!!पंकज कुमार पाठक!!
रांचीः रांची विश्वविद्यालय का पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में पिछले कुछ दिनों से तनाव का माहौल था. एक ओर जहां निदेशक सुशील अंकन को पद से हटा दिया गया वहीं दूसरी ओर अतिथि शिक्षक (इंदु कांत दीक्षित) ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि वो पत्रकारिता विभाग में अब पढ़ाने नही जाएंगे.
क्या है मामला- विभाग के अतिथि शिक्षक इंदुकांत दीक्षित और निदेशक सुशील अंकन के बीच पिछले कुछ महीनों से संवादहीनता थी. दोनों ने इसे आपस में मिलकर सुलझाने की कोशिश नहीं की. कहीं ना कहीं इंदुकांत दीक्षित को यह लगने लगा था कि विभाग का कई फैसला उनकी जानकारी के बगैर लिया जा रहा था. और विदाई समारोह के दौरान ये नाराजगी गुस्से में तबदील हो गयी और मामले ने तूल पकड़ लिया.
विभाग के एक शिक्षक ने बताया कि रांची विश्वविद्यालय से तीन शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर विभाग में पढ़ाने की इजाजत दी गयी. और रांची विश्वविद्यालय ने यह स्पष्ट रुप से कहा कि इन शिक्षकों से ही ज्यादा कक्षाएं ली जाए. इससे दीक्षित की क्लास पर भी असर पड़ा जो उन्हें पसंद नहीं आया. और उन्होंने ये सारा हंगामा खड़ा कर दिया.
सुशील अंकन – मुझे इस बात का दुख नहीं है कि विभाग से मुझे हटा दिया गया है. मुझे तकलीफ इस बात की है कि विश्वविद्यालय ने मेरा पक्ष सुने बगैर एक तरफा फैसला ले लिया. मैंने विभाग में जितना समय दिया विद्यार्थियों की हित को ध्यान में रखकर दिया. मेरे कार्यकाल के दौरान ही विभाग की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हुई जिसका प्रमाण दो राष्ट्रीय पुरस्कार है. मेरे विद्यार्थियों ने मिलकर एक मासिक वीडियो न्यूज मैंगजीन आंखन देखी शुरू की जिसकी तारीफ कई दिग्गज कर चुके है .
उन्होंने कहा कि एक अतिथि शिक्षक की सह पर मुझे विभाग से हटाया गया, उस शिक्षक ने जान से मारने की धमकी दी. उनकी दी हुई धमकी की ओडियो क्लिप मेरे पास मौजूद है. उन्होंने विदाई के दिन स्पष्ट शब्दों में कहा मैं इस व्यक्ति को यहां से हटा कर रहूंगा और हुआ भी वही. अगर उन्हें मुझसे कोई परेशानी थी तो बात करनी चाहिए, न कि इस तरह कुछ छात्रों को अपने पक्ष में करके विभाग के माहौल को खराब करना चाहिए था.
इंदु कांत दीक्षित- मैंने विदाई समारोह में एक छात्र का पक्ष लिया था. उसने बहुत मेहनत से स्वागत भाषण तैयार किया लेकिन उसे बोलने का अवसर नहीं दिया जा रहा था. हांलाकि उसने भाषण में भ्रष्टाचार से संबधित जो बयान दिया वो क्यों दिया इसकी जानकारी मुझे नहीं है. मैंने पत्रकारिता विभाग के लिए बहुत कुछ किया है और अंकन जी ने मुझे शुरूआत में काफी सहयोग किया लेकिन धीरे–धीरे वो विभाग का हर फैसला अकेले लेने लगे. उनसे सिर्फ मैं ही नहीं कई छात्र और पुराने शिक्षक भी नाराज थे. विभिन्न मामलों की पड़ताल के लिए बैठी विभाग की कमेटी की बैठक हुई जिसमें अंकन जी ने भाग नहीं लिया. इसके अलावा विभाग में कुछ बाहर के छात्रों ने बैठक का विरोध किया और तोड़फोड़ की धमकी दी. छात्र निदेशक के चैंबर से होते हुए आये और चल रही बैठक से हमें बाहर निकाल दिया. इस कमेटी ने पहले ही निदेशक पर कठोर कार्रवाई का मन बना लिया था. जिससे संबधित एक पत्र तैयार कर विश्वविद्यालय प्रशासन को भेज दिया जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अंकन जी को निदेशक के पद से हटा दिया.
इस प्रकरण पर छात्रा मधु झा और ज्योति का कहना है कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान छात्रों को ही हुआ है. हमें अब अंकन सर और दीक्षित सर पढ़ाने के लिए उपलब्ध नहीं होंगे.