Azadi Ka Amrit Mahotsav In Bareilly: हिंदुस्तान के बरेली सैन्य क्षेत्र (कैंट) से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अंग्रेज फौज के सूबेदार बख्त खां ने 1857 की क्रांति से पहले विद्रोह का आगाज किया था. इसके बाद बरेली से लेकर देशभर में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ क्रांति शुरू हो गई.
सूबेदार बख्त खां भी क्रांतिकारियों में शामिल हो गए. उन्होंने ब्रिटिश फौज पर हमला बोला. बरेली सैन्य क्षेत्र में 31 मई, 1857 को सुबह 11 बजे अंग्रेज सिपाही चर्च में प्रार्थना कर रहे थे. इसी दौरान तोपखाना लाइन में सूबेदार बख्त खां ने सही समय पर सही फैसला लिया. उनके नेतृत्व में 18वीं और 68वीं देशज रेजीमेंट ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया. सुबह 11 बजे कप्तान ब्राउन का मकान जला दिया. सैन्य क्षेत्र में विद्रोह सफल होने की सूचना शहर में फैलते ही जगह-जगह अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए. शाम चार बजे तक बरेली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था. अंग्रेज बुरी तरह हार गए. इसके बाद फिरंगी नैनीताल की तरफ भागने लगे. क्रांतिकारियों ने 16 अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया. इनमें जिला जज राबर्टसन, कप्तान ब्राउन, सिविल सर्जन डॉ. हे, बरेली कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. सी बक, सेशन जज रेक्स, जेलर हैंस ब्रो आदि शामिल थे.
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ब्रिटिश फौज के सूबेदार बख्त खां का जन्म बिजनौर के नजीबाबाद में हुआ था.वह रुहेला पठान नजीबुदौला के भाई अब्दुल्ला खान के बेटे थे.1817 के आसपास वे ईस्ट इंडिया कम्पनी में भर्ती हुए. पहले अफगान युद्ध में वे बहुत ही बहादुरी के साथ लड़े. उनकी बहादुरी देख उन्हें सूबेदार बना दिया गया.
सूबेदार बख्त खां ने 40 वर्षों तक बंगाल में घुड़सवारी की.पहले एंग्लो-अफगान युद्ध को देखकर जनरल बख्त खान ने काफी अनुभव लिया.इसके बाद दूसरे युद्ध में हिस्सा लिया.मेरठ में सैनिक विद्रोह के समय वे बरेली में तैनात थे.अपने आध्यात्मिक गुरू सरफराज अली के कहने पर वह आजादी की लड़ाई में शामिल हुए.मई खत्म होते–होते बख्त खां एक क्रांतिकारी बन गए.बरेली में शुरूआती अव्यवस्था, लूटमार के बाद बख्त खां को क्रांतिकारियों का नेता घोषित किया गया.
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एक जुलाई को बख्त खां अपनी फौज और चार हजार मुस्लिम लड़ाकों के साथ दिल्ली पंहुचे.इस दौरान बहादुर शाह जफर को देश का सम्राट घोषित किया गया. सम्राट के बड़े बेटे मिर्जा मुगल को मुख्य जनरल का खिताब दिया गया.
सूबेदार बख्त खां का जन्म 1797 में रुहेलखंड के बिजनौर में हुआ था.उनका इंतकाल (मृत्यु) 1862 में बुनर, पख्तुनख्वा, पाकिस्तान में हुआ था. वह सबसे पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सुबेदार बने थे. इसके बाद भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के कमांडर-इन-चीफ का जिम्मा मिला. बख्त खां को सम्राट शाह जफर ने सेना के वास्तविक अधिकार और साहेब-ए-आलम बहादुर का खिताब दिया था.
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रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद