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सामाजिक कुरीतियों को शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति देने में माहिर हैं लेखिका पूनम देवी

झारखंड के कतरास में जन्मी, धनबाद में पली-बढ़ी और पानागढ़ बंगाल में स्थाई रूप से बस चुकी पूनम देवी ग्रामीण परिवेश, स्त्री विमर्श, सामाजिक कुरीतियों और रूढ़िवादी प्रचलन तथा मानवीय संवेदनाओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति देने में माहिर हैं.

पूनम देवी : झारखंड के कतरास में जन्मी, धनबाद में पली-बढ़ी और पानागढ़ बंगाल में स्थाई रूप से बस चुकी पूनम देवी ग्रामीण परिवेश, स्त्री विमर्श, सामाजिक कुरीतियों और रूढ़िवादी प्रचलन तथा मानवीय संवेदनाओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति देने में माहिर हैं. उनके सरल, सहज व्यक्तित्व की छाप उनके लेखन में उतरती रहती है. उनकी कई रचनाएं विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. ‘दुनिया मेरे आगे’, ‘जब पलाश झरे’ उनकी प्रथम कहानी संग्रह और द्वितीय उपन्यास है. वहीं, तीसरी रचना लघु उपन्यास ’मन को बांध लो ना’ इसी वर्ष अप्रैल में प्रकाशित हुई. साहित्य सृजन कार्य में लगी पूनम देवी पानागढ़ बाजार हिंदी हाई स्कूल में इतिहास शिक्षिका के पद पर कार्यरत है. उनका तीसरा लघु उपन्यास संग्रह के प्रकाशन पर प्रभात खबर के संवाददाता मुकेश तिवारी द्वारा लिए गए साक्षात्कार का कुछ अंश प्रस्तुत है.

प्रश्न 1. लेखन की प्रेरणा आपको कहां से और कब मिलती है?

उत्तर. आसपास घटती घटनाएं मन को ऐसा आकुल व्याकुल कर देती है कि मेरी लेखनी चल पड़ती है उन संवेदनाओं को शब्दों का आकार देने के लिए. पहले केवल पढ़ने का शौक था जो मुझे अपने पिताजी और दीदी से मिला. हर प्रकार का साहित्य मैं पढ़ जाती थी. प्रेमचंद, शरतचंद्र, अमृतलाल नागर, आशापूर्णा देवी, शिवानी, गुरुदत्त से लेकर मैक्सिम गोर्की तक के साहित्यकारों को मैंने पढ़ा. बचपन का नंदन, चंपक का शौक बड़े होकर बड़े साहित्यकारों की रचनाओं के पठन पर जा रुका. स्वभाव से मैं अन्तर्मुखी हूं. अपने आसपास के परिवेश और देश-दुनिया में घटित होती घटनाएं मुझे लिखने पर विवश करती हैं. घटनाओं पर सोचकर उसपर विश्लेषण करना मेरी आदत है जो शब्दों के रूप में व्यक्त होती रहती है.

प्रश्न 2. कहानियों और उपन्यास के अलावा साहित्य की और किस विधा में आपकी कलम यात्रा करती है?

उत्तर. पढ़ते-पढ़ते मैं लेखन की ओर झुकी. ऐसे तो मैं कहानी और उपन्यास लेखन मेरी पसंदीदा विधा है. मेरे स्कूल में एक पत्रिका निकली, जिसमें पहली बार मेरी एक कहानी प्रकाशित हुई. इसके बाद मेरा लेखन का सफर आरम्भ हो गया. अनेकों कहानियां मैंने लिखी. लेकिन मुझे कहीं प्रकाशित करने का अवसर नहीं मिला. लेकिन आज मेरी दो उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित है और लेखनी भी निरंतर जारी है. लेकिन अब मैं कविता लेखन, संस्मरण और गजल लेखन भी शुरू की हूं.

प्रश्न 3. चूंकि आप कहानीकार हैं, अतः लेखन से जुड़े किसी यादगार वाकये की किस्सागोई साझा करें?

उत्तर. फिर जब मैं हिंदी अप्प प्रतिलिपि से जुड़ी तो लेखन का एक प्लेटफॉर्म मिला. फिर लॉक डाउन मेरे लिए वरदान बना. उस बंदी जीवन का मैंने भरपूर लाभ उठाया और अनवरत लिखी और आज तक लिख रही हूं.

प्रश्न 4. इसके अलावा आपकी अन्य प्रकाशित रचनाओं के बारे में बताएं?

उत्तर. पिछले साल सोशल एंड मोटिवेशनल ट्रस्ट संस्था (दिल्ली) से जुड़ी. उसकी अध्यक्षा ने मुझे अपनी कहानी प्रकाशित करने का अवसर मिला और पिछले साल मेरी एक कहानी संग्रह “दुनिया मेरे आगे” और एक उपन्यास “जब पलाश झरे” का प्रकाशन हुआ. उपन्यास “जब पलाश झरे” इस वर्ष दिल्ली विश्व पुस्तक मेला में पाठकों ने खरीद कर मुझे अनुगृहीत किया.

प्रश्न 5. कहानी लेखन आपके लिए कितना सहज है और इस पर आपकी व्यक्तिगत राय क्या है ?

उत्तर. कहानी और उपन्यास के अलावा मैं कविता और संस्मरण विधा में भी कुछ लिख लेती हूं. पिछले साल ही “वीर गाथा” काव्य संग्रह में क्रांतिवीर अशफाक उल्ला खान पर मेरी कविता छापी गई. इसके अलावा “राम गाथा” में “पंचवटी में सीता” और “नारी तेरे रूप कितने” में नारी पर तीन कविताएं प्रकाशित हुई. बाल पुस्तक “नन्हीं दुनिया” में मेरी तीन बाल कहानियां और तीन बाल कविताएं भी प्रकाशित हुई हैं. जिनका विमोचन इसी साल अप्रैल में हुआ. वैसे दुनिया में हर इंसान के पास कहने को कम से कम एक कहानी अवश्य होती है पर इस कहानी को शब्दों का श्रृंगार कर पेश करने का हुनर सभी के पास नहीं होता . सच कहूं तो कहानी लिखने के लिए मुझे काफी सोचना या परिश्रम नहीं पड़ता है जीवन में देखी, सुनी और घटित कोई भी संवेदनशील बात मेरे लेखन का विषय बनकर कहानी के रूप में व्यक्त हो जाती है. किसी अहम मुद्दे पर कहानी लिखना थोड़ा मुश्किल जरुर होता है क्योंकि एक कहानीकार के रूप में सभी पात्रों के साथ न्याय करते हुए पाठकों को घटना का एक समाधान भी देना होता है. कहानीकार को खुद ही सारे पात्रों की संवेदनाओं को व्यक्त करना होता है.

प्रश्न 6. आपके लेखन के मूल में क्या है, आपके अनुसार उसकी परिभाषा क्या होगी ?

उत्तर. कहानी लेखन मेरे लिए उतना ही सहज है जितना किसी से मन की बात कहना. आसपास जो मैं देखती हूं, जो महसूस करती हूं, बस वही शब्दों के रूप में कागज पर उकेर देती हूं. मन में जलप्रवाह की भांति भाव उठते रहते हैं जिसे आकार देने के लिए मैं छटपटा उठती हूं.

प्रश्न 7. साहित्य को आप अपने तरीके से कैसे परिभाषित करती हैं?

उत्तर. मेरे विचार से साहित्य अपने भावों की अभिव्यक्ति है. मनुष्य मात्र हर क्षण कुछ न कुछ महसूस करता है जिसे हम जैसे संवेदनशील लेखक आकार दे देते हैं. कोई नहीं दे पाते हैं. यद्यपि साहित्य की सार्थकता तभी होती है जब वह व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया को एक नई दिशा प्रदान करे. अच्छा साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता है अपितु इससे जीने की राह मिलती है.जो भावनाएं बोलकर व्यक्त नहीं की जा सकती वह शब्दों के रूप में आसानी से कही जा सकती हैं.

प्रश्न 8. हिंदी साहित्य का भविष्य आप कैसा देखती हैं?

उत्तर. यद्यपि आज के इस डिजिटल युग में लोगों में पुस्तकें पढ़ने की रुचि काफी कम हुई है. लेकिन पढ़ना अभी भी लोगों को पसन्द है. अब लोग मोबाइल और कम्प्यूटर पर पढ़ना पसन्द करते हैं. इसीलिए हिंदी साहित्य का भविष्य काफी अच्छा है. यह अलग बात है कि लोग आजकल अंग्रेजी साहित्य पढ़ना ज्यादा पसन्द करते हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिंदी साहित्य का भविष्य उज्जवल नहीं है. हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और ज्यादातर प्रदेशों में यह मातृभाषा भी है. आजकल के कई युवा लेखक हिंदी में भी अपनी अभिव्यक्ति दे रहे हैं. हिंदी में लिखी पुस्तकें भी पढ़ी और पसंद की जा रही हैं. अच्छा साहित्य कभी भी धूमिल नहीं होता. हिंदी साहित्य का वर्तमान बेहतर है तो भविष्य भी आशावान है.

प्रश्न 9. लेखन के अलावा आपके शौक में और क्या-क्या शुमार है?

उत्तर. लेखन के अलावा मुझे सबसे मिलना जुलना, पुराने मधुर गीत सुनना अच्छे लेखकों को पढ़ना मेरा शौक है.

प्रश्न 10. अबतक कितनी कहानी संग्रह और कविता संग्रह हुई प्रकाशित ?

उत्तर. अबतक मेरी एक कहानी संग्रह ,चार सांझा संकलन में मेरी रचनाएं , एक उपन्यास और एक दो लघु उपन्यास प्रकाशित हुई हैं.प्रतिलिपि पर मैं एक लेखिका आरती झा से मिली जिन्होंने मुझे ममता सिंह से मिलाया.इसके बाद ममता जी ने मुझे अपनी संस्था से जोड़ दिया जिसमें प्रतिदिन विषय पर कविता , गजल , कहानी लिखने को कहा जाता था. फिर पिछले साल उन्होंने फरवरी महीने में मुझे कविता संग्रह निकालने के लिए कहा. मैंने कहा कि कविता तो नहीं लेकिन कहानियां मेरे पास बहुत हैं और कई उपन्यास भी ड्राफ्ट में हैं. वे बहुत खुश हुई और दोनों ही निकालने के लिए मुझे प्रेरित किया. इस तरह मेरी कहानी संग्रह “दुनिया मेरे आगे” और उपन्यास “जब पलाश झरे” प्रकाशित हुई. पिछले वर्ष 24 अप्रैल को 2022 को अन्य कई पुस्तकों के साथ मेरी ये दो रचना सबके सामने आई. 2022 में ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ऑनलाइन अनवरत बारह घंटों का काव्य पाठ हुआ. मैंने भी अपनी स्वरचित कविता प्रसिद्ध क्रांतिवीर अशफाक उल्ला खान पर पढ़ी. उसकी एक पुस्तक वीरगाथा प्रकाशित हुई जिसमें हम सभी की कविताएं थी. इस वर्ष 2023 में श्रीराम गाथा पर हम सभी लगभग 200 कवियों ने रामायण के विभिन्न विषयों पर काव्य पाठ किया.मैंने “पंचवटी में सीता” पर स्वरचित कविता का पाठ किया.उसकी भी एक पुस्तक “श्रीराम गाथा” रवींद्रनाथ जी के सम्पादन में प्रकाशन हुआ.”नारी तेरे कितने रूप” में भी नारी विषयक मेरी तीन कविताएं प्रकाशित हुई. “नन्ही दुनिया” बच्चों की बाल पुस्तिका प्रकाशित की गई जिसमें मेरी तीन बाल कविताएं और तीन बाल कहानियाँ शामिल की गई हैं.

प्रश्न 11. अबतक कहां कहां सम्मानित हुई है

उत्तर. डिजिटल ऐप प्रतिलिपि से लेखन में अनेकों ऑनलाइन और ऑफलाइन सम्मान के रूप में सर्टिफिकेट मिले है.पिछले साल सोशल एंड मोटिवेशनल ट्रस्ट (दिल्ली ) की तरफ से लेखन के लिए मुझे सम्मानित किया गया.

प्रश्न 12. ’मन को बांध लो ना ’में आप ने किस मर्म को उकेरा है?

उत्तर. इस वर्ष मेरी पुस्तक “मन को बांध लो ना” प्रकाशित और विमोचित की गई. इसमें दो लघु उपन्यास है. पहले उपन्यास में मैंने एक स्त्री की घुटन को शब्द देने का प्रयास किया है. कैसे व्यवसायिक पति की उपेक्षा से वह अस्तित्व खोने लगती है. फिर कैसे एक मित्र की मदद से वह दिशा पाती है और खुद को संभालती हुई आगे बढ़ती है. दुसरे भाग में एक नवयुवक जो काफी कठिनाइयों से पढ़ाई कर विदेश जाता है.लेकिन वह अपने देश आना नहीं चाहता है.उसके कुछ कटु अनुभव हैं. लेकिन किस तरह से उसके जीवन में बदलाव आता है और यह क्यों आता है कि वह अपने देश जाने के लिए छटपटा उठता है. इसी का इसमें वर्णन है.

प्रश्न 13. प्रभात खबर के माध्यम से नए रचनाकारों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी ?

उत्तर. प्रभात खबर जैसे लोकप्रिय दैनिक पत्र के माध्यम से मैं नए लेखकों को यह संदेश देना चाहती हूँ कि अपनी संवेदनाओं को दबाए नहीं. लिखते रहें.लेखन की ओर से हताश न हों. मुझे पचीस साल की तपस्या के बाद अब फल मिलना आरम्भ हुआ. पाप मिलेगा. बस लिखते रहिये.लेखन का सफर जारी रखिये. अपने लेखन के प्रति ईमानदार रहें और प्रसिद्धि पाने के लिए अपने लेखन और उसूलों से कभी भी समझौता न करें. आप दिल से लिखेंगे तो प्रसिद्धि और सफलता अपने आप ही पीछे-पीछे आएँगी.

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