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अनोखा पलायनः पुरुष रह गये गांव में, महिलाएं चलीं शहर की ओर, जानें आखिर क्‍यों

Uttarakhand : व्यवसायी हर्षिल माधवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि बागवानी व पर्यटन से क्षेत्र के युवा जुड़े हुए हैं. स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं. ग्रामीण आर्थिक रूप से भी संपन्न हैं. लेकिन क्षेत्र में शिक्षा के लिए बेहतर संसाधन नहीं हैं. जिससे महिलाएं बच्चों के साथ शहरों में रहने को मजबूर हैं.

उत्तरकाशी (उत्तराखंड) : विकासखंड भटवाड़ी के करीब आठ गांवों में अनोखा पलायन हुआ है. इन गांवों के 80 फीसदी परिवारों की महिलाओं ने शहरी क्षेत्रों में पलायन किया है. अनोखी बात यह है कि उक्त महिलाएं रोजगार के लिए गांव से शहर नहीं गई हैं. बल्कि बच्चों की अच्छी पढ़ाई के ल‌िए इन्होंने गांवों से पलायन किया है. जबकि पुरुष गांवों में ही रह रहे हैं. विकासखंड भटवाड़ी के सुक्की, झाला, जसपुर, पुराली, हर्षिल, बगोरी, मुखबा और धराली में सेब की बागवानी बड़े स्तर पर की जाती है.

इसके अलावा यहां आलू, राजमा जैसी नगदी फसलों का उत्पादन भी किया जाता है. इन गांवों के ग्रामीण युवा बड़ी संख्या में पर्यटन से भी ‌जुड़े हुए हैं. जिससे यहां के ग्रामीण आ‌र्थिक रूप से काफी हद तक संपन्न हैं. यहां के ग्रामीणों को गांवों में ही स्वरोजगार उपलब्ध हो जाता है. लेकिन ग्रामीणों की सबसे बड़ी समस्या क्षेत्र में शिक्षा के बेहतर संसाधन न होना है. ग्रामीणों का कहना है कि हर्षिल में अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय होना चाहिए. इसके ‌‌लिए जीआईसी हर्षिल को अटल उत्कृष्ठ विद्यालय का दर्जा दिया जाना चाहिए. अटल उत्कृष्ठ विद्यालय का दर्जा मिलने पर यहां छात्रों को बेहतर सुविधाएं मिल सकती हैं. लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण यहा छात्रों की संख्या लगातार घट रही है. बच्चों को पढाने के लिए करीब 80 फीसदी परिवारों की महिलाएं देहरादून या उत्तरकाशी में रह रही हैं.

व्यवसायी हर्षिल माधवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि बागवानी व पर्यटन से क्षेत्र के युवा जुड़े हुए हैं. स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं. ग्रामीण आर्थिक रूप से भी संपन्न हैं. लेकिन क्षेत्र में शिक्षा के लिए बेहतर संसाधन नहीं हैं. जिससे महिलाएं बच्चों के साथ शहरों में रहने को मजबूर हैं. शिक्षा के बेहतर संसाधन उपलब्ध हों तो गांव पूरी तरह गुलजार रहेंगे. सुक्की गांव के सेब काश्तकार मोहन सिंह राणा का कहना है कि हमारे गांवों में सेब, राजमा, आलू की अच्छी पैदावार होती है. पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं. इन क्षेत्रों में ग्रामीण बेहतर कार्य कर रहे हैं. जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी है. इतना सब कुछ होने के बावजूद भी हमें शिक्षा के लिए गांवों से पलायन करना पड़ रहा है. क्षेत्र में ‌शिक्षा की बेहतर सुविधा न होने बच्चों सहित उत्तरकाशी शहर में रह रहे हैं. यदि हर्षिल या भटवाड़ी में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय की सुविधा उपलब्ध हो जाए, तो हमें गांव नहीं छोड़ना पड़ेगा.

अनुप्रिया रावत ने कहा कि हमारे गांवों में स्वरोजगार के बेहतर साधन उपलब्ध हैं. जिन से जुड़कर गांवों के युवा अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं. लेकिन क्षेत्र में शिक्षा की बेहतर सुविधाएं नहीं हैं. मैं अपना गांव छोड़ बच्चों की पढ़ाई के लिए देहरादून रह रही हूं. हर्षिल क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय की स्थापना होनी चाहिए. जिससे गांव में रह कर ही बच्चों को अच्छी सुविधा मिल सके.

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क्या चाहते हैं ग्रामीण

ग्रामीणों का कहना है कि यदि हर्षिल में केंद्रीय विद्यालय क‌ी स्थापना हो जाती है तो ग्रामीणों की ‌बेहतर शिक्षा की समस्या का समाधान हो जाएगा. यहां ग्रामीण लंबे समय से केंद्रीय विद्यालय की मांग भी कर रहे हैं. ग्रामीण माधवेंद्र ने बताया कि इसके लिए ग्रामीणों ने झाला गांव में 150 नाली भूमि दान भी की है. हांलाकि भटवाड़ी तहसील मुख्यालय में भी लंबे समय से केंद्रीय विद्यालय स्थापना की मांग की जा रही है. जो शासन में लंबित हैं. यदि यहां भी केंद्रीय विद्यालय खुल जाता है तो काफी हद तक ग्रामीणों की समस्या का समाधान हो सकता है.

जीआईसी हर्षिल प्रभारी प्रधानाचार्य केसर सिंह ने कहा कि जीआईसी हर्षिल को अटल उत्कृष्ठ विद्यालय बनाए जाने का प्रस्ताव मिला था. लेकिन मानक पूरे न होने के कारण नहीं बनाया जा सका. वर्तमान में यहां छात्र संख्या 32 है. वहीं डीएम उत्तरकाशी मयूर दीक्षित ने बताया कि भटवाड़ी विकासखंड के पाही में केंद्रीय विद्यालय बनाए जाने के लिए शासन में प्रस्ताव भेजा गया है. भूमि भी चयनित की गई है. यहां निर्माण कार्य होना है.

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