UP Vidhansabha Chunav 2022: यूपी विधानसभा चुनाव (UP Aseembly Election 2022) को लेकर सियासी दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. चुनाव जीतने के लिए वे सभी हथकंडे अपना रहे हैं. एक तरफ जहां उनकी नजर ब्राह्मणों को लुभाने पर है तो वहीं मुस्लिम वोट बैंक को भी साधने की कोशिश में लगे हुए हैं. यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जिनका सूबे की 403 विधानसभा सीटों में से 120 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है. जिसकी तरफ वे झुकेंगे, उसकी जीत निश्चित है. यही वजह है कि विपक्षी पार्टियों में इन्हें अपने पाले में करने के लिए होड़ मची हुई है.
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसे देखते हुए सपा, बसपा और कांग्रेस सभी पार्टियों ने मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है. कांग्रेस ने एक तरफ जहां इमरान मसूद को दिल्ली का सहप्रभारी और राष्ट्रीय सचिव का पद दिया है तो वहीं इमरान प्रतापगढ़ी को अल्पसंख्यक मोर्चे का चेयरमैन बनाया गया है. इसके जरिए मुस्लिमों को ये मैसेज देने की कोशिश की गई है कि उनकी असली शुभचिंतक कांग्रेस ही है.
कांग्रेस का कहना है कि पिछले कई सालों से यूपी का मुसलमान समाजवादी पार्टी पर भरोसा करता आ रहा है लेकिन सत्ता में आने के बाद वह इन्हें भूल जाती है और केवल एक जाति विशेष पर ध्यान देती है. कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस की सरकार में ही मुसलमान सुरक्षित रह सकता है.
बसपा सुप्रीमो मायावती भी मुस्लिमों को अपनी तरफ करने का पूरा प्रयास कर रही हैं. उन्होंने लालजी वर्मा को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने पर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. उनके स्थान पर शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को यूपी विधानमंडल दल का नेता नियुक्त किया है. मायावती ने ऐलान किया है कि वे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी और अकेले चुनाव लड़ेंगी.
बहुजन समाज पार्टी को साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटें मिली थी लेकिन उपचुनाव में वह एक सीट हार गई. इसके अलावा उसके 9 विधायकों ने बागी रुख अख्तियार कर लिया जबकि दो विधायकों को मायावती ने पार्टी से निष्कासित कर दिया. अब बसपा के कुल सात विधायक ही बचे हैं. सूत्रों के मुताबिक, मायावती इस बार 90 से 100 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार सकती है. पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे.
समाजवादी पार्टी की बात करें तो वह भी मुस्लिम वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश कर रही है. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा किया था और उन्हें टिकट दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने के पीछे का मकसद मुसलमानों में यह संदेश देना था कि उनकी असली शुभचिंतक सपा ही है
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इसके अलावा, पार्टी के सांसद सांसद एसटी हसन ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि शरीयत में छेड़छाड़ की वजह से लोग आपदा का शिकार हो रहे हैं. उनके इस बयान को भी मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है. सपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में 67 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे.
वहीं, हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. एआईएमआईएम भी मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए जी जान से जुटी हुई है.
अगर भाजपा के नजरिए से देखा जाए तो जिस तरह से विपक्ष मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए जुटा है, उससे मुस्लिम वोटर बंट जाएंगे और इसका फायदा उसे विधानसभा चुनाव में मिलेगा. इसके अलावा भाजपा योगी सरकार के कामकाज का ब्यौरा भी जनता के सामने रखेगी. वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी.
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बता दें, भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला था. पार्टी ने 311 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि उसके सहयोगी अपना दल को 9 और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को 4 सीटें मिली थी. वहीं सपा और कांग्रेस के गठबंधन को 54, बसपा को 19 और अन्य को 6 सीटें मिली थी.
Posted by: Achyut Kumar