा गांव में अधिकतर लोगों ने रसोई गैस सिलिंडर का उपयोग करना बंद कर दिया है. आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीणों ने अब ईंधन के तौर पर गुल (एक तरह का कोयला) को चुना है. ये गुल पर खाना बना रहे है. एकाध घरों में ही सिलिंडर का उपयोग होता है, लेकिन इन घरों में भी गैस की खपत बहुत कम है. एक सिलिंडर चार से पांच महीने तक चलता है.
गुल का उपयोग फिर से शुरू होने पर पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि पर्यावरण को लेकर एक ओर जहां जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, वहीं ये लोग गुल से खाना बनाकर पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं. पर्यावरणविद सुभाष दत्त ने कहा कि इससे प्रदूषण बढ़ेगा. प्रशासन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
जानकारी के अनुसार, सांकराइल ब्लॉक स्थित सारेंगा सहित अन्य गावों में जूट मिलों में काम करने वाले श्रमिक और दिहाड़ी मजदूर रहते हैं. आय कम होने के कारण इन लोगों ने गैस सिलिंडर पर खाना बनाना बंद कर दिया है. इनका कहना है कि एक सिलिंडर की कीमत 1100 रुपये हैं. ऐसे में उनके लिए गैस पर खाना पकाना संभव नहीं है. सिलिंडर की कीमत जब 500 से 600 रुपये तक थी, तब तक उनलोगों ने गैस सिलिंडर का उपयोग किया. लेकिन अब यह संभव नहीं हो रहा है.
ग्रामीणों ने बताया कि 400 से 500 रुपये का गुल खरीदने पर उनलोगों एक माह का काम निकल जाता है. साथ ही प्रति माह 500 से 600 रुपये की बचत भी हो रही है. जूट मिल में काम करने वाले सपन चौधरी ने बताया कि जिस तरह से रसोई गैस सिलिंडर की कीमत बढ़ी है, ऐसे में अब इसका इस्तेमाल करना हमलोगों के लिए असंभव है. इसलिए फिर से गुल का उपयोग कर रहे हैं.