कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार ने 12,500 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित इस्ट कोलकाता वेटलैंड्स की रक्षा और पोषण के लिए 120 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनायी है. अगले पांच साल में विभिन्न चरणों में इससे जुड़ी योजनाओं को क्रियान्वित किया जायेगा. राज्य के पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव विवेक कुमार ने यह जानकारी दी.
श्री कुमार ने कहा कि इस्ट कोलकाता वेटलैंड्स की रक्षा की योजना में अतिक्रमण को रोकने के तरीके, खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों और टेनरियों से निकलने वाले पानी के प्रदूषण को रोकने के अलावा बंजर भूमि के बारे में जागरूकता पैदा करने जैसे उपाय शामिल हैं. श्री कुमार ने बताया कि राज्य के तटीय इलाकों के संरक्षण के लिए सरकार ने शंकरपुर-दीघा तटीय क्षेत्र सड़क एवं प्रबंधन योजना बनायी है.
उन्होंने कहा कि इस्ट कोलकाता वेटलैंड्स शहर का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो ठोस कचरे के उपचार और प्राकृतिक आपदाओं में जलप्लावन को रोकने में मदद करता है. उन्होंने कहा कि यह मानव निर्मित उपचार संयंत्रों के उलट प्रकृति द्वारा उपहार में दिया गया एक उपचार संयंत्र है, जिसे स्थापित करने के लिए सरकार को करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण) विवेक कुमार ने विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक समारोह में कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के समुद्र तट की रक्षा के लिए भी एक कार्यक्रम तैयार किया है, जो पिछले वर्ष के अम्फान चक्रवात और इस वर्ष के यश चक्रवात की वजह से क्षतिग्रस्त हो गया है.
श्री कुमार ने कहा कि चक्रवात अम्फान के बाद सुंदरवन में पांच करोड़ मैंग्रोव पौधे लगाने का लक्ष्य पूरा कर लिया गया है. आप 8-10 साल बाद इसके परिणाम देखेंगे. मैंग्रोव पौधे अपनी जटिल जड़ प्रणाली के साथ समुद्र तट को स्थिर करते हैं, तूफानी लहरों, धाराओं, लहरों और ज्वार से कटाव को कम करते हैं.
उन्होंने कहा कि दक्षिण व उत्तर 24 परगना और पूर्वी मेदिनीपुर जिलों के तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव और कैसुरीना के पेड़ और एक प्रकार की लंबी घास लगाकर तटबंधों की सुरक्षा के लिए वनस्पति समाधान सुझाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है.
श्री कुमार ने कहा कि पिछले साल मई में चक्रवात अम्फान के बाद चार महीने में कोलकाता नगर निगम क्षेत्र और आसपास के विधाननगर और न्यू टाउन में 17,000 पौधे लगाये गये थे, ताकि हरियाली बढ़ाने और चक्रवात में पेड़ के कवर में किसी भी नुकसान की भरपाई की जा सके.
पर्यावरण मंत्री रत्ना दे नाग ने कहा कि झारग्राम जिला में कनकदुर्गा मंदिर के बगल में स्थित भू-भाग को चिह्नित किया गया है, जहां विभिन्न दुर्लभ पौधों को संरक्षित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग और वन आवरण की कमी ने हमारी समृद्ध जैव विविधता के लिए खतरा पैदा कर दिया, जो कोरोना के प्रसार में मददगार साबित हुआ. हमें पर्यावरण को बचाने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना ही होगा.
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दलदली भूमि वह होती है, जहां पर सालभर या किसी मौसम में पानी जमा रहता है और इसकी वजह से वहां एक विशेष पारिस्थितिकी तंत्र बन जाता है. श्री कुमार ने कहा कि रामसर इलाके स्थित दलदली भूमि के महत्व को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा की जायेगी. वर्ष 1971 के रामसर सम्मेलन के तहत रामसर इलाका अंतरराष्ट्रीय महत्व का दलदली क्षेत्र है.
Posted By: Mithilesh Jha