शिराली मात्र 36 वर्ष की थीं, जब सर्वाइकल कैंसर से उनकी मौत हो गयी. वे भारत की उन 77,348 महिलाओं में से एक थीं जिनकी मौत 2022 में सर्वाइकल कैंसर से हुई. उनका कैंसर उसी वर्ष डायग्नोस हुआ और वे जिंदगी की जंग कुछ ही महीने में हार गयीं. उस वर्ष भारत में सर्वाइकल कैंसर के कुल 1,23,907 मामले रजिस्टर्ड हुए थे. उनकी मौत से पहले के 48 घंटे काफी कष्ट में गुजरे. वे वेंटिलेटर पर पड़ी रहीं. खाना-पानी तो सप्ताह भर पहले से बंद था. हीमोग्लोबिन छह से भी कम हो गया. सोडियम, पोटैशियम समेत शरीर के लिए जरूरी सभी आवश्यक तत्व अपने न्यूनतम स्तर से काफी नीचे चले गये. ऑक्सीजन का सेचुरेशन गिरने लगा. मरते समय वे अपने सात वर्ष के इकलौते बेटे को भी नहीं देख सकीं. शिराली एक छद्म नाम है, जो मैंने वास्तविक पहचान गोपनीय रखने के वास्ते बदल दिया है. उनसे मेरी भेंट अस्पताल आते-जाते हुई थी. वह कब पारिवारिक पहचान में बदल गयी, इसका आभास ही नहीं हुआ, क्योंकि हमारी पीड़ा एक-सी थी. पर अब मैं जिस नाम का उल्लेख करने जा रहा हूं, उसे बदलने की आवश्यकता नहीं. क्योंकि उन्हें अपनी पहचान नहीं छिपानी. वे बड़े गर्व (फूहड़ता) से अपने नाम की मुनादी करती हुई दावा कर रही हैं कि वे सर्वाइकल कैंसर की जागरूकता के अभियान में शामिल हैं. यह नाम है, पूनम पांडेय. मायानगरी मुंबई में रहने वाली एक मॉडल. उनका दावा है कि उनकी मां को भी कैंसर था. लिहाजा वे कैंसर की पीड़ा समझती हैं. यदि यह सच है, तो मुझे और मुझ जैसे लाखों लोगों को उनकी समझ पर तरस आता है. ईश्वर उन्हें क्षमा करें, सही समझ दें और भगवान न करे कि उन्हें कभी कैंसर हो. उनकी मां भी हमेशा स्वस्थ रहें. उनके कैंसर का रिकरेंस न हो. परंतु, क्या पूनम पांडेय की फूहड़ता क्षमा लायक है. अपनी सस्ती पब्लिसिटी के लिए कैंसर से स्वयं की मौत की अफवाह फैला पूनम ने उन डेढ़ करोड़ भारतीयों का अपमान किया है, जिनकी मौत 2000 से 2022 के बीच कैंसर की वजह से हो गयी. पूनम ने यह पब्लिसिटी स्टंट एक आर्थिक मॉडल वाली मीडिया कंपनी की पार्टनरशिप में किया और बड़ी बेशर्मी से उसे जागरूकता का नाम दे दिया. विश्व कैंसर दिवस से महज दो दिन पहले सर्वाइकल कैंसर के प्रति जागरूकता के नाम पर औसत दर्जे की मॉडल पूनम ने जिस फूहड़ता का परिचय दिया, उसे बेशर्मी कहने के लिए शिराली जैसी महिलाओं की कहानियों से गुजरना होगा, जो पूनम के वश की बात नहीं. उस पब्लिसिटी स्टंट के बाद उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर जिन सोशल मीडिया पोस्ट के स्क्रीन शॉट्स लगाकर अपनी फूहड़ता को जायज ठहराने की कोशिश की है, उससे साफ है कि उन्हें अपने किये का कोई अफसोस नहीं.
पूनम जी, इस देश में हर वर्ष 14 लाख लोगों को कैंसर डायग्नोस होता है. इसके करीब आधे लोग हर वर्ष कैंसर से मर भी जाते हैं. जो जीवित बचते हैं, उनमें से किसी की जीभ काट ली जाती है, तो किसी के मुंह का एक हिस्सा कटा होता है. किसी की टांग कटी होती है, तो किसी का थायरॉयड निकाल लिया जाता है. किसी की फूड पाइप, तो किसी की पूरी ओवरी या ब्रेस्ट. इसके बाद भी रिकरेंस का डर बना रहता है. आपको शायद फुर्सत नहीं हो. कभी फुर्सत मिले तो मुंबई में अपनी गाड़ी कभी मनीषा कोइराला के घर की तरफ मोड़ लीजियेगा (बशर्ते वो आपको मिलने का समय दें), जिनकी ओवरी काटकर निकालनी पड़ी. कभी महिमा चौधरी, लीजा रे जैसी बहादुर महिलाओं से भी बात करने की कोशिश कीजियेगा. शायद आपको कैंसर के दर्द का वास्तविक अहसास हो. आप अपनी मौत की अफवाह उड़ाती हैं. मुझसे जानिए मौत क्या होती है, इसका डर क्या होता है. मैं कैंसर के अंतिम स्टेज का मरीज हूं. अब तक 52 बार कीमोथेरेपी हुई है. कीमो की दवाइयां नसों में जाती हैं न, तो इत्मीनान होता है कि जीवन को अगले 21 दिनों की लीज मिल रही है. फिर 21वें दिन कीमोथेरेपी और फिर 21 दिनों का लीज विस्तार. इस दौरान इसके दुष्प्रभाव. उसे इस आशा में हंसते हुए झेलना, कि इससे जीवन में कुछ और दिन जुड़ जायेंगे. यह सारी कवायद यह जानते हुए कि मेरी मौत किसी भी समय हो जायेगी. क्योंकि मेरा इलाज क्योरेटिव न होकर पैलियेटिव है. कैंसर के अंतिम स्टेज में यही नियति है. हर मरीज की यही व्यथा है. ऐसा हर मरीज पेशेंट एडवोकेट है और कैंसर के प्रति जागरूकता फैला रहा है. बगैर किसी पार्टनरशिप के, फंडिंग के.
आप बिजनेस कीजिए. अच्छी बात है. जागरूकता के नाम पर मजाक मत कीजिए. और हां, किसी रात टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल से लगे फुटपाथ पर नजर डालिए कि कैंसर के मरीज जीवन की आस में खुले आसमान के नीचे कैसे अपनी रातें गुजारते हैं. फुटपाथ की इन रातों के लिए भी वे गांव के किसी महाजन से कर्ज लेकर मुंबई आये होते हैं. शायद आपको कैंसर की पीड़ा का अंदाजा हो. वैसे तो मुंबई पुलिस को आपके विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए और भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को आपकी निंदा का आधिकारिक बयान जारी करना चाहिए. पर, शायद ऐसा न हो. इसलिए, मैं आपको लानत भेजता हूं. संभव हो तो शर्म कीजियेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)