Varanasi News: काशी की विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला ने एक बार फिर अपनी वर्षों पुरानी परंपरा को जीवित कर दिया है. तुलसीघाट पर कृष्ण लीला को जिसने भी देखा वह मंत्रमुग्ध होकर देखता रह गया. यहां लाखों की भीड़ ने काशी की गंगा को यमुना में तब्दील होते देखा.
सोमवार यानी 8 अक्टूबर को काशीवासी, यमुनवासी के रूप में थे. इस लीला के माध्यम से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का भी संदेश दिया गया. धर्म की नगरी वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास घाट पर शाम होते ही विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला का मंचन किया गया. लगभग 500 वर्ष पुरानी इस परंपरा को देखने के लिए लाखों की भीड़ घाट पर मौजूद रही.
मेला आयोजक का कहना है कि, 2021 में आयोजित इस लीला को देखने के लिए फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से पूरे विश्व के लोग जुड़े रहे. इस लीला के माध्यम से लोग भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात दर्शन करते हैं. लगभग 500 वर्षों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने इस लीला को प्रारंभ किया था, तबसे लेकर आज तक हम सभी आयोजक लोग प्रशासन के साथ मिलकर इस लीला को संपन्न कराते हैं.
इस 5 मिनट की लीला के जरिए प्रयत्क्ष तौर पर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए लोग सालभर तक इंतजार करते हैं. जब तुलसीदास जी ने इस लीला को प्रारंभ कराया था, तो उसके पीछे उनकी यही मंशा थी कि हमारे समाज और नई पीढ़ी के लोगों में भगवान के चरित्र की यह सीख देखने को मिले. उन्होंने लीला के माध्यम से समाज के हर वर्ग को एकसूत्र में पिरोने का कार्य किया है.
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शाम साढ़े तीन बजे जब काशी की गंगा, यमुना में तब्दील होती हैं. उसी क्षण सारे काशीवासी यमुनवासी बन जाते हैं. जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण कदम्ब के पेड़ पर से यमुना नदी में अपने मित्र की गेंद को लाने के लिए छलांग लगाते हैं. पूरा घाट जय कृष्ण, महादेव की हुंकार से गूंज उठता है. भगवान कृष्ण जब अपने बाल स्वरूप के रूप में गंगा की लहरों के बीच कालिया नाग का मर्दन करते हैं. तब अटूट मित्रता और अहंकार के सर्वनाश का लोगों को दर्शन होता है.
रिपोर्ट- विपिन सिंह