“सुरों की मल्लिका” के रूप में मशहूर लता मंगेशकर ने वर्ष 1960 के आस-पास अपने स्वर-रज्जु (वोकल कॉर्ड) में परेशानी के चलते कुछ समय तक “मौनव्रत” लिया था. गले को आराम देने के बाद जब वह माइक्रोफोन पर लौटी थीं, तो उन्होंने मशहूर गीत ‘‘कहीं दीप जले, कहीं दिल” के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था.
लता मंगेशकर के छोटे भाई और संगीत निर्देशक हृदयनाथ मंगेशकर ‘‘सुरों की मल्लिका” की जन्मस्थली इंदौर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान खुद इस बात का खुलासा कर चुके हैं. इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मीं लता मंगेशकर का 92 साल की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में रविवार को निधन हो गया. हृदयनाथ ने इंदौर में 21 फरवरी 2010 को ‘‘मैं और दीदी” के शीर्षक से आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रम में यादों के ‘गलियारे’ में कदम रखते हुए बताया था कि 1960 के आस-पास एक बार ऊंचा सुर लगाते वक्त लता को उनके स्वर-रज्जु में किसी परेशानी के चलते अपनी आवाज फटती महसूस हुई.
लता मंगेशकर के साथ यह वाकया पहली बार हुआ था और उन्होंने अपनी परेशानी इंदौर के मशहूर शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से बयान की थीं. हृदयनाथ ने कहा था कि खां ने लता को सलाह दी थी कि बेहतर होगा कि वह अपनी इस परेशानी के मद्देनजर कुछ समय तक मौन रहें और कोई गाना न गाएं. ‘मैं औ दीदी’ कार्यक्रम का संचालन इंदौर के ही संस्कृतिकर्मी संजय पटले ने किया था. पटेल ने भी आज इस बात की पुष्टि की भी हृदयनाथ मंगेशकर ने लता के मौनव्रत की बात कही थी.
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हृदयनाथ के मुताबिक ‘‘सुरों की मल्लिका” का करियर उस वक्त बुलंदियों पर था, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने खां की सलाह पर अमल किया और इसके लिए वह मायानगरी मुंबई से कुछ समय तक बाहर भी रही थीं. हृदयनाथ ने बताया था कि इस ‘‘मौनव्रत” की समाप्ति के बाद पार्श्वगायन की दुनिया में लौटीं लता ने हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में फिल्म ‘‘बीस साल बाद” (1962) का गीत ‘‘कहीं दीप जले, कहीं दिल” गाया था. इस गीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था.