सफला एकादशी व्रत कथा को बिना पढ़ें अधूरी मानी जाती है पूजा, यहां जानिए पूरी खासियत

Saphala Ekadashi Vrat Katha: पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है. साल की पहली एकादशी काफी खास है. क्योंकि इस दिन श्री हरि की पूजा करने से व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है और कई अश्वमेध यज्ञ बराबर फल की प्राप्ति होती है.

By Radheshyam Kushwaha | January 6, 2024 12:51 PM

Saphala Ekadashi Vrat Katha: धार्मिक कथा के अनुसार चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक एक राजा राज्य करता था. उस राजा के चार पुत्र थे. उसका बड़ा पुत्र का नाम लुम्पक था. वह बहुत ही दुष्ट और पापी था. वह हमेशा स्त्री या फिर वेश्याओं के यहां जाकर अपने पिता का धन व्यय किया करता था. देवता, ब्राह्मण, वैष्णव आदि सुपात्रों की निंदा करके वह अति प्रसन्न्न होता था. एक दिन किसी तरह से राजा महिष्मान को लुम्पक के कुकर्मों का पता चल गया. राजा अपने पुत्र के बारे में सुनकर अत्यधिक क्रोधित हुआ और लुम्पक को अपने राज्य से निकाल दिया, इसके बाद लुम्पक को किसी ने सहारा नहीं दिया और सभी ने त्याग दिया. एक दिन उसने रात्रि को पिता के राज्य में चोरी करने की ठानी.

सफला एकादशी व्रत लुम्पक दिन में राज्य से बाहर रहने लगा और रात्रि को अपने पिता की नगरी में जाकर चोरी तथा अन्य बुरे कर्म करने लगा. दिन में जंगल में चला जाता था. वह निर्दोष पशु-पक्षियों को मारकर उनका भक्षण किया करता था. किसी-किसी रात जब वह नगर में चोरी आदि करते पकड़ा भी जाता तो डर से पहरेदार उसे छोड़ देते थे. लुम्पक जिस वन में रहता था, वह वन भगवान को भी बहुत प्रिय था. उस वन में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष था तथा उस वन को सभी लोग देवताओं का क्रीड़ा-स्थल मानते थे. वन में उसी पीपल के वृक्ष के नीचे महापापी लुम्पक रहता था.

कुछ दिन बाद पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन वस्त्रहीन होने के कारण लुम्पक तेज ठंड से मूर्च्छित हो गया. ठंड के कारण वह रात को सो न सका और उसके हाथ-पैर अकड़ गए. सफला एकादशी की दोपहर तक वह पापी मुर्च्छित ही पड़ा रहा. सफला एकादशी तिथि के दिन दोपहर में सूर्य की गर्मी मिलने पर उसे होश आया और वह अपने स्थान से उठकर किसी प्रकार चलते हुए वन में भोजन की खोज में फिरने लगा. उस दिन वह शिकार करने में असमर्थ था, इसलिए पृथ्वी पर गिरे हुए फलों को लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे गया. तब तक भगवान सूर्य अस्ताचल को प्रस्थान कर गए थे.

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भूखा होने के बाद भी वह उन फलों को न खा सका, क्योंकि वह नित्य जीवों को मारकर उनका मांस खाता था. उसे फल खाना तनिक भी अच्छा नहीं लगा. उसने उन फलों को पीपल की जड़ के पास रख दिया और दुःखी होकर बोला- ‘हे ईश्वर! यह फल आपको ही अर्पण हैं. इन फलों से आप ही तृप्त हों. ऐसा कहकर वह रोने लगा और रात को उसे नींद नहीं आई. वह सारी रात रोता रहा, इस प्रकार उस पापी से अनजाने में ही एकादशी का उपवास हो गया. उस महापापी के इस उपवास तथा रात्रि जागरण से भगवान श्रीहरि अत्यंत प्रसन्न हुए और उसके सभी पाप नष्ट हो गए. उसी समय आकाशवाणी हुई- ‘हे युवराज! भगवान नारायण के प्रभाव से तेरे सभी पाप नष्ट हो गए हैं, अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर सकते हो.

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