भारत की बेटियों में प्रतिभा की कमी नहीं है. अगर उन्हें सपनों की उड़ान भरने का मौका मिले, तो वह आसमान भी छू सकती हैं. ऐसी ही एक महिला पहलवान हैं विनेश फोगाट. कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय पहलवान विनेश ने एक बार फिर भारत का मान बढ़ाया है.
हाल ही में सर्बिया के बेलग्रेड में आयोजित विश्व कुश्ती स्पर्धा में उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया है. इसके साथ ही वह दो विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गयी हैं. कुश्ती के प्रति अपने जुनून व समर्पण की बदौलत इन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं अगर ठान लें, तो वे किसी भी मुकाम तक पहुंच सकती हैं.
भारत की दिग्गज महिला पहलवान विनेश फोगाट ने विश्व कुश्ती प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर खास उपलब्धि अपने नाम की हैं. सर्बिया के बेलग्रेड में महिलाओं की 53 किलोग्राम फ्रीस्टाइल स्पर्धा में स्वीडन की जोना मालमग्रेन को 8-0 से हराकर उन्होंने इतिहास रच दिया है. वह दो विश्व चैंपियनशिप पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गयी हैं.
इससे पहले उन्होंने नूर सुल्तान वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी कांस्य पदक जीता था.10वीं वरीयता प्राप्त विनेश फोगाट क्वालिफिकेशन राउंड में हार गयी थीं. मंगोलिया की खुलान बतखुयाग ने उन्हें 7-0 से पराजित कर दिया था. इसके बावजूद उन्होंने अपना मनोबल बरकरार रखा. रेपचेज मुकाबले में उन्होंने अपनी हार को जीत में बदल दिया.
इस तरह अपनी शानदार कामयाबी से वह महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गयी हैं. साथ ही यह सीख दी है कि लगातार कड़ी मेहनत, संघर्ष, जुनून और समर्पण की बदौलत ही किसी क्षेत्र में कामयाबी हासिल की जा सकती है. खासकर स्पोर्ट्स जैसे सेक्टर में, जहां आपके पास छोटी-सी गलती करने की भी गुंजाइश नहीं होती है और गलती हुई, तो आपको लोगों से आलोचना का सामना करना पड़ता है.
विनेश फोगाट का जन्म हरियाणा राज्य के बलाली गांव में 25 अगस्त, 1994 को हुआ था. इनके पिता का नाम राजपाल सिंह फोगाट था, जो पेशे से एक किसान थे. जब वह छोटी थीं, तभी किसी जमीन विवाद को लेकर इनके पिता की किसी ने हत्या कर दी. ऐसे में इनका लालन-पालन इनकी मां और उनके चाचा ने किया. इस तरह इनका बचपन अपनी चचेरी बहनों के साथ बिता.
इनके चाचा का नाम महावीर सिंह फोगाट है और इन्हीं की बेटियां गीता फोगाट और बबीता फोगाट हैं, जिन्होंने पहलवानी के क्षेत्र में अपनी खास पहचान बनायी हैं. इनके चाचा ने ही उन्हें पहलवानी के लिए प्रेरित किया. विनेश की पैदाइश भले ही पहलवान घराने में हुई थी, पर शुरुआत में उन्हें पहलवानी में जरा भी रुचि नहीं थी. लेकिन, पहलवानों के माहौल में बड़ी हुई विनेश फोगाट को कब कुश्ती में मन लगने लगा, उन्हें पता ही नहीं चला. कुश्ती के प्रति उनकी दिलचस्पी धीरे-धीरे तब बढ़ने लगी, जब उनको पहलवानी में उपलब्धियां हासिल होने लगीं. मगर, ये सफर उनके लिए इतना आसान नहीं था.
हरियाणा के एक छोटे से गांव की रहने वाली विनेश फोगाट ने बचपन से ही उन्होंने अपने घर में कुश्ती देखी थी. उन्होंने अपने चाचा महावीर सिंह फोगाट और अपनी चचेरी बहनें- गीता और बबीता फोगाट को हमेशा कुश्ती लड़ते और मेडल जीतते देखा. विनेश के चाचा और पिता ने अपने घर की बेटियों को कुश्ती में आगे बढ़ाने के लिए समाज से लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने सात साल की उम्र में ही अपनी ट्रेनिंग शुरू कर दी थी. शुरुआत में वह कुश्ती को अपना करियर नहीं बनाना चाहती थी, लेकिन कहीं न कहीं अपनी पहलवान बहनों का प्रभाव उन पर भी रहा और जब उन्होंने कुश्ती शुरू की, तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
जीवन में आयी सभी कठिनाइयों और नफरत से आगे बढ़कर इस दिग्गज खिलाड़ी ने अपने खेल पर फोकस किया. उन्होंने वर्ष 2009 में अपना पहला पदक जीता. उन्होंने महिलाओं के फ्रीस्टाइल 51 किग्रा वर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों में फिर से रजत पदक जीता. वर्ष 2014 में विनेश ने 48 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों में अपनी पहली स्वर्णिम जीत हासिल की. उन्होंने उसी वर्ष एशियाई खेलों में 48 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता. विनेश ने कुश्ती के प्रति अपनी कड़ी मेहनत जारी रखी और फिर से वर्ष 2015 में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता.
वर्ष 2016 में, विनेश ने रियो ओलिंपिक के लिए क्वालीफाइ किया और क्वार्टर फाइनल में पहुंची, पर घुटने की चोट के कारण उन्होंने जीतने का मौका गंवा दिया. इस चोट ने उनके करियर पर सवालिया निशान लगा दिये थे और उनकी मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ा. सबको लगा कि अब उनका रेसलिंग करियर खत्म हो गया, लेकिन एक ब्रेक के बाद वह और मजबूत होकर लौटीं.
वर्ष 2016 में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला. इसके बाद उन्होंने एशियाई चैम्पियनशिप 2017 में रजत पदक अपने नाम किया. अगले ही वर्ष 2018 में फोगाट ने गोल्फ कोस्ट में 50 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती में, राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता. जीत का सिलसिला यूं ही जारी रहा. फिर एशियाई चैम्पियनशिप 2018 में विनेश ने स्वर्ण पदक जीता और एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं.
वह पहली भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्हें लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड्स के लिए नामांकित किया गया. इस मुकाम तक पहुंचना विनेश के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था. घुटने और कोहनी की चोट के बावजूद उन्होंने अपने सपने को पूरे करने का जज्बा बनाये रखा.
जिंदगी में दुख और परेशानी इंसान को जहां कमजोर कर देती है, वहीं इस महिला पहलवान ने इसी दौर को अपनी मजबूती बना लिया. विनेश फोगाट ने साबित कर दिखाया कि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो बड़ी से बड़ी बाधा भी राह छोड़ देती है.
वह आज जिस मुकाम तक पहुंची हैं, वहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था. एक वो दौर भी था जब विनेश ने हर वह बुरा मंजर देखा, जिसमें कोई भी इंसान टूट सकता है. मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. जब ठीक से जीवन की कड़ियों को समझने भी नहीं लगी थीं, तभी पता चला कि मां को कैंसर है. दुखों का पहाड़ तो उस वक्त टूटा, जब कैंसर का पता लगने के तीन दिन बाद ही पिता का साया सिर से उठ गया. विनेश ने जब खेलना शुरू किया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि वो इतनी बड़ी स्टार जायेंगी.
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वर्ष 2013 कॉमनवेल्थ रेसलिंग चैंपियनशिप के दौरान 51 किलो वर्ग में रजत पदक अपने नाम किया.
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वर्ष 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो वर्ग में गोल्ड मेडल जीता.
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वर्ष 2014 में एशियन चैंपियनशिप में 48 किलो वर्ग में कांस्य पदक अपने नाम किया.
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वर्ष 2016 में एशियन चैंपियनशिप के दौरान 53 किलो वर्ग में कांस्य पदक हासिल किया.
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वर्ष 2016 में ही दूसरी चैंपियनशिप में 53 किलो वर्ग में रजत पदक अपने नाम किया.
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वर्ष 2017 में आयोजित राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन में स्वर्ण पदक जीता.
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वर्ष 2018 में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया.
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वर्ष 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक अपने नाम किया.
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वर्ष 2019 में आयोजित विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप व एशियन चैंपियनशिप दोनों में कांस्य पदक जीता.
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वर्ष 2020 में एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक अपने नाम किया.
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वर्ष 2022 बर्मिंघम में आयोजित कॉमन वेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता