एसिड सर्वाइवर पारोमिता बेड़ा रेडियो जॉकी बन कर रहीं लोगों का मनोरंजन, कंधे पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी
पश्चिम बंगाल की एसिड सर्वाइवर पारोमिता बेड़ा का कहना है कि एसिड हमले के बाद जीवन से निराशा तो बहुत हो गयी थी, लेकिन मन में ठान लिया था कि मैं हार नहीं मानूंगी. इस दृढ़ संकल्प की बदौलत ही आज मैं खड़ी हो पायी हूं.
पश्चिम बंगाल की एसिड सर्वाइवर पारोमिता बेड़ा (paromita bera) का कहना है कि एसिड हमले के बाद जीवन से निराशा तो बहुत हो गयी थी, लेकिन मन में ठान लिया था कि मैं हार नहीं मानूंगी. जीकर दिखाऊंगी. इस दृढ़ संकल्प की बदौलत ही आज मैं खड़ी हो पायी हूं और अपने परिवार को संभाल रही हूं. वह 17 साल की उम्र में एसिड हमले की शिकार हो गयीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपने जख्मों से लड़ती रहीं. आज वह दूसरों की मदद करने के साथ ही अपना परिवार भी चला रही हैं. ऑल इंडिया रेडियो, आकाशवाणी में आरजे के रूप में लोगों का मनोरंजन कर रही हैं. उन्हें यह जॉब बेहद पसंद है. लोगों का मनोरंजन कर उन्हें बहुत खुशी मिलती है. .
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पारोमिता के साथ कुछ ऐसा हुआ था
पारोमिता ने बताया कि मेदिनीपुर स्थित उनके गांव नंदनपुर (दासपुर, पीएस) में एक लड़के ने उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया था. इंकार करने पर लड़के ने उन पर एसिड फेंक दिया. अटैक तब किया, जब वह अपने घर में अपनी मां एवं छोटे भाई के साथ सो रही थीं. इस हमले में तीनों घायल हो गये, लेकिन सबसे ज्यादा क्षति उन्हें पहुंची. उनके चेहरे का दाहिना हिस्सा बुरी तरह जल गया था. एक आंख, कान नष्ट हो गये. साथ ही नाक का कुछ हिस्सा एवं एक आईब्रो भी जल गया. हमले के बाद वह 19 बार सर्जरी करा चुकी हैं. कुछ एनजीओ की मदद से और सरकारी मुआवजे की मदद से सर्जरी कराने के बाद चेहरा थोड़ा देखने लायक हुआ है. पारोमिता की हिम्मत, धैर्य व संघर्ष के लिए उन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, ऑफिसर्स एसोसिएशन, जी 24 घंटा, दीदी नंबर वन, सिस्टर निवेदिता यूनिवर्सिटी, सिल्वर प्वाइंट स्कूल समेत अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.
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खास मौकों पर मोमबत्तियों का भी करती हैं कारोबार
एसिड हमले के बाद पारोमिता बेड़ा ने बीए और उसके बाद जादवपुर यूनिवर्सिटी से सोशियोलॉजी में एमए किया. उन्होंने 40 एसिड सर्वाइवरों का एक ग्रुप बनाया है, जो एक-दूसरे की मदद करती रहती हैं. पारोमिता अभी ऑल इंडिया रेडियो, आकाशवाणी में कार्यक्रम भी पेश करती हैं. साथ ही खास मौके जैसे-दीवाली, पूजा, नववर्ष पर डिजाइनर मोमबत्तियां बनाकर बेचती हैं. पारोमिता कहती हैं कि उनके साथ जो हुआ, उसे दोहराना पसंद नहीं. अभी वह एक आरजे के रूप में जानी जाती हैं और अपने काम से खुश हैं. वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रही हैं.
कंधे पर परिवार चलाने की भी जिम्मेदारी
पारोमिता बेड़ा ने बताया कि एसिड अटैक के बाद उनके पिताजी का निधन हो गया. फिलहाल वह बेहला में किराये के मकान में अपनी मां एवं भाई के साथ रह रही हैं. भाई छोटा है. कॉलेज में पढ़ रहा है. परिवार चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. बताया कि उन्हें मोटिवेट करने में चचेरे भाई देवजीत बेड़ा का बहुत बड़ा योगदान है. संकट में हमेशा वह उनके साथ खड़े रहे. साथ ही साउथ कलकत्ता सान्निध्य संस्था की अध्यक्ष स्वाति चटर्जी ने भी उन्हें पढ़ाई से लेकर हर कार्य में सपोर्ट किया. अब वह सकारात्मक चीजों के साथ ही रहना चाहती हैं. पारोमिता का कहना है कि एसिड अटैक करनेवालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा प्रावधान नहीं है. बंगाल में ऐसे अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं. यह दुर्भाग्यजनक है.
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रिपोर्ट : भारती जैनानी