Mathura News: ब्रज मंडल में एक गांव ऐसा भी है जहां के लोग होली देखने आने वाले मेहमानों की बड़े चाव से आवभगत करते हैं. मेहमान की सुख-सूविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है. इस गांव में मेहमानों के लिए एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. लोग अपने घरों की रंगाई-पुताई में जुट जाते हैं. गांव में होली देखने आने वाले लोग न तो किसी होटल में रुकते हैं और न किसी रेस्टोरेंट में बल्कि गांव के ही रहने वाले लोगों के घर में रहते हैं और खाना पीना भी उन्हीं के साथ ही खाते हैं.
ब्रजमंडल की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है ऐसे में कई गांव ऐसे हैं जहां की होली का अलग ही रंग और अलग ही महत्व है. हम बात कर रहे हैं ब्रज क्षेत्र के कोसीकला क्षेत्र के फालैन गांव की. इस गांव में होलिका दहन के दिन एक पंडा जलती हुई होली से गुजरता है. इसी पल को देखने के लिए और उस का आनंद उठाने के लिए देश-विदेश से लोग यहां पर आते हैं. इस गांव में न तो कोई होटल है और न ही कोई धर्मशाला. ऐसे में गांव में आने वाले मेहमानों की खातिरदारी गांव के ही लोग करते हैं. गांव के प्रधान कैलाश सूपानिया का कहना है कि गांव में करीब 2000 परिवार रहते हैं. गांव में आने वाले मेहमान इन्हीं लोगों के घर में रुकते हैं. इसके लिए करीब 1 महीने पहले से ही घरों की रंगाई-पुताई शुरू हो जाती है.
गांव के लोगों के अनुसार होलिका दहन से 1 हफ्ते पहले ही यहां पर देशी-विदेशी पर्यटक आने लग जाते हैं. और कोई यहां एक-दो दिन या कोई 4 दिन तक भी रुकता है. गांव में परंपरा है कि चाहे किसी का भी रिश्तेदार गांव में आया हो और जो भी ग्रामीण उसे पहले मिल जाएगा. वह उसी के घर पर रुकेगा और इसके बाद उस मेहमान की आवभगत की शुरुआत होती. ग्रामीणों का कहना है कि मेहमानों के स्वागत के लिए घर में जितनी भी चारपाई होती हैं उन सब की पूर्ण रूप से मरम्मत कर ली जाती है. मेहमानों के लिए आंगन में चारपाई, कुर्सी डालकर हुक्का बीड़ी और सिगरेट रख दी जाती है. वहीं, गांव के प्रहलाद मंदिर पर आने वाले मेहमान को ग्रामीण आवभगत के लिए ले जाते हैं.
अगर गांव में मान्यता की बात करें तो बताया जाता है कि गांव के निकट एक साधु तप किया करते थे. उन्हें पेड़ के नीचे मूर्ति दबे होने का सपना आया था, तो गांव के कौशिक परिवारों से पेड़ के नीचे खुदाई कराई गई. जिसमें भगवान नरसिंह और भक्त पहलाद की मूर्ति निकली. इसके बाद तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो भी व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होलिका से गुजरेगा उसके शरीर में भक्त प्रहलाद विराजमान होंगे.
आपको बता दें इससे पहले पालन गांव को प्रह्लाद नगरी भी कहा जाता था और यहां प्रहलाद का एक मंदिर भी स्थित है. वहीं इस गांव में पंडा समाज के करीब 50 से 60 परिवार रहते हैं और करीब 20 परिवार के लोग जलती हुई होलिका में से निकलने की परंपरा को निभाते हुए चले आ रहे हैं. इस परंपरा के लिए हर साल एक पंडा का चयन किया जाता है. होलिका दहन से करीब 1 महीने पहले ही वह पंडा मंदिर में कठिन तप करता है, जिसके बाद वह होली के दिन धधकती हुई आंख के ऊपर से गुजरता है. इस बार यह परंपरा गांव के मोनू पंडा निभा रहे हैं.
रिपोर्टर : राघवेंद्र गहलोत