पंचायत चुनाव (West Bengal Panchayat Chunav 2023) से पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा (West Bengal Assembly) में सारी और सरना धर्म कोड को मान्यता देने से संबंधित प्रस्ताव पास हो गया. ममता बनर्जी की सरकार ने इस प्रस्ताव को पारित करवाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और सरकार आदिवासियों के साथ है. वहीं, मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है.
दरअसल, पंचायत चुनाव से पहले राज्य में सारी और सरना धर्म कोड को मान्यता देने के मांग उठने लगी है. राज्य सरकार को पता है कि वह इस मांग को पूरी नहीं कर सकती है, लेकिन विधानसभा में आदिवासियों की इस मांग से संबंधित प्रस्ताव को पारित करवा दिया. ममता बनर्जी ने इसके साथ ही साबित करने की कोशिश की कि तृणमूल कांग्रेस सरकार आदिवासियों के साथ है. हालांकि भाजपा को समझ आ गया है कि तृणमूल के इस गेम को समझ गयी. इसलिए विधानसभा में संयम का परिचय दिया.
भाजपा ने विधानसभा में न तो इस प्रस्ताव का विरोध किया और न ही समर्थन. तृणमूल कांग्रेस की ओर से पुरुलिया बांदवान से विधायक राजीव लोचन सोरेन ने इस प्रस्ताव को सदन में रखा. आदिवासी समुदाय की राज्यमंत्री बीरबाहा हांसदा ने सदन को संबोधित करते हुए बताया कि भारत हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन का धर्म कोड है. पर आदिवासियों के पास ऐसा कोई धर्म कोड नहीं है. उन्होंने कहा कि देश में आदिवासियों की आबादी 8.6 फीसदी है.
बीरबाहा हांसदा ने कहा कि इतनी आबादी होने के बावजूद हमारे धर्म कोड को अब तक मान्यता नहीं दी गयी. उन्होंने बताया कि सारी संताल समुदाय के लोग होते हैं, जबकि सरना मुंडा समुदाय के होते हैं. संविधान में सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. पर हम आदिवासियों को यह अधिकार नहीं मिल रहा है. आदिवासियों को हिंदू समझा जाता है.
उन्होंने कहा कि धर्म कोड नहीं होने से आने वाले दिनों में हमारे अस्तित्व को खतरा हो सकता है. इसलिए आदिवासियों को भी उनका धर्म कोड मिलना चाहिए. मंत्री ने बताया कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद केंद्र सरकार आदिवासियों को भूल गयी है. बता दें कि भाजपा नीत एनडीए की सरकार ने ओड़िशा की आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया है.
विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा ने कहा कि लंबे समय से आदिवासी सारी और सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. ऐसे में इस मांग को पूरा करने से पहले गंभीरता के साथ विचार करना जरूरी है. आदिवासी धर्म को जानने वाले इतिहासकार, धर्मगुरु और आदिवासी समुदाय के विभिन्न वर्गों के साथ चर्चा जरूरी है. उन्होंने इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाये जाने की भी मांग की. इसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए.
मनोज तिग्गा ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस आदिवासियों का वोट पाने के लिए इस प्रस्ताव को विधानसभा में लेकर आयी है. उन्होंने कहा कि अगर तृणमूल को आदिवासियों से इतना ही लगाव था, तो वह राष्ट्रपति चुनाव में क्यों नहीं शामिल हुई. बताया जाता है कि केंद्र सरकार आदिवासियों के विकास के लिए एकलव्य स्कूल की स्थापना ही है. देश भर में ऐसे 500 स्कूलों का निर्माण किया गया है.
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल के अधिकांश आदिवासी वोट बैंक पर भाजपा का कब्जा था. लेकिन विधानसभा चुनाव में तृणमूल को कुछ सफलता मिली. पिछले साल आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वालीं द्रौपदी मुर्मू को केंद्र को मोदी सरकार ने राष्ट्रपति नियुक्त किया है. इसके बाद से ही गेरुआ खेमे ने मान लिया है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में देश के अलग-अलग हिस्सों के आदिवासी वोटर उनके साथ हैं.