Bareilly News: जंग-ए-आजादी की लंबी लड़ाई के बाद आजाद भारत की 15 अगस्त 1947 की सुबह हिन्दुस्तानियों के लिए नई जिंदगी लेकर आई थी. गोरों की गुलामी की जंजीर टूट चुकीं थीं. शहर के कुतुबखाना घंटाघर के पास 15 अगस्त 1947 की सुबह 05 बजे हजारों आजाद भारत के दीवानों की भीड़ एकत्र हो गई थी.
शहर के 91 वर्षीय सरताज मियां बताते हैं कि हर तरफ जगह जश्न मनाया जा रहा था. बोले, उस वक्त 16 वर्ष की उम्र थी. मगर, आजादी के जश्न के दौरान लोगों को देश के बंटने का दुख था. आजादी से पहले ही भारत से पाकिस्तान अलग होने का ऐलान हो गया था. इसका लोगों में काफी दर्द था. इसमें अधिकांश वह लोग भी थे. जिनके परिवार और रिश्तेदार के लोगों को बंटवारे में पाकिस्तान मिला था. मगर, यह गम आजादी के जश्न के मुकाबले काफी कम था.
रेडियो पर आजादी की घोषणा होने के बाद हर नागरिक आजादी के जश्न में डूब हुआ था. देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी के गगनचुंबी नारे आसमान में गूंजने लगे. यह शायद बरेली की पहली दिवाली थी, जो दिन निकलने पर मनाई जा रही थी. लोगों की खुशी आसमान छू रही थी. जिस तरफ निगाह दौड़ाओ, बस तिरंगे ही नजर आते थे. शहर के जेसी पालीवाल बताते हैं, उस दौरान उम्र 14 वर्ष की थी. 15 अगस्त 1947 की सुबह को लोग खुशी में सराबोर थे, लेकिन बुजुर्ग लोग चिंतत थे.
लोगों को अनुमान था कि नुकसान होगा. दीवाली मनाते, मिठाई खिलाते लोग चौराहों पर निकल आए. खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. बरेली के सभी मुख्य चौराहों पर ढोल बजाकर लोग नाच रहे थे. गले लगकर आजादी मिलने की बधाई दे रहे थे. कुतुबखाना, अयूब खां चौराहा से लेकर गुलाबराय इंटर कॉलेज तक लोग एक दूसरे को मिठाई खिला रहे थे, लेकिन एक दुख भी सबके दिलों में था. वह था बंटवारे का.
देश आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मना रहा है. हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन यह पहली बार नहीं हो रहा. अब से ठीक 75 साल पहले हर घर तिरंगा और राष्ट्रध्वज अभियान चलाया जा चुका है. इतिहास में उस दौर के दस्तावेज संरक्षित हैं, जिनमें इस बात का उल्लेख है कि 14 अगस्त 1947 को एक पत्र प्रकाशित कर हर घर में झंडा लगाने, रात 12.01 मिनट पर झंडावंदन किया गया.
लैरी कॉलिंग और डोमिनिक लैपियर की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में माउंटबेटन ने इस तारीख का जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि जब मुझसे पूछा गया कि क्या कोई तारीख तय की गई है, तो मुझे लगा कि ये जल्दी होना चाहिए. मुझे लगा कि अगस्त या सितंबर में तारीख तय करनी चाहिए. फिर मैंने 15 अगस्त की तारीख तय कर दी.
इसके पीछे एक वजह ये भी बताई जाती है कि 15 अगस्त 1945 को जापान के राजा हिरोहितो ने आत्मसमर्पण किया था, यानी 15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी बरसी थी.शायद इसलिए ही ये दिन चुना गया. हालांकि, इसे लेकर और भी कई मत हैं. माउंटबेटन के तत्कालीन प्रेस सचिव कैंपबेल जॉनसन के मुताबिक, माउंटबेटन 15 की तारीख को लकी मानते थे. इसलिए ये तारीख चुनी गई. इसी दिन जापन ने ब्रिटिश सेना के आगे हथियार डाल दिए थे.
रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद