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Booker Prize 2022: जानिए ह‍िंदीप्रेम‍ियों का सीना गर्व से चौड़ा करने वालीं गीतांजलि श्री के बारे में

Booker Prize 2022: गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को इस साल का बुकर पुरस्कार मिला है. अमेरिकन राइटर-पेंटर डेज़ी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड के नाम से इस उपन्यास का इंग्लिश में अनुवाद किया.

Booker Prize 2022: ह‍िंदीप्रेम‍ियों के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. यूं कहे तो जश्न मनाने का दिन. क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े साहित्य़ के मंच पर हिन का सीना गर्व से चौड़ा हुआ है. और दुनिया के सामने हिंदी की लेखनी का लोहा मनवाने का काम किया है लेखिका गीतांजलि श्नी ने. गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को इस साल का बुकर पुरस्कार मिला है. अमेरिकन राइटर-पेंटर डेज़ी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड के नाम से इस उपन्यास का इंग्लिश में अनुवाद किया.

टॉम्ब ऑफ सैंड बुकर जीतने वाली हिंदी भाषा की पहली किताब है. साथ ही किसी भी भारतीय भाषा में अवॉर्ड जीतने वाली पहली किताब भी है. गीताजंली श्री के किताब को बुकर पुरस्कार मिलते ही लोग सोशल मीडिया पर उनके बारे में सर्च करने लगे. क्योंकि लोगों के सामने एक नया चेहरा आया. गीताजंलि श्री हिन्दी साहित्य में एक गुमनाम चेहरे की तरह थीं जिसके बारे में अब हर कोई ज्यादा जानना चाह रहा है. आइए हम आपको बताते हैं लेखिका गीताजंलि श्री के बारे में…

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  • लेखक गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून, 1957 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई.

  • गीतांजलि श्री ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया.

  • गीतांजलि श्री का यह उपन्यास 2018 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था. ‘रेत समाधि’ का अंग्रेजी अनुवाद जानीमानी अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया.

  • गीतांजलि श्री के उपन्यास—‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’, ‘खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’; और चार कहानी-संग्रह ‘अनुगूँज’, ‘वैराग्य’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘यहाँ हाथी रहते थे’ प्रकाशित हो चुके हैं.

  • गीतांजलि श्री की रचनाओं का अनुवाद भारतीय और यूरोपीय भाषाओं में हो चुका है. गीतांजलि थियेटर के लिए भी लिखती रही हैं.

  • ‘रेत समाधि’ एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद बेहद उदास रहती है. आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूट गए अतीत की कड़ियों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है.

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