Lucknow: 25 जून 1975, भारत के इतिहास का वह काला दिन, जिसे कोई भी याद नहीं करना चाहेगा. इस काले दिन 47 साल हो गये हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव लड़ने से 6 साल के लिए प्रतिबंधित किए जान के बाद देश में इस काले कानून को थोपा गया था. कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विरोधियों की देश भर में गिरफ्तारियां हो रही थीं. पुलिस का आंतक था. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें एक थे ब्रज किशोर मिश्रा.
इमरजेंसी के 47 वर्ष पूरे होने पर प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत में लोकतंत्र सेनानी ब्रज किशोर मिश्रा ने बताया कि देश में जब इमरजेंसी लगी तब वह 22-23 साल के रहे होंगे. वह लॉ फर्स्ट ईयर के छात्र थे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े हुए थे. लोकनायक जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति में वह भाग ले रहे थे.
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ब्रज किशोर मिश्र ने बताया कि 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था और उनके छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. अपनी कुर्सी जाने और गिरफ्तारी के भय से इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी. 25 जून को इमरजेंसी लगने के बाद इंदिरा गांधी के विरोधियों की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थी. वह भी इमरजेंसी के विरोध में चुपचाप संघर्ष की तैयारियां कर रहे थे.
इसी बीच 10 जुलाई को रात नौ बजे अचानक फर्रुखाबाद के महाई गांव में पुलिस ने उनके घर पर छापा मार दिया. पुलिस खाकी पैंड और सैंडो बनियान में उनके घर पहुंची थी. जिस समय पुलिस घर पहुंची वह बीबीसी लंदन पर समाचान सुन रहे थे. पुलिस ने तुरंत उन्हें हिरासत में ले लिया और कन्नौज के छिबरामऊ थाने ले गई. उनकी गिरफ्तारी की सूचना के बाद 300-400 लोग भी थाने पहुंच गये.
उन्होंने बताया कि गांव वालों की भीड़ देखकर पुलिस घबरा गई और लोगों से कहा कि डिप्टी एसपी से बात कराकर उन्हें छोड़ दिया जाएगा. इसके बाद पुलिस उन्हें लेकर चल दी. वह भी आगे-आगे और गांव वाले पीछे-पीछे थे. वह लगातार संपूर्ण क्रांति का गीत गा रहे थे और उनके पीछे चल रही जनता, उस गीत की लाइनों को दोहरा रही थी.
ब्रज किशोर मिश्र ने बताया कि पुलिस ने चार-पांच दिन उन्हें अवैध हिरासत में रखा. लगातार उनसे आरएसएस, एबीवीपी और जनसंघ से जुड़े लोगों के बारे में जानकारी मांगी. उनके साथ मारपीट की गई. जब वह कोई जानकारी नहीं दे पाये तो 16 जून को उन्हें फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया. जहां उन्हें तन्हाई में रखा गया. सिर्फ उन्हें नित्यक्रिया के लिए ही बाहर निकाला जाता था. खाना भी सलाखों के भीतर दिया जाता था. 20-25 दिन फतेहगढ़ जेल में रखने के बाद उन्हें सेंट्रल जेल भेजा गया.
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ब्रज किशोर मिश्र बताते हैं कि सेंट्रल जेल में उनके पास मौजूद किताब, कॉपी और पेन तक छीन लिया गया था. रात-रात भर उन्हें सोने नहीं दिया जाता था. सिर पर 1000 वॉट का बल्ब जलाकर रखा जाता था. सोने नहीं दिया जाता था. खाना नहीं दिया था. लगातार उनसे साथियों के बारे में पूछताछ की जाती थी. इसी बीच उनकी लॉ की परीक्षा भी आ गई, लेकिन उन्हें कोर्ट ने परीक्षा के लिए जमानत नहीं दी. हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ जेल में परीक्षा देने के लिये भेजा गया था.
लखनऊ जेल में उन्हें राम प्रकाश गुप्ता सहित कई बड़े आंदोलनकारी मिले. इसमें राम प्रकाश गुप्त भी थे. जो बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने. 1977 में ब्रज किशोर मिश्रा को पैरोल पर छोड़ा गया. इसके बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर सभी लोगों पर से इमरजेंसी के दौरान लादे गए मुकदमें खत्म किए गये.
इसी तरह एक अन्य लोकतंत्र सेनानी अरुण कटियार बताते हैं के बहुत ही डरावने और भयावह समय था वह. सामान्य लोग व परिवार वाले तक आंदोलनकारियों के साथ दूर रहते थे कि कहीं पुलिस उन्हें पकड़ न ले. वह सभी छुपकर इमरजेंस के खिलाफ आंदोलन चलाते थे. लेकिन 24 दिसंबर को फर्रुखाबाद के बद्रीविशाल से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. उनके साथ-साथ आंदोलनकारियों को ऐसी बैरक में रखा जाता था, जहां क्षमता से दोगुने लोग बंद थे.
अरुण कटियार बताते हैं कि 3 मार्च 1976 को उन्हें जेल से रिहा किया गया. आज भी वह इमरजेंसी के दिन याद करके सिहर जाते हैं. लंबे समय तक लोकतंत्र सेनानियों को कोई सम्मान नहीं मिला, लेकिन 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सभी के लिए पेंशन की शुरुआत की. इसके बाद उनके बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पेंशन को बढ़ाकर 15 हजार किया. बीजेपी सरकार ने अब लोकतंत्र सेनानियों की पेंशन को 20 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया है.
इमरजेंसी के दौरान चल रहे आंदोलन में शामिल वरिष्ठ पत्रकार श्याम कुमार बताते हैं कि वह प्रयागराज से आंदोलन चला रहे थे. उनकी कोई परी भवन में इमरजेंसी के विरोध में बैठक होती और आंदोलन की रूपरेखा तैयार होती थी. आरएसएस के लोगों को तलाशकर पकड़ा जा रहा था. इसलिए सभी आरएसएस को राम सेवक संघ का नाम दिया था.