Swami Vivekananda Jayanti: स्वामी विवेकानंद का धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी से खास रिश्ता था. स्वामी विवेकानंद का जन्म भी काशी के अटूट बंधन से जुड़ा है. विवेकानंद की मां भुनेश्वरी देवी ने गंगा नदी किनारे स्थित सिंधिया घाट पर शिव के मंदिर (जिसे आत्मविरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है) में कठोर तपस्या की थी. जिसके बाद स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था. अपनी मृत्यु के अंतिम क्षणों में भी स्वामी विवेकानंद ने बनारस की अंतिम यात्रा साल 1902 में की थी.
बनारस यात्रा में स्वामी विवेकानंद बीमार थे. वो अर्दली बाजार स्थित गोपाल लाल विला (एलटी कॉलेज परिसर) में ठहरे थे. इस दौरान एक महीने स्वास्थ्य लाभ किया. कुछ दिन बाद स्वास्थ्य खराब होने के कारण स्वामी जी बेलूर मठ चले गए. 4 जुलाई 1902 को महामानव विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए. 39 वर्ष, 5 माह और 24 दिन की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया. काशी प्रवास के दौरान ही विवेकानंद ने ऐतिहासिक शिकागो यात्रा करने का निर्णय भी लिया था. एक तरह से देखा जाए तो काशी नगरी स्वामी विवेकानंद की शिकागो की यात्रा से लेकर जन्म-मत्यु से खास तौर पर जुड़ी रही थी.
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1889 में विवेकानंद ने ‘शरीर वा पातयामि, मंत्र वा साधयामि’ (आदर्श की उपलब्धि करूंगा, नहीं तो देह का ही नाश कर दूंगा) की प्रतिज्ञा ली थी. यह ध्येय वाक्य भी काशी की ही उपज थी. जन्म के उत्थान के बाद से विवेकानंद का काशी से जुड़ाव निरंतर चलता रहा. 1887 में पहली बार 24 वर्ष की अवस्था में विवेकानंद बनारस आए. गोलघर स्थित दामोदर दास की धर्मशाला में ठहरे. सिंधिया घाट पर गंगास्नान के दौरान बाबू प्रमदा दास मित्रा से उनका सामना हुआ. बगैर शब्दों के दोनों के बीच संवाद हुआ. प्रमदा दास स्वामीजी को अपने घर ले आए. इसके बाद काशी में उनका आगमन होता रहा.
वो औरंगाबाद सोनिया रोड पर शिष्य मां बसुमति के यहां भी ठहरे थे. जिस पलंग पर विवेकानंद ने आराम किया था, उसे आज भी सुरक्षित रखा गया है. आज भी इस पलंग की पूजा और आरती की जाती है. ऐसी तमामं स्मृतियां काशी के ऐतिहासिक गर्भ में संजोई हुई हैं. स्वामी जी का काशी आने का सिलसिला निरंतर कायम रहा. वो पांच बार यहां आए. काशी के सीटीई परिसर स्थित स्वामी गोपाल लाल विला में भी स्वामी विवेकानंद ने प्रवास किया था. इस परिसर में शिक्षा विभाग के कई दफ्तर हैं. गोपाल लाल विला में प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानंद ने कुल सात पत्र लिखे थे. आज यह स्थल इस वक्त पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुका है. यह दो मंजिला भवन अवशेष के रूप में खड़ा है.
बीएचयू की स्थापना में भी विवेकानंद की ही प्रेरणा थी. बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय के प्रो. कौशल किशोर मिश्र ने बताया कि महामना मदन मोहन मालवीय को यूनिवर्सिटी की स्थापना की प्रेरणा स्वामी विवेकानंद से मिली थी. 1890 के इलाहाबाद कुंभ में विवेकानंद से महामना की मुलाकात हुई थी. इसी दौरान उन्होंने महामना को काशी में यूनिवर्सिटी स्थापना की बात कही. इसके बाद महामना ने काशी में यूनिवर्सिटी बनाने का संकल्प लिया. विवेकानंद ने काशी में रहकर कई प्रकल्पों की शुरुआत की. यहीं उन्होंने आरोग्य सेवा सदन की स्थापना का सपना देखा था, जो 1902 में पूरा भी हुआ.
स्वामी विवेकानंद की स्मृतियों पर अध्ययन कर रहे नित्यानंद राय ने बताया कि उन्होंने काशी में अंतिम प्रवास के दौरान गोपाल लाल विला से सात पत्र लिखे थे. 9 फरवरी 1902 को स्वामी स्वरूपानंद को लिखे पत्र में स्वामीजी ने कहा था कि काशी प्रवास के दौरान मुझे बौद्धधर्म के बारे में बहुत सा ज्ञान प्राप्त हुआ. बौद्धों ने शैवों के तीर्थस्थल को लेने का प्रयास किया. असफल होने पर उसी के नजदीक नए स्थान बनाए, जैसे बोध गया, सारनाथ आदि. शिष्य चारू को कहते हैं कि वो ब्रह्मसूत्र का अध्ययन करें और मूर्खतापूर्ण बातों से प्रभावित ना हो. वो आगे लिखते हैं कि काशी में अच्छा हूं. इसी तरह मेरा स्वास्थ्य सुधरता जाएगा तो मुझे बड़ा लाभ होगा. अगली लाइन में वो लिखते हैं कि बौद्ध धर्म और नव हिंदू धर्म के संबंध के विषय में मेरे विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है. इन विचारों को निश्चित रूप देने के लिए कदाचित मैं जीवित ना रहूं, उसकी कार्यप्रणाली का संकेत छोड़ जाऊंगा.
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विवेकानंद ने दूसरा पत्र 10 फरवरी को ओली बुल को लिखा था. इसमें काशी के कलाकारों की प्रशंसा की थी. 12 फरवरी को भगिनी निवेदिता को आशीर्वाद देते हुए लिखा था कि श्रीरामकृष्ण सत्य हों तो उन्होंने जिस प्रकार मेरे जीवन में मार्गदर्शन किया है ठीक उसी प्रकार तुम्हें भी मार्ग दिखाकर अग्रसर करते रहें. चौथे पत्र में स्वामी ब्रह्मानंद को 12 फरवरी को लिखते हुए आदेशित किया कि प्रभु के निर्देशानुसार कार्य करते रहना.
ब्रह्मानंद को लिखे पत्र में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि कलकत्ता और इलाहाबाद में प्लेग फैल चुका है, काशी में फैलेगा कि नहीं, नहीं जानता. सातवें और अंतिम पत्र में 24 फरवरी को ब्रह्मानंद को संबोधित करते हुए स्वामी जी ने पत्र का जवाब नहीं लिखने पर नाराजगी जताते हुए लिखते हैं कि एक मामूली सी चिट्ठी लिखने में इतना कष्ट और विलंब. तो, मैं चैन की सांस लूंगा. कौन जानता है उसके मिलने में कितने महीने लगते हैं. और 4 जुलाई 1902 को महामानव स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए.
(रिपोर्ट:- विपिन सिंह, वाराणसी)