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बरेली सुरमे को पहचान दिलाने वाले हसीन हाशमी का इंतकाल, शायर मुन्नवर राणा, वसीम बरेलवी ने जताया दुख

एम हाशमी के गुजरने के बाद एक बड़ी हस्ती की कमी हो गई. एम हाशमी सुरमा गांव-देहात, कस्बों, रेल और बस स्टेशन पर आसानी से मिल जाता है. इसे देश के कोने-कोने में पहुंचाने में हसीन हाशमी का ही योगदान रहा है.

दुनियाभर में उत्तर प्रदेश के बरेली के सुरमे की अपनी खास पहचान है. इस सुरमे को पहचान दिलाने वाले हसीन हाशमी का इंतकाल शुक्रवार को हो गया. वो काफी समय से बीमार चल रहे थे. शुक्रवार को तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और वो दुनिया को अलविदा कह गए. उनके गुजरने के बाद एक बड़ी हस्ती की कमी हो गई. आज भी एम हाशमी सुरमा गांव-देहात, कस्बों, रेल और बस स्टेशन पर आसानी से मिल जाता है. इस सुरमे को देश के कोने-कोने में पहुंचाने में हसीन हाशमी का ही योगदान रहा है.

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देश भर में झुमके के बाद बरेली सुरमा के लिए मशहूर है. सुरमे को पहचान दिलाने में हसीन हाशमी का अहम योगदान था. कम से कम दो पीढ़ियों की आंखों में उनके सुरमे की ठंडक पहुंचती रही है. उन्होंने यह काम एक छोटी सी दुकान से शुरू किया था. कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने अपने सुरमे को एक बड़ा ब्रांड बनाया. विदेशों में भी बरेली के सुरमे की बड़ी मांग है. इसके साथ ही लोग गिफ्ट के रूप में भी सुरमे का इस्तेमाल करते हैं.

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एम हाशमी के इंतकाल पर शायर मुनव्वर राना, वसीम बरेलवी, उद्यमी हाजी शकील कुरैशी, आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां, पूर्व मंत्री अताउर्रहमान, सपा नेता इकवाल रज़ा खां ने अफसोस जताया है. बताते दें देश के सुरमा जगत में हसीन हाशमी की पहचान एक कारोबारी के तौर पर रही. लेकिन, वो साहित्य जगत से भी जुड़े रहे. वो बरेली शहर में कई बड़े मुशायरों का आयोजन करते थे. देश दुनिया के शायरों से उनके बेहतर ताल्लुकात थे.

(इनपुट: साजिद रज़ा, बरेली)

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