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UP Election 2022: बरेली में BJP की रणनीति के आगे टिक पाएगी सपा, या बीजेपी की खिलाफ माहौल का मिलेगा फायदा?

बरेली की नौ विधानसभा सीट पर 14 फरवरी यानी सोमवार सुबह से मतदान होगा. 2017 के चुनाव में भाजपा ने बरेली की सभी नौ विधानसभा सीट पर लंबे अंतर से जीत दर्ज की थी. मगर, विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा की रणनीति और मेहनत के आगे समाजवादी पार्टी....

Bareilly News: बरेली की नौ विधानसभा सीट पर 14 फरवरी यानी सोमवार सुबह से मतदान होगा. 2017 के चुनाव में भाजपा ने बरेली की सभी नौ विधानसभा सीट पर लंबे अंतर से जीत दर्ज की थी. मगर, विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा की रणनीति और मेहनत के आगे समाजवादी पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, लेकिन भाजपा की सत्ता और किसान विरोधी लहर का सपा को बड़ा फायदा भी मिलता नजर आ रहा है.

किस सीट पर कौन-सी पार्टी मजबूत

बरेली में कुल 32,93,703 मतदाता हैं. इसमें पुरुष मतदाता 17,80,555 हैं, और महिला मतदाताओं की संख्या 15,13,054 है. बरेली की नौ विधानसभा में से बहेड़ी, फरीदपुर, भोजीपुरा, शहर और आंवला यानी पांच पर सपा मजबूती से लड़ रही है. इन सीट पर लंबे अंतर से जीत-हार होने की उम्मीद हैं. चार विधानसभा सीट नवाबगंज, मीरगंज, बरेली कैंट और बिथरी चैनपुर में सपा-भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है. बरेली की नौ में से बसपा सिर्फ एक ही बिथरी चैनपुर सीट पर मजबूत नजर आ रही हैं, लेकिन कांग्रेस के सभी नौ प्रत्याशी कहीं मजूबत दिखाई नहीं पड़ रहे हैं.

टिकट काटने-मंत्रीमंडल से हटाने का नुकसान

भाजपा ने इस बार पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं कैंट के विधायक राजेश अग्रवाल और बिथरी चैनपुर के विधायक राजेश कुमार मिश्रा का टिकट काट दिया है.बिथरी से डॉ.राघवेंद्र शर्मा और कैंट में संजीव अग्रवाल को टिकट दिया है. जिसके चलते कुछ नाराजगी है. इसके साथ ही आंवला के विधायक एवं पूर्व मंत्री धर्मपाल सिंह और कैंट विधायक राजेश अग्रवाल को मंत्रीमंडल से हटा दिया गया. इससे भी बरेली में नाराजगी हुई. इसका भी नुकसान होता नजर आ रहा है.

सिख, जाट और ब्राह्मण ख़फ़ा

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में ब्राह्मण, जाट और सिख के साथ ही पिछड़े और दलित मतदाताओं में भी सेंध लगाई थी. मगर, इस बार किसान आंदोलन को लेकर सिख और जाट काफी ख़फ़ा है. यह मतदाता भाजपा को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं. ब्राह्मण मतदाता भी बीजेपी का बेस वोट है, लेकिन यह योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी होने के कारण मजा चखाने की कोशिश में है. इसका भी सपा को फायदा मिलता दिख रहा है.

दलितों में आरक्षण और संविधान बचाने की जद्दोजहद

इस बार दलित और पिछड़ी जाति के मतदाताओं में भाजपा से आरक्षण और संविधान खत्म होने का भी खतरा होने लगा है. सरकारी क्षेत्र में निजीकरण लगातार बढ़ रहा है. उसी को लेकर दलित मतदाता भी कहीं ना कहीं भाजपा से खफा नजर आ रहे हैं. यह विरोधी पार्टी को वोट करने की तैयारी में हैं.

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सपा के पास नहीं कोई रणनीति

समाजवादी पार्टी में संगठन से लेकर हाईकमान तक कोई खास रणनीति चुनाव में नजर नहीं आ रही है. विज्ञापन से लेकर चुनाव प्रचार तक में भाजपा काफी आगे हैं. बरेली में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तीन दिन बरेली रहे. मगर, एक भी जनसभा या रोड शो नहीं किया, लेकिन सत्ता विरोधी लहर का सपा को फायदा मिलता नजर आ रहा है.

मतदाताओं के पास प्रत्याशियों का विकल्प नहीं

बरेली की नौ विधानसभा सीटों पर सपा और कांग्रेस के प्रत्याशी काफी हल्के नजर आ रहे हैं, जबकि पहले बसपा के प्रत्याशी काफी मजबूत होते थे.जिसके चलते चुनाव त्रिकोणीय होता था. इसका फायदा भाजपा को मिलता था. मगर,इस बार चुनाव भाजपा सपा के बीच है. इस कारण मतदाताओं के पास सपा के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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