Bareilly: समाजवादी पार्टी निकाय चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. पार्टी ने इसमें ओबीसी, मुस्लिम के साथ दलित कार्ड खेलने की रणनीति बनाई है. दरअसल उपचुनाव में लखीमपुर खीरी की गोला गोकर्णनाथ विधानसभा, मैनपुरी लोकसभा, खतौली और रामपुर विधानसभा में दलित मतदाता (एससी वोटर) सपा के साथ रहा है. मगर, अब सपा की जिम्मेदारी एससी वोटर को जोड़े रखने की है.
सपा ने इसलिए बरेली नगर निगम की मेयर (महापौर) सीट पर एससी कैंडिडेट को उतारने का फैसला किया है. इसके लिए नाम फाइनल हो गया है. हालांकि, यह सीट आरक्षण में अनारक्षित है. मगर, सपा कभी भी बरेली नगर निगम में पार्टी सिंबल पर मेयर नहीं बना पाई है. यहां पिछली बार भी भाजपा का मेयर बना था, लेकिन अब सपा ओबीसी, मुस्लिम और एससी वोटर के सहारे मेयर सीट जीतने की कोशिश में है. आरक्षण में आगरा एससी महिला और झांसी एससी को रिजर्व हुई है. लेकिन, सपा बरेली में भी एससी कैंडिडेट को चुनाव लड़ाकर यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले दलितों को पैगाम देगी. सपा ने कभी भी अनारक्षित सीट पर एससी को नहीं लड़ाया है.
सपा के फैसले से विपक्षी दल बेचैन हैं.एक सपाई ने दबी जुबान से बताया कि बरेली से लखनऊ तक सपा में अपना कैंडिडेट भेजकर फैसला बदलवाने की कोशिश शुरू हो गई है, जिससे मेयर सीट पर कब्जा बरकरार रखा जा सके. इसमें कुछ सपाई भी शामिल हो गए हैं, जो अनारक्षित सीट पर एससी कैंडिडेट को न लड़ाने की सलाह देने के साथ ही माहौल बनाने में जुट गए हैं. मगर, आखिरी फैसला सपा प्रमुख अखिलेश यादव को करना है.
बरेली नगर निगम में 8,32,948 मतदाता हैं. इसमें करीब 3.75 लाख मुस्लिम, 1.05 लाख एससी, 27 हजार यादव, 70 हजार वैश्य, 55 हजार कायस्थ, 37 हजार ब्राह्मण आदि प्रमुख हैं. लेकिन, एससी कैंडिडेट होने से सपा के पास 5 लाख से अधिक बेस वोट हो जाएगा. इसके साथ ही अन्य ओबीसी वोट मिलने से वोट बढ़ सकता है. यह गणित विपक्षियों को परेशान कर रहा है. सपा नेता ने बताया कि पार्टी नेताओं ने मेहनत की तो लंबे अंतर से जीत तय है. इसलिए भाजपाइयों के साथ ही सपा का गड्ढा खोदने वाले सपाई भी सक्रिय हो गए हैं.
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बरेली की शहर, कैंट विधानसभा सीट के साथ ही मेयर सीट पर सपा सभी जातियों के प्रत्याशी लड़ाकर प्रयोग कर चुकीं है. मगर, फेल साबित हुई. विधानसभा में सपा ने शहर और कैंट में वैश्य प्रत्याशी लड़ाए थे. लेकिन, अपने समाज के 5 हजार वोट भी नहीं ले पाए. वैश्य समाज का कोई भी बूथ नहीं जीते थे. लंबे अंतर से चुनाव हारे. इससे पहले कायस्थ भी लड़ाया. लेकिन, सपा के वोट के अलावा कोई वोट नहीं ले पाया. इसलिए लंबे अंतर से चुनाव हार गए.