Lucknow News: प्रदेश के जंगलों में इको पर्यटन आज से शुरू हो गया है. दुधवा टाइगर रिजर्व, पीलीभीत टाइगर रिजर्व, कतर्नियाघाट, चूका, सोहगीबरवा वन्य जीव क्षेत्र, कैमूर वन्य जीव विहार, चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य और चम्बल वन्य जीव विहार सहित अन्य इको पर्यटन स्थलों के द्वार आज से पर्यटकों के लिए खोल दिए गए हैं. सैलानियों के लिए आज 15 नवंबर से 15 जून तक का समय वन्य व जलीय जीवों की सुखद और सहज उपस्थिति देखने वाला होगा.
प्रदेश में कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य की बात करें शहरी कोलाहल से दूर एक कतर्नियाघाट एक ऐसी जगह है, जिसके जर्रे-जर्रे पर प्रकृति ने अपनी खूबसूरती लुटा रखी है. घने जंगल, नदी-तालाबों के बीच उड़ान भरते पंछी, मदमस्त होकर नाचता मोर और विचरण करते दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव, इस पूरे वन्य क्षेत्र को दुनिया के सबसे सुन्दर ईको टूरिज्म वाले इलाकों में शुमार करते हैं.
प्रकृति कतर्नियाघाट सेंचुरी पर इस कदर मेहरबान हुई है कि यहां के बारे में कहा जाता है कि इस स्थान पर ‘दुर्लभ ही सुलभ’ है. जंगल के बीच में बहने वाली गिरवा नदी यहां के माहौल को और भी रमणीय बना देती है. गिरवा रिवर बोट सफारी का आनन्द यहां आया हर पर्यटक लेना चाहता है.
गिरवा नदी देश की उन नदियों में से है जिनमें, ताजे पानी में पाई जाने वाली डॉल्फिन रहती हैं। इन डॉल्फिन का यह प्राकृतिक निवास है और नदी में इनके आभास मात्र से ही एक अलग रोमांच की अनुभूति होती है. इसलिए रिवर बोट सफारी घूमे बिना बिना पर्यटकों की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है.
पर्यटन सत्र की शुरुआत होने के साथ ही विभाग ने तैयारियां पूरी कर ली हैं. इस बार पर्यटक उद्घाटन के दिनों से ही बोट सफारी का आनंद ले सकेंगे. कुलांचे भरते हिरनों के झुंड, गेरुआ नदी में उछल कूद करती डाल्फिनें, धूप सेंकते घड़ियाल और जंगल का मनोरम दृश्य आपका मन मोह लेगा.
551 वर्ग किलोमीटर में फैला कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार कई मायनों में देश के अन्य राष्ट्रीय अभ्यारण्यों से ज्यादा समृद्ध है. यहां के संरक्षित माहौल के कारण तेजी से घट रहे बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है. यहां मौजूद बेंत के जंगल बाघों के सबसे मुफीद प्राकृतिक आवास माने जाते हैं. हिरणों की बड़ी तादाद से लेकर पानी की मौजूदगी बाघों की संख्या बढ़ने का अहम कारण है.
इसके अलावा तेंदुए, हाथी, बारहसिंघा, स्पौटेड डियर, स्नैक बर्ड व अन्य दुर्लभ वन्यजीव सेंचुरी को बेहद भव्य बनाते हैं. यहां की खुशगवार आबो-हवा में मदमस्त होकर नाचते मोर पर्यटकों का मन मोह लेते हैं. कतर्नियाघाट को यहां बहुतायात में दिखने वाले घड़ियालों के कारण भी जाना जाता है. विलुप्त होते जीवों के दर्जे में शामिल ये घड़ियाल विश्व में मात्र भारतीय उपमहाद्वीप में पाये जाते हैं.
नदी के ऊपर उड़ते पंछियों के झुण्ड का नजारा तो मन को प्रसन्न कर देता है. लारसर, बड़ा पनकौआ, सुरखाब, यहां की रौनक को और बढ़ाते नजर आते हैं. पर्यटक इन पक्षियों को अच्छी तरह से दीदार कर सकें, इसके लिए विभिन्न स्थानों पर बर्ड टॉवर भी बनाए गए हैं.
कतर्निया रेंज में गेरुआ नदी के तट पर थारू हट और सेमल के पेड़ों पर ट्री हट जैसी शानदार व्यवस्था की गई है. यहां बैठकर आप प्राकृतिक विविधता के रोमांच का आनंद उठा सकते हैं. गेरुआ के किनारे ऊंट से दोगुने ऊंचे इन ट्री हट पर एक रात वीराने में बिताना आपकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हों में से हो सकता है.
विशेषज्ञों ने कई कोणों से गेरुआ के किनारे विभिन्न पेड़ों को देखने-परखने के बाद बोटिंग प्वाइंट के पास सेमल के इन ऊंचे दरख्तों पर यह अत्याधुनिक हट बनवायी है, जो सुविधा के मामले में बड़े होटलों को भी मात देती है.
इसके अलावा ककरहा रेंज में स्विस कॉटेज भी सैलानियों का इस्तकबाल करता नजर आता है. मोतीपुर और ककरहा रेंज में इको टूरिज्म के रूप में विकसित विश्राम भवन के अलावा वातानुकूलित थारू हट, डबल स्टोरी डॉरमेट्री की व्यवस्था है. इनमें आधुनिक शौचालय का भी निर्माण किया गया है. इको टूरिज्म के लिए नए सिरे से निर्मित भवनों के अलावा ककरहा, मोतीपुर, निशानगाड़ा, धर्मापुर, मुर्तिहा और कतर्नियाघाट गेस्ट हाउस में भी पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था है.
अतिथि गृहों के आरक्षण के लिए बहराइच स्थित वन विभाग के डिवीजन कार्यालय पर प्रार्थना पत्र देने के साथ ऑनलाइन बुकिंग कराने के लिए वेबसाइट www.upecotourism.in पर भी संपर्क कर सकते हैं. इस वेबसाइट पर इको टूरिज्म के सभी प्रमुख पर्यटन स्थलों के लिए ऑनलाइन बुकिंग भी कराई जा सकती है.
कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग बहराइच के डीएफओ आकाशदीप बधावन ने बताया कि सैलानियों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए कर्मचारियों को तैनात किया गया है. जंगल क्षेत्र में पर्यटकों के भोजन आदि की व्यवस्था भी कैंटीन लगाकर की गई है. सफारी के दौरान गाइड और वन सुरक्षा कर्मी भी मुस्तैद हैं, जिससे कि सैलानियों को जंगल से रूबरू कराया जा सके.