हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. साल के आखिरी महीने की विनायकी चतुर्थी 7 दिसंबर को है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी कहते हैं.
विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 07 दिसंबर 2021 (मंगलवार) तड़के 02 बजकर 31 मिनट
मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिखि समाप्त- 07 दिसंबर 2021 (मंगलवार) रात 11 बजकर 40 मिनट पर
: सुबह उठकर स्नानादि करने के बाद पूजा स्थान की साफ-सफाई कर गंगाजल छिड़कें.
: भगवान गणेश को वस्त्र पहनाएं और दीप प्रज्वलित करें.
: सिंदूर से गणेश का तिलक करें व फूल चढ़ाएं.
: गणेश को 21 दूर्वा की गांठ अर्पित करें.
: गणेश को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं.
: पूजा करने के बाद आरती करें.
विनायकी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से गणेश की पूजा की जाती है. विशेष मंत्रों के जाप और गणेश स्तूति के पाठ से बप्पा प्रसन्न होते हैं. गणेश के सामने कुछ खास मंत्रों के जाप से जीवन में आ रही समस्याएं खत्म होती हैं. आगे पढ़ें गणेश मंत्र और स्तूति.
गणेश मंत्र
1. ‘ॐ वक्रतुण्डाय हुं।’
2.ॐ गं गणपतये नम:।’
3. ‘ॐ मेघोत्काय स्वाहा।’
4. ‘ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लीं गणपति वर वरद सर्व लोकं में वशमानय स्वाहा।’
5. ‘ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा।’
6. ‘ॐ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा।’
7. ‘ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा’
8. ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।’
गणेश स्तुति
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अनेकदंतं भक्तानां एकदन्तं उपास्महे ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥