डॉ नचिकेत मोर
ऐसा नहीं था कि उपचार नहीं था. कुछ न कर पाने की विवशता भी नहीं थी. बस पैसे का मामला था और आठ साल की पलक को बचाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे. आपको देखते ही पलक के चेहरे पर मुस्कान पसर जाती थी. उसे कविताएं गाने और ताली बजाने वाले खेल पसंद थे. और फिर पता चला कि वह ब्लड कैंसर से पीड़ित है. कॉर्ड ब्लड ट्रांसप्लांट में 15 लाख रुपये लगते और ऐसा करने से उसका अस्थिमज्जा कैंसरग्रस्त कोशिकाएं बनाने की जगह स्वस्थ कोशिकाएं बनाने लगता. दवाओं से ब्लड कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों का प्रभावी उपचार संभव है. ऐसे उपचार का खर्च बहुत अधिक हो सकता है.
मुंबई के बहुत सारे इलाकों में 15 लाख रुपये में एक छोटा कमरा भी नहीं खरीदा जा सकता है. लेकिन 95 प्रतिशत से अधिक भारतीयों, (केवल बेहद गरीब लोग ही नहीं) के लिए यह रकम पहुंच से उतनी ही दूर है, जैसे बड़े शहर में फ्लैट खरीद पाना. पलक के परिवार के साथ भी ऐसी ही स्थिति थी. लेकिन इतनी बड़ी रकम परिवारों को नहीं, स्वास्थ्य बीमा को चुकाना चाहिए. इसीलिए तो बीमा का अस्तित्व है. स्वास्थ्य बीमा इंडोनेशिया के बहुत पुराने मछली पकड़ने वाले जहाजों में लगे अतिरिक्त पेंदे, जुकोंग, की तरह है, जिसके सहारे दो हजार साल पहले वहां के लोग हिंद महासागर पार कर ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच जाते थे. वह अतिरिक्त पेंदा उन्हें सुकून देता था कि यदि कभी समुद्र आक्रामक हुआ, तो उनका जहाज स्थिर भी रहेगा और डूबेगा भी नहीं.
बीमा के रूप में हर परिवार के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लाखों परिवारों को एक साथ मिलकर जोखिमों को साझेदारी में उठाना होगा. यह तभी संभव हो सकता है, जब सभी सक्षम हों और स्वास्थ्य बीमा खरीदने के लिए तैयार हों तथा बीमे का निर्धारित प्रीमियम अदा करें. ऐसा स्वाभाविक रूप से नहीं हो सकता है, अधिक विकसित देशों में भी नहीं. इसीलिए सरकार को मदद के लिए आगे आने की आवश्यकता है. इस आवश्यकता की पहचान करते हुए भारत में अधिकतर राज्य सरकारें मुफ्त स्वास्थ्य बीमा योजनाएं मुहैया करा रही हैं. इनके लिए भुगतान कराधान से प्राप्त राजस्व से होता है. इन योजनाओं में हजारों अस्पताल सहभागी हैं तथा बीमा द्वारा रोगी के पूरे खर्च का भुगतान होता है. यह एक बेहद शानदार समाचार है, पर इसमें दो समस्याएं हैं. पहली समस्या यह है कि मौजूदा बीमा योजनाओं के तहत बहुत सी बीमारियों का उपचार होता है, लेकिन उनके लिए कम धनराशि मुहैया कराये जाने से आबादी के तीस से चालीस प्रतिशत हिस्से को ही उनका फायदा मिल पाता है. दूसरी समस्या यह है कि जो लोग बीमा के दायरे में आते हैं, उन्हें भी कई बड़ी बीमारियों के उपचार का पूरा खर्च बीमा से नहीं मिल पाता है क्योंकि बीमा में ऊपरी सीमा निर्धारित की गयी है.
इसका परिणाम यह है कि इन योजनाओं में लगभग आधे भुगतान की राशि प्रति मामला सात हजार रुपये से कम है, जो बेहद मामूली है. केवल चार प्रतिशत दावों में ही राशि एक लाख रुपये से अधिक है. क्या यह पहले से ही सीमित सरकारी बजट का सही उपयोग है? या यह हर किसी को तैरना सिखाने जैसा है कि उन्हें डूबने से बचाया जा सके? ऐसा करना फायदेमंद हो सकता है, पर इसमें बहुत अधिक खर्च आयेगा, जबकि लोगों को लाइफ जैकेट देना ज्यादा असरदार होगा. अब जब सरकार के पास सीमित पैसा है और सुरक्षा की जरूरत लगभग सार्वभौमिक है, तब राज्यों को ऐसी योजनाओं को लाना चाहिए, जिसमें पूरी आबादी के लिए कुछ बेहद खर्चीली और गंभीर बीमारियों में बीमा की सुविधा मिले. ऐसी व्यवस्था होने से सभी को सुकून रहेगा, भले ही अधिकतर लोगों को इस बीमा की जरूरत कभी नहीं होगी. और, चूंकि गंभीर बीमारियां बहुत कम लोगों को होती हैं, उनमें भले ही बहुत अधिक खर्च आये, लेकिन ऐसी योजना का कुल खर्च आवंटित बजट के भीतर ही रहेगा. ऐसी स्वास्थ्य बीमा योजना देने से राज्य सरकारों को भी अपने स्वास्थ्य बजट के बाकी हिस्से के इस्तेमाल से अच्छी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली स्थापित करने का मौका मिलेगा. ऐसा होने से सभी लोगों को सामान्य बीमारियों (डेंगू, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर आदि) में बिना खर्च के मुफ्त उपचार मुहैया कराया जा सकता है. इससे उन्हें भी फायदा मिल सकेगा, जिनके बीमा के दायरे में उनकी बीमारियां नहीं आतीं. इस तरह की बीमा योजना लागू होने से सरकार को यह जानकर राहत मिलेगी कि किसी घर में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर चुनौती सामने आयी, पर वे तबाह नहीं हुए और किसी की जान भी नहीं गयी.
यदि ऐसी बीमा योजना में सभी का स्वाभाविक रूप से पंजीकरण होगा, तो बार-बार लोगों की पहचान और उनके पंजीकरण की जांच करने की आवश्यकता नहीं रहेगी, जो मौजूदा व्यवस्था की एक बड़ी समस्या है. समूची आबादी को बीमा के दायरे में लाकर राज्य सरकारें अपनी क्रय क्षमता का इस्तेमाल कर गंभीर बीमारियों के खर्च को घटाने के लिए प्रयास कर सकती हैं. बड़े अस्पतालों में उपचार के खर्च को नियंत्रित रखने से योजना को मदद तो मिलेगी ही, साथ ही इसका असर पूरी स्वास्थ्य सेवा के खर्च पर भी होगा. इस तरह से एक ऐसा स्वास्थ्य तंत्र विकसित हो सकेगा, जिसमें हर तरह के रोगों का उपचार आसानी से हो. जब पलक के परिवार को उसके ब्लड कैंसर होने की जानकारी मिली, तो उनके पास उसे मौत की ओर जाने और उसकी सारी खुशियों के खत्म होने से रोकने का कोई उपाय नहीं था. त्रासदी यह है कि पलक को मरना नहीं था. उसके उपचार की व्यवस्था उपलब्ध है. जब खर्च की समस्या मुख्य है, तो नयी बीमा योजनाएं ऐसी त्रासदियों को रोक सकती हैं. कोई रोग किसी परिवार को वित्तीय रूप से तबाह कर सकता है या उन्हें अपने परिजन को मरने देने के लिए मजबूर कर सकता है- ऐसी स्थिति से परिवारों को बचाने के लिए नये उपाय की दरकार है. दूसरे शब्दों में, इस तरह की व्यवस्था बड़ी समस्याओं का समाधान बीमा के जरिये कर सकती है और स्वास्थ्य सेवा तंत्र के भीतर छोटी समस्याओं के हल के उपाय निकाल सकती है. मौत और तबाही लाने वाली सामान्य बीमारियों को हम अनदेखा नहीं कर सकते, पर गंभीर रोगों को उनसे अलग करना उस समस्या का एक समाधान हो सकता है, जहां लोग पैसे की कमी के कारण मरने के लिए मजबूर होते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
विजिटिंग साइंटिस्ट, बान्यान एकेडमी ऑफ लीडरशिप इन मेंटल हेल्थ