Bareilly News: बहुजन समाज पार्टी (BSP) का राष्ट्रीय दल का दर्जा खतरे में है. बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 1993 के बाद सबसे कम मत (वोट) मिले हैं. यह घटकर सिर्फ 13 फीसद रह गए हैं. इससे पार्टी काफी खराब दौर में पहुंच गई है. यूपी में 22 फीसदी दलित हैं, लेकिन पार्टी को 13 फीसदी वोट मिले हैं. इससे साफ है कि पार्टी का अपना बेस वोटर भी पार्टी से दूर हो गया है. जिसके चलते सिर्फ एक ही विधायक बना है.
दिल्ली एमसीडी चुनाव में एक फीसद से कम वोट मिले हैं. बीएसपी का ग्राफ 2012 यूपी विधानसभा चुनाव से गिर रहा है. 2017 में बीएसपी 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत में इजाफा नहीं हुआ लेकिन एसपी के साथ गठबंधन का फायदा मिला, और 10 लोकसभा सीटें पार्टी ने जीती थीं. ऐसे में बीएसपी की आगे की राजनीतिक राह काफी मुश्किल है. वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं बचा पाएगी. इसके साथ ही विधानमंडल से लेकर संसद तक में प्रतिनिधित्व का संकट खड़ा हो गया है.
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन आदेश, 1968) में कहा गया है कि एक राजनीतिक दल को एक राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी जा सकती है. यदि वह कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा में 2 प्रतिशत सीटें जीतता है, लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम चार या अधिक राज्यों में हुए मतदान का कम से कम 6 फीसदी वोट हासिल करता है. इसके अलावा, यह कम से कम चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करता है. पार्टी को चार प्रदेशों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता मिलती है. चुनाव आयोग ने आखिरी बार 2016 में नियमों में संशोधन किया था, ताकि पांच के बजाय हर 10 साल में राष्ट्रीय और राज्य पार्टी की स्थिति की समीक्षा की जा सके.
बसपा की स्थापना लोकप्रिय नेता कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 में की थी. इस पार्टी का राजनीतिक प्रतीक (चुनाव चिन्ह) एक हाथी है. बसपा के 13वीं लोकसभा (1999-2004) में पार्टी के 14 सदस्य थे. 14वीं लोकसभा (2004- 2009) में यह संख्या 17 और 15वीं लोकसभा 2009- 2014 में यह संख्या 21 थी, लेकिन 16 वीं लोकसभा (2014- 2019) में एक भी सांसद नहीं था. मगर, 17 वीं लोकसभा (2019) में सपा गठबंधन का फायदा मिला. बसपा के 10 सांसद हैं.
बसपा के एक जोनल कोर्डिनेटर ने बताया कि पार्टी ने दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यकों के लिए संघर्ष करने का फैसला लिया है, और अब इन्हीं की बदौलत फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी है. इसके लिए काम शुरू हो चुका है. बसपा ने वापस मुसलमानों को साथ लाने का काम शुरू किया है. सूबे के बड़े मुसलमान नेताओं को पार्टी में शामिल कराया जाएगा. पार्टी में उनकी भागीदारी बढ़ाई जाएगी. दलित-मुसलमान गठजोड़ को फिर से मजबूत बनाया जाएगा.
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बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे और राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद पार्टी को नया रूप देने की कोशिश में जुटे हैं. उनकी अगुआई में ही पार्टी दलित और पिछड़े वर्ग के युवाओं को जोड़ने का काम कर रही है. पार्टी में युवा, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग की भूमिका बढ़ाई जाएगी. तमाम दलित संगठनों को भी पार्टी से जोड़ा जाएगा. पार्टी से छिटके काडर वोटर्स को वापस लाने के लिए भी काम करेगी. इसके अलावा गैर यादव पिछड़े वोटर्स को भी बसपा से जोड़ने का भी प्रयास होगा. इसके लिए अलग-अलग जातियों के बड़े नेताओं को पार्टी में अहम पद दिया जाएगा.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली