कोलकाता. भर्ती घोटाले में नौकरी से हटाये गये सरकारी स्कूलों के ग्रुप डी कर्मियों ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कर्मचारियों ने याचिका दायर कर कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. इन सभी की नियुक्ति पश्चिम बंगाल सेंट्रल स्कूल सर्विस कमीशन के माध्यम से हुई थी. हाइकोर्ट के न्यायाधीश अभिजीत गांगुली की एकल पीठ ने ग्रुप डी नियुक्ति के मामले में नौकरी रद्द करने और वेतन लौटाने का आदेश दिया था. एकल पीठ के आदेश के बाद हाइकोर्ट की डिविजन बेंच में सुनवाई हुई और खंडपीठ ने फिलहाल वेतन के रुपये वापस करने के फैसले पर रोक लगा दी है.
इस बीच, नौकरी रद्द करने के आदेश के खिलाफ ग्रुप डी के कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. हाइकोर्ट के आदेश पर स्कूल सेवा आयोग ने ग्रुप डी के 1,911 कर्मचारियों की नौकरी की अनुशंसा वापस ले ली. एकल पीठ ने वेतन भी वापस करने का आदेश दिया. इस आदेश को चुनौती देते हुए प्रभावित कर्मचारियों ने पहले हाईकोर्ट की डिविजन बेंच का दरवाजा खटखटाया. मामले की सुनवाई जस्टिस सुब्रत तालुकदार और जस्टिस सुप्रतीम भट्टाचार्य की खंडपीठ ने की.
खंडपीठ ने वेतन वापस करने के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन रोजगार समाप्त करने के आदेश पर अभी कोई फैसला नहीं आया है. हालांकि सुनवाई खत्म हो चुकी है, लेकिन फैसला डिविजन बेंच में लंबित है. कोर्ट में कर्मचारियों का तर्क था कि जब उन्होंने काम किया है, तो वे वेतन क्यों लौटायें? सुनवाई के बाद हाइकोर्ट की खंडपीठ ने वेतन वापसी के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन रोजगार समाप्ति के आदेश पर कोई निर्णय पारित नहीं किया गया है. हाइकोर्ट के निर्देश पर ऐसे में नौकरी गंवाने वाले ग्रुप डी के 1,911 कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की.
इन 1911 कर्मचारियों की भर्ती के खिलाफ ओएमआर शीट में हेराफेरी के आरोप हैं. ग्रुप डी भर्ती भ्रष्टाचार मामले में एसएससी ने स्वीकार किया कि कुल 2,823 लोगों को फर्जी तरीके से नौकरी दी गयी. इन 2,823 लोगों में से 1,911 की प्रदेश के विभिन्न विद्यालयों में नियुक्ति हो चुकी है. उसके बाद 10 फरवरी को जस्टिस गांगुली ने एसएससी को आदेश दिया कि वह कानून के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करे और अवैध रूप से नियोजित 1,911 ग्रुप डी कर्मचारियों को बर्खास्त करे. उन्होंने इतने लंबे समय तक काम करके कमाये गये वेतन को वापस करने का आदेश दिया.