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रुद्रावतार हैं बजरंगबली, इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित है

चूंकि बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं.

मार्कण्डेय शारदेय, ज्योतिष व धर्म विशेषज्ञ

चूंकि बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं, इसीलिए इनके इस रूप को ‘सर्वकामार्थ-सिद्धिदम्’ कहा गया है.

माता जानकी के दुलारे

रामकथा के सम्मान्य पात्रों की अग्रिम पंक्ति में विराजते हैं हनुमान जी. ‘किष्किन्धा कांड’ से ‘उत्तर काण्ड’ तक यह महती भूमिका में सदा दिखते हैं. स्वयं श्रीराम इनके सुकृतों से इतने अभिभूत हैं कि ऋणी बन जाते हैं. माता जानकी के भी यह बड़े दुलारे हैं. यह तो प्रभु-सेवक के रूप में समर्पित हैं, पर प्रभु भ्रातृत्व ही रखते हैं-‘तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई.’नवधा भक्ति के जीवंत प्रतिमान बजरंगी समग्र दैवी संपदाओं से युक्त ज्ञान-विज्ञान, नीति-नियम, शील-गुण, वीरता-धीरता, चाल-चरित्र में कहीं से अपना उपमान नहीं रखते. यह सीतारामजी के स्नेहमय सान्निध्य के कारण सीताराममय हैं, इसीलिए अपने आश्रितों, भक्तों का हर कार्य बिना देर किये सिद्ध कर देते हैं, इसीलिए यह संकटमोचन भी कहलाते हैं.

‘हनुमान चालीसा’ कंठ-कंठ में बसा

हनुमान जी आज के प्रसिद्ध देवताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं. इसका कारण इनकी साधना से सहजतया लोगों की कामनाएं पूर्ण हो जाना है. लोग किसी संकट, परेशानी में रहें, जब भी इन्हें ध्याते हैं, समस्याओं का हल पाते हैं. शनि की साढ़ेसाती हो, भूत-प्रेत का उत्पात हो, काम में रुकावट हो, चाहे संकट का जो रूप हो, लोग बिना किसी के उपदेश के भी हनुमान जी की आराधना में लग जाते हैं. तुलसीदास जी का ‘हनुमान चालीसा’ तो कंठ-कंठ में बसा है. हम भारतीयों का तो यह कंठहार ही है. कोई अनहोनी देख या आशंका में भी ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ चलते-फिरते, सोते-जागते चालू हो जाता है. विषम परिस्थितियों में 108 आवृत्ति पाठ करने लगते हैं. यह सुगम उपासना है, इसलिए क्या बड़े-बूढ़े और क्या बच्चे, सभी इस पाठ को सौ रोगों की एक दवा मानते हैं. ‘सुंदरकांड’ घर में मुद-मंगल व शनिजन्य पीड़ा की अचूक औषधि है. इनके अतिरिक्त, हनुमानाष्टक, बजरंगबाण, हनुमान साठिका-जैसे ठेठ भाषा के स्तोत्र भी बहुत कारगर होते हैं. संस्कृतज्ञ जन संस्कृत में विद्यमान वाल्मीकिकृत ‘सुंदरकांड’एवं ‘पंचमुखि-हनुमत्कवच’, सहस्रनाम-जैसे स्तोत्र आदि का आनुष्ठानिक विधि से पाठ करने लगते हैं.

बजरंगबली रुद्रावतार हैं

यों तो हनुमान जी की वानराकृति ही प्रधान है, परंतु भक्तों के कल्याण के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल विविध रूपों में उपस्थित रहते हैं. समुद्र लांघने के समय भी तो पवनसुत ने विविध रूपों से विघ्न-बाधाओं से अपने चातुर्य का परिचय दिया था. चूंकि, बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं, इसीलिए इनके इस रूप को ‘सर्वकामार्थ-सिद्धिदम्’ कहा गया है. इनका पूरबवाला मुख कपि का ही है, जो करोड़ों सूर्यों की तरह प्रभा बिखेरता है. दक्षिणवाला मुख नृसिंह भगवान की तरह अद्भुत,अति उग्र एवं समस्त भयों का विनाशक है. पश्चिमवाला मुंह श्रीहरि के वाहन विनितानंदन गरुड़ जी की तरह है, जो सर्पबाधा और प्रेतबाधा का निवारक है. उत्तरवाला श्रीविष्णु के वराहावतार की तरह है, जो अंत: व पाताल में स्थित ज्वर आदि रोगों, दोषों, दुष्टों के मूल को उखाड़ फेंकनेवाला है. ऊपर(ऊर्ध्व) में स्थित पांचवां मुख हयग्रीव भगवान के समान है, जो दानवों का अंत करनेवाला है. कुल मिलाकर देखा जाये, तो वानरावतार भगवान रुद्र की यह वैष्णवात्मक समष्टि है, जिसमें जगत की रक्षा व सृष्टिपालन ही समाया है. कपीश्वर हनुमान जी की उपासनाओं के अनेक प्रकार हैं. तांत्रिक विधियां भी हैं और मांत्रिक विधियां भी. समस्त सुखों की प्राप्ति एवं समस्त दुखों के निवारणार्थ विज्ञजन प्रयोग अपनाते रहते हैं.

मनोरथ सिद्ध करेंगे ये मंत्र व उपाय

हनुमान जी के बहुसंख्यक मंत्रों में ‘हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’- बारह अक्षरों वाला यह मंत्र साधक की समस्त कामनाएं पूर्ण करनेवाला है. एकांत में ब्रह्मचर्य पूर्वक भगवान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष तेल का दीप जलाकर सवा लाख जपने का विधान है. पहले शिव जी ने श्रीकृष्ण को, इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस मंत्र का उपदेश किया था. इसी तरह ‘हं पवन-नन्दनाय स्वाहा’,’ ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा’ आदि शीघ्र सिद्धिप्रद मंत्रों में अग्रगण्य हैं.

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