यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) नजदीक है. लिहाजा सूबे की सत्ता में पहुंचने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. इसी दौरान ब्राह्मणों पर राजनीति (Politics On Brahmin) भी खूब हो रही है. एक तरफ जहां बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) ने अयोध्या में शुक्रवार (23 जुलाई) को प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी का आयोजन कर ब्राह्मण सम्मेलनों के पहले चरण की शुरुआत की तो वहीं सपा राज्य में भगवान परशुराम की सबसे ऊंची प्रतिमा लगाने का वादा कर रही है. जबकि कांग्रेस में किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग उठ रही है.
बसपा सुप्रीमो मायावती अपना पूरा फोकस ब्राह्मण और दलित गठजोड़ पर कर रही है. इसका संकेत अयोध्या में हुए सम्मेलन के दौरान पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने दिया. उन्होंने कहा कि अगर 13 फीसदी ब्राह्मण 23 फीसदी दलित समुदाय से हाथ मिला लें तो बसपा की जीत निश्चित है. सतीश चंद्र मिश्रा ने यह भी बताया कि इस सम्मेलन के दूसरे चरण का आगाज मथुरा, तीसरे चरण का वाराणसी, चौथे चरण का चित्रकूट और पांचवे चरण का बुद्ध की भूमि से होगा. बता दें कि, सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती का बेहद करीबी माना जाता है.
यूपी विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण फैक्टर अहम भूमिका निभा सकता है. बीजेपी अपने इस परंपरागत वोट बैंक को जहां पाले में बनाए रखने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही है तो वहीं विपक्ष भी इन्हें अपने साथ रखने के लिए पूरी कोशिश कर ही है. बता दें कि चाहे 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव, ब्राह्मणों ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया, जिसका नतीजा यह रहा कि राज्य में बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली. इतनी सीटें राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी पार्टी को नहीं मिली थी.
बसपा की बात करें तो साल 2007 के विधानसभा चुनाव में दलित और ब्राह्मण के गठजोड़ से पार्टी की सूबे में बहुमत की सरकार बनी थी और मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं. यही वजह है कि इस बार पार्टी दलित और ब्राह्मण गठजोड़ पर ज्यादा फोकस कर रही है.
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समाजवादी पार्टी भी बसपा की तरह ब्राह्णण सम्मेलन का आयोजन करेगी. इसका आगाज 23 अगस्त को पूर्वांचल के बलिया जिले से होगा. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे की अध्यक्षता में पार्टी के पांच ब्राह्मण नेताओं ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की थी, जिसके बाद अखिलेश ने यह निर्णय लिया.
ब्राह्मण कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक रहा है, लेकिन पिछले कई सालों से यह वर्ग इससे दूर होता जा रहा है. पार्टी की पकड़ इस वर्ग पर कमजोर होती जा रही है. समय की नजाकत को देखते हुए अब कांग्रेस भी प्रमोद तिवारी , राजेश त्रिपाठी, आराधना मिश्रा मोना और आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे ब्राह्मण चेहरों को आगे रखकर अपने पुराने रिश्ते की याद दिला रही है. वहीं पार्टी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि अगर पार्टी प्रियंका गांधी के चेहरे को आगे कर विधानसभा चुनाव लड़े तो पार्टी को ब्राह्मणों के साथ-साथ पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों का अच्छा वोट मिलेगा. प्रियंका ही ब्राह्मणों को कांग्रेस की तरफ फिर से ला सकती हैं.
माना जा रहा है कि बीजेपी इस बार विधानसभा चुनाव में युवाओं को तरजीह दे सकती है. पार्टी युवाओं पर अधिक भरोसा दिखाने के मूड में है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि बीजेपी नॉन परफॉर्मिंग विधायकों का टिकट काट सकती है. वहीं बसपा और सपा के ब्राह्मणों पर राजनीति करने को लेकर भाजपा का कहना है कि ये दोनों पार्टियां जातिवादी राजनीति पर उतर आई हैं. यूपी में अब जाति-जमात की राजनीति नहीं चलेगी. ब्राह्मण प्रबुद्ध वर्ग है और वो राज्य के विकास और उसके भविष्य पर वोट देगी.