Varanasi: रामचरितमानस पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य की बयानबाजी को लेकर मामला शांत नहीं हो रहा है. उनके बयान से नाराज भाजपा के लोगों ने रविवार को वाराणसी से सोनभद्र जाते वक्त स्वामी प्रसाद मौर्य को काले झंडे दिखाए और उनकी गाड़ी पर काला झंडा, स्याही फेंकी.
इस दौरान पुलिसकर्मियों ने विरोध जताने वालों को रोकने की कोशिश की. लेकिन वह सफल नहीं हुए. भाजपा नेता दीपक सिंह राजवीर ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार रामचरितमानस पर टिप्पणी कर रहे हैं. ऐसा वह अपनी राजनीति चमकाने के लिए कर रहे हैं. सनातन धर्म को मानने वाले हर जाति के लोग इसे स्वीकार नहीं कर सकते. इसीलिए हमने काला झंडा और काली स्याही फेंककर अपना विरोध जताया. अगर स्वामी प्रसाद मौर्य भी इसके बाद भी नहीं मानते हैं तो युवा एकजुट होकर उनके खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करेंगे.
इस बीच स्वामी प्रसाद ने लखनऊ जनपद का नाम बदलने को लेकर फिर बयानबाजी की है. उन्होंने लखनऊ का नाम राजा लाखन पासी के नाम पर रखने की मांग की है. दरअसल भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ का नाम लखनपुर या लक्ष्मणपुर करने की मांग की थी. इसके बाद सपा नेता ने लखनऊ का नाम बदलने की मांग को लेकर बयान दिया है.
सपा नेता कहा कि लक्ष्मण के नाम पर आपत्ति होने के सवाल पर कहा कि लक्ष्मण यहां थे ही नहीं. उन्होंने कहा कि लखनऊ का नाम लाखन पासी नहीं कर पा रहे हैं, तो पासी समाज की गौरव ऊदा देवी के नाम कर देना चाहिए. जिन्होंने 1857 की क्रांति के दौरान लखनऊ में 36 अंग्रेजी सैनिकों को मार गिराया था.
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लखनऊ में आज स्थान पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की भव्य इमारत खड़ी है. उसी टीले पर राजा लाखन पासी का किला हुआ करता था. लाखन पासी का राज्य 10-11 वीं शताब्दी में था. लाखन पासी का किला धरातल से 20 मीटर ऊंचा था. इसके मुख्य भाग पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज स्थापित है. यही स्थान लाखन पासी किला के नाम से जाना जाता है. टीले पर ही बड़ा इमाम बाडा़ मेडिकल कॉलेज, मच्छी भवन टीलें वाली मस्जिद तथा आस पास का क्षेत्र है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि लखनऊ लाखन पासी के नाम से बसाया गया था. वहीं कुछ का मानना है कि राजा लाखन पासी की पत्नी का नाम लखनावती था. संभवतः कुछ दिनों तक इसीलिए लखनऊ का नाम भी लखनावती चलता था.
लखनऊ के इतिहास में ऊदा देवी की बहादुरी का जिक्र है. दलित समुदाय से आने वाली ऊदा देवी, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल की सुरक्षा में तैनात थीं जबकि उनके पति मक्का पासी नवाब की सेना में थे. इतिहासकारों के मुताबिक ऊदा देवी, हजरत महल बेगम की सेना का हिस्सा थीं. वो अपने पति के जीवन काल में ही सैनिक के रूप में शिक्षित हो चुकी थीं.
साल 1857 में भारत में जब अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह हुआ तो लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने तत्कालीन कलकत्ता और वर्तमान में कोलकाता निर्वासित कर दिया था. उस समय विद्रोह का परचम उनकी बेगम हजरत महल ने उठाया. लखनऊ के पास चिनहट नाम की जगह पर नवाब की फौज और अंग्रेजों के बीच टक्कर हुई और इस लड़ाई में ऊदा देवी के पति मक्का पासी मारे गए. पति की मौत से दुखी ऊदा देवी ने अंग्रेजों से इसका बदला लिया. 16 नवंबर 1857 को वीरांगना ऊदा देवी ने 36 अंग्रेजों को पीपल के पेड़ पर चढ़ कर मारा. ऊदा देवी की वीरता की मिसाल पेश कर अंग्रेज भी दंग रह गए थे.