World Disability Day 2020 : रमकंडा (मुकेश तिवारी) : यदि हौसला बुलंद हो, तो दिव्यांगता भी किसी के लिए बोझ नहीं बन सकती. इसी बात को चरितार्थ किया है गढ़वा जिले के सुदूरवर्ती रमकंडा प्रखंड के चपरी गांव का देवनारायण सिंह. उम्र 32 वर्ष और दोनों आंखों से दिव्यांग. इसके बावजूद आज देवनारायण सिंह अपने काबिलियत के दम पर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. साथ ही सुखी दाम्पत्य जीवन का निर्वहन कर रहे हैं. सुर होने के बावजूद देवनारायण किसी का बोझ नहीं बने, बल्कि जीविकोपार्जन के लिए घर में ही छोटा- सा किराना दुकान खोलें. साथ ही साइकिल का पंक्चर भी बनाते हैं.
देवनारायण के किराना दुकान में ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में उपयोग होने वाले दैनिक जरूरत के सभी सामान मिल जायेंगे. दोनों आंखों से दिव्यांग होने के बावजूद उसने अपने दिमाग को इस तरह विकसित किया है कि दुकान में रखे हर एक सामान की उसे बखूबी जानकारी है. इसकी वजह से वह ग्राहकों को आसानी से सामान देते हैं. उनकी बौद्धिक क्षमता इतनी है कि हाथों से छूकर वह नोटों की पहचान कर लेते हैं. साथ ही तराजू पर किसी भी चीज की सही माप- तौल भी कर लेते हैं.
दिलचस्प बात है कि साइकिल के टायर का पंक्चर भी आसानी से बना लेते हैं. ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से उसके दुकान पर पहुंचते हैं. वहीं, शादी- विवाह के सीजन में लाउडस्पीकर की बुकिंग भी करते हैं. बुकिंग मिलने के बाद वह खुद बजाते हैं. इतना ही नहीं, खराब होने पर उसकी मरम्मत भी खुद कर लेते हैं. यही कारण है कि देवनारायण को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहना पड़ता है. अब तो वह अपने परिचितों से बात करने के लिए मोबाइल का उपयोग भी करते हैं. इन दिनों एक पुराना डिजल पंप खरीदे हैं. उसे वह जनरेटर बनाने को सोचे हैं, ताकि शादी- विवाह में उसकी बुकिंग की जा सके.
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उसने बताया कि 2 वर्ष की उम्र में चेचक की बीमारी से उसके दोनों आंखों ने काम करना बंद कर दिया. गरीबी के कारण अपने आंखों का इलाज नहीं करा सके. इसकी वजह से वह कुछ भी नहीं देख सकते हैं. यही कारण है कि स्कूल भी नहीं जा सके, लेकिन उसने हिम्मत नही हारी. अपने अंदर छुपी काबिलियत को निखारना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उसने अपने बौद्धिक क्षमता की मदद से बहुत सारी जानकारियां हासिल की. बिना स्कूल गये ही जोड़-घटाव सहित अन्य किताबी ज्ञान हासिल की. करीब 5 वर्ष पूर्व एक मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की से शादी भी किये. तब उसने अपने घर में ही छोटी- सी दुकान खोलने की सोंची, ताकि घर का खर्चा चलाया जा सके.
किसी दूसरे या अपनी पत्नी की मदद से वह बाजार जाकर सामानों की खरीदारी करने लगे. दुकान खोलकर अपनी पत्नी और 2 बच्चों का पालन- पोषण कर रहे हैं. सरकार की तरफ से देवनारायण को 1000 रुपये प्रतिमाह पेंशन भी मिलता है. लेकिन, पिछले 2 माह से पेंशन नहीं मिला है.
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ग्रामीणों ने बताया कि देवनारायण पत्नी बसंती देवी पढ़ी- लिखी है. वह महिला समूह से जुड़कर अपने परिवार की जीविकोपार्जन को और बेहतर बनाना चाहती है. लेकिन, आधार कार्ड में उसका पता अपने मायके का होने के कारण उसे समूह में नहीं जोड़ा जा रहा है. वह समूह में जुड़कर ऋण लेना चाहती है, लेकिन आधार कार्ड उसके लिए समस्या खड़ी कर रखा है. वहीं, किसी जनप्रतिनिधि या सरकारी कर्मियों की उपेक्षा के कारण अपने बच्चों की सेवा में घर पर ही लगी रहती है. बताया कि उसने गढ़वा में रहकर सिलाई का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है. सिलाई मशीन लेने के लिए थोड़े- थोड़े पैसे भी जमा कर रही है, लेकिन अभी तक मशीन के लिए पर्याप्त पैसा जमा नहीं कर पायी है. उन्होंने कहा कि सिलाई मशीन के रहने पर वह घर में ही सिलाई दुकान खोलना चाहती है. इससे वह अपने पति के जैसे ही खुद भी कुछ पैसे कमा सके.
Posted By : Samir Ranjan.