लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के आदेश के बाद ने ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वे की आज से शुरुआत हो गई. सुबह करीब सात बजे एएसआई की टीम ज्ञानवापी पहुंच गईं. हाईकोर्ट ने एएसआई सर्वे रोके जाने की मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर गुरुवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाया था.हाईकोर्ट के फैसले से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि इस सर्वे से किसी को नुकसान नहीं है.हालांकि हाईकोर्ट में एएसआई सर्वे पर रोके लगाने की याचिका के खारिज होने पर मुस्लिम पक्ष ने देश की सबसे बड़ी अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. सर्वे पर रोक लगाने वाली इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज (शुक्रवार) सुनवाई करेगा.
ज्ञानवापी के सर्वे में कितना समय लगेगा यह सर्वे की मांग करने वाले हिन्दू पक्ष को भी नहीं पता है. हिंदू पक्ष की ओर से पेश वकील सुधीर त्रिपाठी का कहना है कि एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) आज ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करेगा. एएसआई ही बता सकता है कि सर्वे पूरा करने में कितने दिन लगेंगे. अयोध्या में राम मंदिर का सर्वे पूरा करने में 7-8 महीने लग गए.
#WATCH | Varanasi, Uttar Pradesh: Security strengthened around the Gyanvapi premises as ASI (Archaeological Survey of India) will conduct a survey of the Gyanvapi mosque complex today
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) August 4, 2023
Allahabad High Court yesterday allowed ASI to conduct the survey pic.twitter.com/lzNBfLDybD
ज्ञानवापी मामले पर हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा, “इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कल ASI को सर्वेक्षण करने की अनुमति दी. ASI और जिला प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है. हम भी वहां जा रहे हैं. यह सर्वेक्षण इतिहास रचने की ओर एक कदम है. वहीं सर्वे के दौरान एएसाई की टीम ज्ञानवापी परिसर पहुंची तो हिन्दू पक्ष और उनके वकील तो मौके पर मौजृद थे. मुस्लिम पक्ष से कोई नहीं पहुंचा था. साढ़े सात बजे तक मुस्लिम पक्ष के वकील भी वहां नहीं पहुंचे थे.
#WATCH वाराणसी, यूपी: ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) आज ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करेगा।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 4, 2023
ज्ञानवापी मामले पर हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा, "इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कल ASI को सर्वेक्षण करने की अनुमति दी। ASI और जिला प्रशासन ने… pic.twitter.com/TLqpRUrkef
काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ था. इसमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी हैं.
मुकदमा के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बना दिया. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.
अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था, इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था. लेकिन ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी. 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था.
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी. उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा. इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई.
2021 में वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी. आदेश में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए. 10 मई तक अदालत ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी.
6 मई को पहले दिन का ही सर्वे हो पाया था, लेकिन 7 मई को मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध शुरू कर दिया. मामला कोर्ट पहुंच गया.12 मई को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने कमिश्नर को बदलने की मांग खारिज कर दी और 17 मई तक सर्वे का काम पूरा करवाकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि जहां ताले लगे हैं, वहां ताला तुड़वा दीजिए. कोई बाधा पैदा करने की कोशिश करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए. लेकिन सर्वे का काम हर हालत में पूरा होना चाहिए.
14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया. याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने से इनकार करते हुए कहा था कि हम बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते. अब मामले में 17 मई को सुनवाई होगी.
14 मई से ही ज्ञानवापी के सर्वे का काम दोबारा शुरू हुआ. सभी बंद कमरों से लेकर कुएं तक की जांच हुई. इस पूरे प्रक्रिया की वीडियो और फोटोग्राफी भी हुई.
16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि कुएं से बाबा मिल गए हैं. साथ ही हिंदू स्थल होने के कई साक्ष्य मिले है. वहीं मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे के दौरान कुछ नहीं मिला.
24 मई को एक नई याचिका दायर की गयी. इसमें ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों के नमाज पढ़ने पर रोक लगाने, परिसर को हिंदुओं को सौंपने और सर्वे के दौरान कथित तौर पर परिसर में मिले शिवलिंग की नियमित पूजा करने की अनुमति देने की मांग की गयी.
25 मई को जिला जज एके विश्वेरा ने याचिका को फास्ट ट्रैक अदालत में शिफ्ट कर दिया.
15 अक्तूबर को अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई. आदेश के लिए 27 अक्तूबर गुरुवार की तिथि नियत की गई.
18 अक्तूबर तक दोनों पक्षों को लिखित बहस दाखिल करने को कहा गया.
8 नवंबर को जज के अवकाश पर रहने के कारण आदेश नहीं आ सका था.
14 नवंबर को इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाने के लिए 17 नवंबर की तारीख दी. 17 नवंबर को कोर्ट ने इस मामले में अपना अहम आदेश दिया.
03 अगस्त 23 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर एएसआई सर्वे करने का निचली अदालत का आदेश बरकरार रखा
Also Read: UP News : फिरोजाबाद में एक मामले की जांच कर लौट रहे दरोगा की गोली मारकर हत्या, रेंज आइजी मौके पर पहुंचेहिंदू कार्यकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर पहले एक मंदिर मौजूद था और 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर इसे ध्वस्त कर दिया गया था. सर्वेक्षण का आदेश पहली बार वाराणसी जिला अदालत द्वारा दिया गया था, जब याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि सर्वेक्षण यह निर्धारित करने का एकमात्र तरीका था कि क्या ऐतिहासिक मस्जिद के निर्माण के लिए मंदिर को तोड़ा गया था. अपने फैसले में, अदालत ने कहा, “एएसआई के निदेशक को जीपीआर सर्वेक्षण, उत्खनन, डेटिंग पद्धति और वर्तमान संरचना की अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच करने का निर्देश दिया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्याहिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर इसका निर्माण किया गया है.”
सर्वेक्षण टीम मस्जिद के खंभों के साथ-साथ पश्चिमी दीवार की उम्र निर्धारित करने के लिए परीक्षण करेगी. संरचना के नीचे क्या है यह निर्धारित करने के लिए एक रडार सर्वेक्षण भी किया जाएगा, लेकिन यह मस्जिद के तीन गुंबदों तक ही सीमित रहेगा. सर्वेक्षण टीम परिसर के सभी तहखानों को भी स्कैन करेगी और इमारत में मिलने वाली कलाकृतियों की एक सूची तैयार करेगी.जो कलाकृतियां मिली हैं, उनकी उम्र निर्धारित करने के लिए उनका परीक्षण भी किया जाएगा.
मस्जिद का ‘वज़ुखाना’ – जहां याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वह संरचना ‘शिवलिंग’ थी, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सर्वेक्षण के दायरे में नहीं होगी.अदालत ने एएसआई को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है कि मस्जिद को कोई नुकसान न हो. अदालत ने कहा, “एएसआई के निदेशक को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया जाता है कि विवादित भूमि पर खड़ी संरचना को कोई नुकसान न हो और यह बरकरार रहे.”