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काशी से वाजपेयी जी का जीवनभर रहा था गहरा लगाव, वाराणसी में सीखे थे पत्रकारिता के कई गुर

भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का काशी से गहरा नाता रहा था. यह कहना है प्रख्यात साहित्यकार और संपादक स्वर्गीय मोहन लाल गुप्ता भइया जी बनारसी के प्रपौत्र राजेश गुप्ता का.

Atal Bihari Vajpayee Jayanti: भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का काशी से गहरा नाता रहा था. उनकी काशी से जुड़ी बातें और स्मृतियां समय-समय पर प्रकाशित की जाती रहती हैं. अटल जी को काशी रास आती थी. यहां की प्रसिद्ध मिठाइयों समेत खानपान से उनका गहरा नाता रहा. उन्होंने काशी से पत्रकारिता शुरू की. काशी के कण-कण से उनका वास्ता रहा. उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था. यह कहना है प्रख्यात साहित्यकार और संपादक स्वर्गीय मोहन लाल गुप्ता भइया जी बनारसी के प्रपौत्र राजेश गुप्ता का.

आज भी भइया जी बनारसी के प्रपौत्र राजेश गुप्ता अपने पितामह और अटल जी के संस्मरणों को याद करते हैं. उन्होंने बताया कि भइया जी बनारसी अंग्रेजी हुकूमत के दौरान वाराणसी के सबसे प्रतिष्ठित अखबार ‘आज’ के साहित्य संपादक थे. 1942 में भइया जी ने ‘समाचार’ अखबार का प्रकाशन किया था. अटल जी का वाराणसी से बहुत ही गहरा नाता रहा. उन्होंने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत वाराणसी से की थी. उस जमाने में बनारस से ‘समाचार’ अखबार निकलता था. आधे पैसे की कीमत वाले उस अखबार में तब अटल बिहारी वाजपेयी, नाना जी देशमुख और बाला साहब देवरस जैसे लोग लिखा करते थे. अटल जी ‘समाचार’ अखबार के लिए लेख, यात्रा संस्मरण और रिपोर्ट लिखा करते थे. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने वीर अर्जुन और पांचजन्य का संपादन भी किया था.

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वाराणसी प्रवास के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी कई कार्यकर्ताओं के घर में रहे. वाराणसी के सोनारपुरा में एक जगह है, जहां केरल और कर्नाटक के लोग रहा करते हैं. वो अपना काफी समय वहां बिताते थे. काशी में संघ के जितने भी कार्यकर्ता रहा करते थे, उन सभी के घरों में वो रूकते थे. हमारे यहां भी काफी दिन रहे हैं.
राजेश गुप्ता, प्रपौत्र, भइया जी बनारसी
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राजेश गुप्ता के मुताबिक उनके पितामह भइया जी बनारसी ने ‘आज’ अखबार में 50 साल तक सेवाएं दी और हिंदी पत्रकारिता के मार्ग का उन्नयन किया. उनके सानिंध्य में रहकर अटल जी ने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी. इस बात की पुष्टि तब हुई जब उनकी वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय में सभा हो रही थी, उसमें हमलोग भी मित्रों के साथ गए थे. वहां अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि काशी मेरे लिए नई नहीं है. शिव की नगरी काशी से मैंने (अटल जी) पत्रकारिता के गुण सीखे हैं.

नानाजी देशमुख, अटल जी, सभी मिलकर साहित्य सृजन करते थे. स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन सभी की लेखनी ने लोगों के अंदर आजादी को लेकर जबरदस्त उत्साह पैदा किया था. एक तरह से कहा जा सकता है कि अटल बिहारी वाजपेयी का जो काशी से नाता था, वो बिल्कुल घर जैसा था. इस लिहाज से भी बनारस के लोग वाजपेयी जी को बनारस का मानते हैं. भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सारे लेख जो ‘आज’ अखबार में आते थे, उसमें सबसे प्रमुख रूप से सिंहावलोकन होता था.

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राजेश गुप्ता के मुताबिक सिंहावलोकन में अटल जी के लेख होते थे. परिशिष्ट में वाजपेयी जी के लेख देश की सुरक्षा, हालात, राजनीतिक मुद्दों पर होते थे. सभी लेख भइया जी बनारसी छापते थे. दोनों लोगों के साथ ने हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. मुझे याद है कि हमारे चाचा और बुआ को डिप्थीरिया हो गया था. उस वक्त डिप्थीरिया एक लाइलाज बीमारी थी. इस बीमारी के लिए एक इंजेक्शन आती थी. हमारे दादाजी कभी किसी से सिफारिश नहीं की थी. मगर, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी जी को खास संदेश भिजवाया. वो उस वक्त विदेश मंत्री हुआ करते थे. वहां से अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संदेश वाहक के हाथों डिप्थीरिया के दस इंजेक्शन भिजवाए थे.

बनारस के खानपान में क्या पसंद था? इसके जवाब में राजेश गुप्ता ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी ठंडई और भांग के शौकीन थे. वो अपने आप को बनारसी कहते थे. उन्हें सारे बनारसी खानपान पसंद थे. मधुर भंडार जलपान गृह के संस्थापक मोहन ने तिरंगी बर्फी अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से बनाई थी. तिरंगी बर्फी के तीनों रंगों में केसरिया रंग केसर से, सफेद रंग बादाम से और हरा रंग पिस्ता से बनाकर उन्होंने एयरपोर्ट पर जाकर दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी को खिलाई थी.

(रिपोर्ट:- विपिन सिंह, वाराणसी)

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