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Gyanvapi Case: एएसआई की टीम ज्ञानवापी परिसर में कर रही निरीक्षण, मुस्लिम पक्ष गैरहाजिर, सुरक्षा के कड़े इंतजाम

Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में जिजा जज के आदेश के बाद सोमवार को एएसआई सर्वे शुरू हो गया है. इसके लिए टीम परिसर में दाखिल हो चुकी है. इस बीच इस सर्वे को रुकवाने के लिए मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. उसका कहना है कि एएसआई से सर्वे का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की गई है.

Gyanvapi Case Survey: वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित सील वजूखाने को छोड़कर शेष अन्य स्थानों का वैज्ञाानिक सर्वे सोमवार से शुरू हो गया है. सर्वे को लेकर शुरुआती प्रक्रिया पूरी की जा रही है. इसके लिए एएसआई टीम परिसर में दाखिल हो चुकी है. एएसआई की टीम सर्वे के लिए आधुनिक मशीनों संग पहुंची है. काशी विश्वनाथ धाम के गेट नंबर चार से टीम ने प्रवेश किया. हिंदू पक्ष के लोग परिसर में मौजूद हैं, वहीं दूसरे पक्ष से अभी कोई नहीं पहुंचा है.

पुलिस आयुक्त मुथा अशोक जैन के कैंप कार्यालय पर जिलाधिकारी एस राजलिंगम और अधिवक्ताओं की बैठक के बाद रविवार देर रात इस पर मुहर लगी. सर्वे को लेकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. शासन ने शहर में हाई अलर्ट जारी किया है. सोमवार को सुबह से ही परिसर के बाहर हलचल तेज है.

ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट ने ASI के सर्वे की इजाजत दे दी है. इस मामले में विगत 14 जुलाई को सुनवाई पूरी होने के साथ जिला जज कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. इसके बाद 21 जुलाई को कोर्ट ने सात पन्नों का अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने 4 अगस्त तक ASI को रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिये हैं. इस सर्वे में ASI की टीम 11 बिंदुओं पर पूरे परिसर का सर्वे करेगी. सिर्फ वजूखाने का क्षेत्र इसमें नहीं शामिल है, क्योंकि इसे कोर्ट के आदेश का बाद सील किया गया है.

कोर्ट के आदेश की सौंपी जाएगी प्रति

इस बीच ज्ञानवापी परिसर स्थित सील वजूखाने को छोड़कर शेष अन्य स्थानों के सर्वे से संबंधित जिला जज की अदालत के आदेश की प्रति सोमवार को हिंदू पक्ष की तरफ से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सौंपी जाएगी. साथ ही मुकदमे के अन्य प्रतिवादी उत्तर प्रदेश सरकार, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, पुलिस आयुक्त और जिलाधिकारी को भी अदालत के आदेश की प्रति उपलब्ध कराई जाएगी.

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वादी-प्रतिवादी और अधिवक्ता सर्वे के दौरान रहेंगे मौजूद

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी ने बताया कि जिलाधिकारी और एएसआई की टीम के साथ बैठक में सर्वे की रूपरेखा तय की गई है. सर्वे के दौरान ज्ञानवापी में एएसआई की टीम के अलावा वादी, प्रतिवादी और उनके अधिवक्ता भी मौजूद रहेंगे. सर्वे का काम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो, इसके लिए पुलिस और प्रशासन का हर तरह से सहयोग करेंगे.

उन्होंने कहा कि पिछले साल अधिवक्ता आयुक्त के सर्वे के दौरान फोटो और वीडियो को लेकर अनावश्यक विवाद हुआ था. इस बार जिलाधिकारी से मांग की है कि सर्वे के दौरान सरकारी फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर लगाए जाएं. इससे किसी भी तरह से विवाद की नौबत नहीं आएगी.

एएसआई से सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

इस बीच ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर पूरे परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से सर्वे संबंधी जिला जज की अदालत के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की है. मसाजिद कमेटी का कहना है कि एएसआई से सर्वे का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की गई है. याचिका पर सोमवार को सुनवाई हो सकती है. कमेटी को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस सर्वे पर रोक लगा देगा.

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन ने कहा कि बीते 12 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में स्थित फव्वारे की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. अब उसके अगल-बगल के क्षेत्र का एएसआई से सर्वे का आदेश जिला अदालत ने दिया है.

ज्ञानवापी मामले में महत्वपूर्ण घटनाक्रम

  • काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ था. इसमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी हैं.

  • मुकदमा के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बना दिया. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.

  • अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था, इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था. लेकिन ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी. 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था.

  • 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी. उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा. इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई.

  • 2021 में वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी. आदेश में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए. 10 मई तक अदालत ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी.

  • 6 मई को पहले दिन का ही सर्वे हो पाया था, लेकिन 7 मई को मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध शुरू कर दिया. मामला कोर्ट पहुंच गया.12 मई को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने कमिश्नर को बदलने की मांग खारिज कर दी और 17 मई तक सर्वे का काम पूरा करवाकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.

  • कोर्ट ने कहा कि जहां ताले लगे हैं, वहां ताला तुड़वा दीजिए. कोई बाधा पैदा करने की कोशिश करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए. लेकिन सर्वे का काम हर हालत में पूरा होना चाहिए.

  • 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया. याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने से इनकार करते हुए कहा था कि हम बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते. अब मामले में 17 मई को सुनवाई होगी.

  • 14 मई से ही ज्ञानवापी के सर्वे का काम दोबारा शुरू हुआ. सभी बंद कमरों से लेकर कुएं तक की जांच हुई. इस पूरे प्रक्रिया की वीडियो और फोटोग्राफी भी हुई.

  • 16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि कुएं से बाबा मिल गए हैं. साथ ही हिंदू स्थल होने के कई साक्ष्य मिले है. वहीं मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे के दौरान कुछ नहीं मिला.

  • 24 मई को एक नई याचिका दायर की गयी. इसमें ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों के नमाज पढ़ने पर रोक लगाने, परिसर को हिंदुओं को सौंपने और सर्वे के दौरान कथित तौर पर परिसर में मिले शिवलिंग की नियमित पूजा करने की अनुमति देने की मांग की गयी.

  • 25 मई को जिला जज एके विश्वेरा ने याचिका को फास्ट ट्रैक अदालत में शिफ्ट कर दिया.

  • 15 अक्तूबर को अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई. आदेश के लिए 27 अक्तूबर गुरुवार की तिथि नियत की गई.

  • 18 अक्तूबर तक दोनों पक्षों को लिखित बहस दाखिल करने को कहा गया.

  • 8 नवंबर को जज के अवकाश पर रहने के कारण आदेश नहीं आ सका था.

  • 14 नवंबर को इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाने के लिए 17 नवंबर की तारीख दी. 17 नवंबर को कोर्ट ने इस मामले में अपना अहम आदेश दिया.

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