Dev Deepawali 2021: काशी में शुक्रवार की शाम देव दीपावली पर अद्भुत नजारा दिखा. घाटों के शहर वाराणसी में देव दीपावली को लेकर गजब का उत्साह रहा. इस दौरान लगा मानो भगवान शिव साक्षात देवताओं के साथ काशी के गंगा घाटों पर दीपावली मना रहे हैं.
देव दीपावली पर 33 करोड़ देवी-देवता काशी में अदृश्य होकर दीपावली मनाते हैं. 84 घाटों पर दीपकों की रोशनी जब चमकती है तो देवताओं के आने का बोध काशी के कण-कण से होता है.
इन्हीं 84 घाटों में से एक पंचगंगा घाट हैं, जहां से देव दीपावली मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई. पंचगंगा घाट का इतिहास काफी पुराना है. पिछले 15 सालों में देव दीपावली मनाने का जो तरीका बदला है, उसमें पंचगंगा घाट की शुरुआत को नकारा नही जा सकता.
पंचगंगा घाट का हजारा दीपस्तंभ देव दीपावली के दिन 1001 से अधिक दीपों की लौ से जगमगाता है. यह घाट काशी की देव दीपावली की प्राचीनता और परंपरा का अद्भुत संगम है.
महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत हजारा दीपस्तंभ स्थापित किया था. यह हजारा दीप देव दीपावली की परंपरा का साक्षी है. साक्ष्य रूप में काशी में देव दीपावली की शुरुआत भी यहीं से हुई थी.
15 लाख दीपकों से जलने का भव्यतम कीर्तिमान स्थापित करने जा रहे काशी की देव दीपावली में बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है. कार्तिक महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी.
पंचगंगा घाट पर उपस्थित लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियों में सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप जगमगाते हैं. यहां एक साथ पांच नदियों का समागम होता है, जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा, किरणा शामिल हैं.
वाराणसी के पंचगंगा घाट से देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. साल 1785 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी श्रृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.
आज काशी की देव दीपावली इतनी प्रसिद्ध हो चुकी है कि यह लखा मेला में शुमार हो चुका. अर्धचन्द्राकार घाटों के स्वरूप में सजी दीयों की सजावट देव दीपावली के उत्सव को नई भव्यता प्रदान करता है.
(रिपोर्ट: विपिन सिंह, वाराणसी)