UP MLC Chunav: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद अब सभी दलों की गणित विधान परिषद के चुनाव पर टिकी हुई है. 36 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनावों (Vidhan Parishad Election) के लिए 15 मार्च यानी मंगलवार से नामांकन शुरू हो चुका है. अब तक कुल 6 प्रत्याशियों ने नामांकन की प्रक्रिया को पूरा किया है. उम्मीद है कि एक-दो दिन में सभी दलों की ओर से नामांकन तेजी से शुरू हो जाएगा. मगर यहां यह जानना जरूरी है कि विधान परिषद का चुनाव किस तरह होता है? इसकी अर्हता क्या है?
चुनाव आयोग की ओर से मंगलवार 15 मार्च की शाम को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अब तक प्रतापगढ़ से 1, खीरी से 1, वाराणसी से 1, कानपुर-फतेहपुर से 1 और आगरा-फिरोजाबाद से 2 प्रत्याशियों ने नॉमिनेशन किया है. यानी फरवरी से शुरू हुई नॉमिनेशन प्रक्रिया में अब तक 6 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है.
अभी देश के छह राज्यों में ही विधान परिषद हैं. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीटें हैं. इसके अलावा बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी विधान परिषद है. विधान परिषद में एक निश्चित संख्या तक सदस्य होते हैं. संविधान के तहत विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए. उदाहरण के तौर पर समझें तो यूपी में 403 विधानसभा सदस्य हैं. यानी यूपी विधान परिषद में 134 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते हैं. इसके अलावा विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य का होना अनिवार्य है. एमएलसी का दर्जा विधायक के ही समकक्ष होता है. मगर कार्यकाल 1 साल ज्यादा होता है. विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल छह साल के लिए होता है. वहीं, विधानसभा सदस्य यानी विधायक का कार्यकाल 5 साल का होता है.
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एमएलसी चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 30 साल होनी चाहिए.
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एक तिहाई सदस्यों को विधायक चुनते हैं.
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एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम, नगरपालिका, जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के सदस्य चुनते हैं.
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1/12 सदस्यों को शिक्षक और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रेजुएट चुनते हैं.
उपरोक्त नियम के अनुसार, यूपी में विधान परिषद के 100 में से 38 सदस्यों को विधायक चुनते हैं. वहीं, 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य (BDC) और नगर निगम या नगरपालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं. 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. इसके अलावा 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं.
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उच्च सदन यानी विधान परिषद में किसका दम रहेगा, यह निचले सदन यानी विधानसभा में पार्टियों के विधायकों की संख्या पर भी निर्भर करता है. मसलन, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में साल 2004 में हुए चुनाव में सपा 36 में से 24 सीटों पर काबिज हुई थी. वहीं, बसपा के पास एक भी सीट नहीं थी. इसके बाद साल 2010 में जब इन सीटों पर दोबारा चुनाव हुए तो बसपा की मायावती मुख्यमंत्री थीं. उन्होंने यूपी की 36 विधान परिषद सीट में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद साल 2016 में अखिलेश यादव के सीएम रहते चुनाव हुए तो सपा 31 सीटें जीतने में सफल रही थी. इसमें 8 सीट पर सपा ने निर्विरोध जीत दर्ज कर रिकॉर्ड बनाया था. यही कारण है कि वर्तमान में सपा के पास एमएलसी की ज्यादा सीटें हैं.
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प्रदेश में स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद की 35 सीटें हैं. इसमें मथुरा-एटा-मैनपुरी सीट से दो प्रतिनिधि चुने जाते हैं. इसलिए 35 सीटों पर 36 सदस्यों का चयन होता है. अमूमन यह चुनाव विधानसभा के पहले या बाद में होते रहे हैं. इस बार 7 मार्च को कार्यकाल खत्म होने के चलते चुनाव आयोग ने विधानसभा के बीच में ही इसकी घोषणा कर दी थी. बाद में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर परिषद के चुनावों को टाल दिया गया था. स्थानीय निकाय की सीट पर सांसद, विधायक, नगरीय निकायों, कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य, जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायतों के सदस्य, ग्राम प्रधान वोटर होते हैं.