UP Chunav 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तारीखों के ऐलान होते ही सूबे में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है. फिर से सत्ता में वापसी का दावा कर रही बीजेपी से विधायकों के इस्तीफे का सिलसिला जारी है. बीजेपी को कल एक और बड़ा झटका लगा जब योगी कैबिनेट से तीसरे ओबीसी मंत्री ने इस्तीफा दे दिया. स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) का घर बागी नेताओं का सेंटर बन चुका है. ऐसा माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्या के जानें से भाजपा को पिछड़ों और दलितों के वोट का नुकसान होगा. वहीं अब भजपा नये सिरे से दलितों और पिछड़ों के वोट साधने में जुट गयी है.
21 प्रतिशत से अधिक दलित आबादी की प्रदेश की राजनीति में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पिछले कई दशकों से दलित बहुजन समाज पार्टी के साथ खड़ा दिखाई देता रहा. भाजपा, बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में लगी हुई है. दलितों को रिझाने के लिए पार्टी ने दो तरह की योजना की है. एक ओर पार्टी के छोटे से लेकर बड़े जाटव और अन्य दलित नेताओं को इस मोर्चे पर लगाया जा रहा है. इन नेताओं के प्रवास दलित बस्तियों में लगाए जा रहे हैं और सरकार के योजनाओं कैसे उन तक लाभ पहुंचा ये इसका प्रचार-प्रसार करने को कहा जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने 11 जनवरी से घर-घर संपर्क अभियान शुरू कर दिया है.
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पिछले एक दशक से दलित मतों में दूसरी पार्टियों की बढ़ती सेंधमारी का ही नतीजा है कि मायावती को जहां वर्ष 2012 में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी वहीं वर्ष 2014 में बसपा लोकसभा में शून्य पर सिमट कर रह गई. पिछली बार सर्वाधिक आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाने वाली भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए कई बड़े दलित नेताओं को महत्व दे रही है. बता दें कि यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए 84 सीटें आरक्षित हैं. वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए 2 सीट आरक्षित हैं.