Yaas Cyclone Effect: लक्ष्य से अधिक हुई थी खेती, लेकिन तूफान से तबाह हुआ कोसी का गोल्डेन क्रॉप मक्का, देखें तसवीर

मक्का को कोसी का गोल्ड्रेन क्रॉप कहा जाता है. कोसी द्वारा बहाकर लायी जाने वाली मिट्टी मक्के के लिए वरदान समझी जाती है. लिहाजा जिले में वृहत पैमाने पर इसकी खेती होती है. हर साल कोसी से लाखों टन मक्के का देश के अलग-अलग हिस्सों में निर्यात किया जाता है. देश के अलावे नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्री लंका में भी यहां के मक्के भेजे जाते हैं. अधिक मांग होने के कारण किसान मक्के की खेती पर अधिक ध्यान देते हैं. जिससे उनकी अच्छी-खासी कमायी हो जाती है. लेकिन पिछले दो वर्षों से लॉकडाउन और असमय बारिश ने इस खेती की जान ले ली है. एक तो लॉकडाउन के कारण तैयार दाने को वे बाजार में नहीं बेच पाते. दूसरी ओर असमय बारिश में अधिकाधिक फसलें खेतों में ही बर्बाद होकर रह जाती है. इस बार पहले 'ताउते' तूफान के प्रभाव से फिर 'यास' के प्रभाव से सब चौपट हो गया. तेज आंधी ने पौधों को खेतों में ही सुला दिया तो लगातार मूसलाधार बारिश ने खेतों में जमा अनाज को उठाने का मौका नहीं दिया.

By Prabhat Khabar News Desk | May 30, 2021 8:16 AM

विनय कुमार मिश्र, सहरसा: मक्का को कोसी का गोल्ड्रेन क्रॉप कहा जाता है. कोसी द्वारा बहाकर लायी जाने वाली मिट्टी मक्के के लिए वरदान समझी जाती है. लिहाजा जिले में वृहत पैमाने पर इसकी खेती होती है. हर साल कोसी से लाखों टन मक्के का देश के अलग-अलग हिस्सों में निर्यात किया जाता है. देश के अलावे नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्री लंका में भी यहां के मक्के भेजे जाते हैं. अधिक मांग होने के कारण किसान मक्के की खेती पर अधिक ध्यान देते हैं. जिससे उनकी अच्छी-खासी कमायी हो जाती है. लेकिन पिछले दो वर्षों से लॉकडाउन और असमय बारिश ने इस खेती की जान ले ली है. एक तो लॉकडाउन के कारण तैयार दाने को वे बाजार में नहीं बेच पाते. दूसरी ओर असमय बारिश में अधिकाधिक फसलें खेतों में ही बर्बाद होकर रह जाती है. इस बार पहले ‘ताउते’ तूफान के प्रभाव से फिर ‘यास’ के प्रभाव से सब चौपट हो गया. तेज आंधी ने पौधों को खेतों में ही सुला दिया तो लगातार मूसलाधार बारिश ने खेतों में जमा अनाज को उठाने का मौका नहीं दिया.

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लक्ष्य से अधिक हुई थी खेती :

जिले में पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष रिकॉर्ड हेक्टेयर में मक्के की खेती किसानों द्वारा की गयी है. पिछले वर्ष जहां लगभग आठ सौ हेक्टेयर में मक्के की खेती की गयी थी. वहीं इस वर्ष 2365 हेक्टेयर में मक्का लगाये गये थे. कृषि विभाग द्वारा 1042 हेक्टेयर में मक्के की खेती का लक्ष्य रखा गया था. इसके अनुरूप लगभग दोगुने से भी अधिक हेक्टेयर में मक्के की खेती किसानों द्वारा की गयी थी. जबकि जिले में मक्का आधारित किसी प्रकार का उद्योग नहीं है. न ही इसके लिए किसानों को सरकार से किसी प्रकार की सुविधा ही मिल रही है. इसके बावजूद किसानों ने जमकर इसकी खेती की. लेकिन प्राकृतिक आपदा इसे लीलने को आतुर बनी हुई है. ऐसे में अब मक्के के किसान सरकार की ओर टकटकी लगाये हुए हैं कि अच्छी कीमत पर इनके मक्के को खरीद लिया जाये या फिर बर्बाद हुए मकई का मुआवजा दे दिया जाये.

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खेतों में ही अंकुरित हो गये दाने

सोनवर्षाराज: बीते तीन दिनों से यास तूफान के कारण हो रही तेज बारिश ने आमजनों के साथ किसानों की समस्याओं को बढ़ा दिया है. बारिश से खेतों में लगे मक्के एवं मूंग की फसल के साथ ही किसानों द्वारा तैयार कर खेत-खलिहानों में रखे गए मक्के के दाने को हद तक बर्बाद कर दिया. तैयार मक्के का दाना बारिश से भीगे जाने से अंकुरित हो गया तो फसल की कटाई से तैयार भुट्टे बदरंग होकर काले पड़ गए. अंचल क्षेत्र में अब भी कई एकड़ में लगे मक्के की फसल खेत में ही है. जिसमें कहीं कहीं खेतो में लगे फसल को तेज हवा ने पौधे को गिरा दिया है. जिस कारण फसल की बर्बादी ही नजर आ रही है. ऐसे में किसान अब सरकार से मुआवजे की उम्मीद लगाए बैठे हैं. शनिवार से थमी बारिश को देख किसानों में थोड़ी राहत आयी. खेत खलिहानों में रखे मक्के को सहेजने में किसान जुट गए. लेकिन दोपहर में फिर हुई बारिश ने उन्हें निराश कर दिया.

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नवहट्टा: कोसी पूर्वी तटबंध के भीतर पिछले तीन दिनों से हो रहे मूसलाधार बारिश से हजारों एकड़ में लगा मक्का भीगने से बर्बाद हो गया. बेहतर आमद देने की उम्मीद से यहां के किसान हर वर्ष मक्का की खेती जी जान लगाकर करते हैं. एक एकड़ मक्के की खेती में 15 से 20 हजार रुपए खर्च होता है. जिससे किसानों के सालों हर परिवार के लोगों के भरण पोषण, कपड़ा-लत्ता से लेकर दवा व बच्चों की पढ़ाई औऱ बेटियों की शादी का खर्च भी पूरा होता है. लेकिन यास तूफान से हुई मूसलाधार बारिश में लोगों को मक्के की फसल पूरी तरह से भीगने से बर्बाद हो गया. एक तो किसानों को लॉकडाउन की स्थिति रहने के कारण जो समय पर उपज हुआ, उसकी उचित कीमत नहीं मिल पायी. दूसरी ओर वही मक्का पानी में भीगने से पूरी तरह बर्बाद हो गया.

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पानी में डूबी तैयार फसल व मक्के का भुट्टा

सलखुआ: बारिश व यास तूफान के कारण मक्के की फसल कटकर खेत में पड़ी थी. जो अब पूरी तरह रुक रुक जर जारी बारिश के कारण घुटने भर पानी में डूबने से सड़ने की कगार पर पहुंच गयी है. प्रखंड सहित कोसी तटबंध के अंदर फरकिया दियारा के शत प्रतिशत किसान मक्के की फसल लगा परिवार का गुजारा करते हैं. लेकिन अब उनका गुजारा मुश्किल हो गया है. भेलवा बगेवा के दो दर्जन से अधिक किसानों के खेतों में मक्के के फसल व बाइल घुटने भर पानी में डूबा हुआ है.

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किसान हताश

किसान हताश हैं. कहते हैं कि यदि मौसम साफ नहीं हुआ तो वे कर्ज तले डूब जाएंगे. पककर तैयार फसल को एक सप्ताह के अंदर किसान काटकर घर लाने वाले थे. पर अचानक तेज हवा के चलने और मंगलवार से वर्षा होने से फसल की बर्बादी ने किसानों की कमर तोड़ दी है. भेलवा बगेवा के किसान जयनाथ यादव, ध्रुव यादव, जयनारायण यादव, शरद यादव, वीरेन्द्र यादव, सीकेन्द्र यादव, विष्णुदेव यादव, सरोज सिंह बताते हैं कि अभी तो मक्के की कटाई की गयी है और भुट्टा छीलकर दौनी के लिए फसल खेत में ही पड़ी हुई है. जो बारिश के कारण घुटने भर पानी मे डूब चुकी है.

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POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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