Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट मामले में आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि, अपराध कानून को गणित की तरह लागू नहीं किया जा सकता. कानून का इस्तेमाल सार्थक और बेहतरी के लिए होना चाहिए.
कोर्ट ने जमानत पर सुनवाई के दौरान कहा कि कठोर पॉक्सो कानून नाबालिग लड़की को यौनाचार के अपराध से संरक्षण देने के लिए जरूरी है, लेकिन इसे गैर जिम्मेदाराना रवैया से लागू किया गया तो, पीड़िता को इससे अपूरणीय हो सकती है. इसे नासमझ किशोरों का जीवन खराब हो जाएगा. इसलिए इसे सार्थक ढंग से लागू किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा दोनों नाबालिग उम्र में प्रेमसंबध स्थापित किए और शादी की, अब उन्हें एक बच्चा है. अब कार्रवाई से पारिवारिक परंपरा और जीवन मूल्यों को समझाने में विफल रहे मां-बाप को कुछ हासिल नहीं होगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने खागा, फतेहपुर के अतुल मिश्र की जमानत अर्जी को विशेष स्थिति में साक्ष्यों और अपराध की प्रकृति को देखते हुए ससर्त स्वीकार करते हुए कहा कि, स्कूल में साथ पढ़ने वाले नाबालिगों ने घर से भाग करके शादी की. अब उन्हें एक बच्चा है. बच्चे को माता-पिता के प्यार से दूर रखना कठोर निर्णय होगा. कोर्ट ने यह आदेश अपराध की प्रकृति को देखते हुए दिया. साथ ही कोर्ट ने राजकीय बाल कल्याण गृह (बालिका) खुल्दाबाद, प्रयागराज की इंचार्ज को बच्चे सहित पीड़िता को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया.
जमानत पर सुनवाई से पहले कोर्ट ने पीड़िता के पिता के पिता वादी मुकदमा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था, लेकिन उनकी ओर से नोटिस का जवाब कोर्ट में दाखिल नहीं किया गया. गौरतलब है कि 17 नवंबर 2019 को खागा थाने में पीड़िता के पिता ने नाबालिग लड़की के स्कूल से लापता होने की FIR दर्ज कराई थी. तहरीर के मुताबिक, वह स्कूल से 6 नवंबर से घर नहीं लौटी थी और अपहरण करने का आरोप लगाया. दो साल बाद पिता ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि वह उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. जिसके बाद पुलिस ने 2 मार्च 2021 को क्लोजर रिपोर्ट लगा दी.
पीड़िता के पिता की सूचना पर 4 अक्टूबर, 2021 को दोनों को चार महीने के बच्चे के साथ गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरोपित के पति को जेल भेज दिया. पीड़िता ने अपने माता-पिता के साथ जाने से इंकार कर दिया. इसके बाद उसे बाल गृह भेज दिया. कोर्ट ने जमानत पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि 2 साल तक पुलिस सोती रही, और अचानक जाग गई. कोर्ट ने कहा कि, जाति बंधन तोड़कर दलित लड़की से शादी कर बच्चे को जन्म दिया और दोनों खुशहाल जीवन जी रहे थे उसे जेल में कैद कर दिया.
नाबालिग लड़की का कानून की नजर में कोई महत्व नहीं है. लेकिन पीड़िता आज भी अपने पति के साथ रहना चाहती है और अबोध बालक का क्या दोष जो बाल सुधार गृह में रहने को मजबूर है. आखिर में कोर्ट ने कहा कि पास्को एक्ट कठोर है, लेकिन इसका इस्तेमाल सार्थक दृष्टिकोण से होना चाहिए और आरोपी को सशर्त जमानत दे दी.
रिपोर्ट- एसके इलाहाबादी