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Varanasi News: जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने सजाई नृत्य की महफिल, काशी की अनोखी है ये परंपरा

Varanasi News: वाराणसी के इस अनोखे आयोजन की शुरुआत मणिकर्णिका घाट पर स्थित बाबा महाश्मशान नाथ के श्रृंगार से होती है. श्रृंगार के बाद नगर वधुएं बाबा के दरबार में मत्था टेकती हैं और फिर अपना नृत्यांजलि अर्पित करती हैं.

Varanasi News: काशी अद्भुत है और इस अद्भुत शहर की परम्पराएं भी निराली है. काशी की यहीं परम्पराएं इस अद्भुत शहर को दुनिया से अलग करती हैं. ऐसी ही अद्भुत और अनोखी परंपरा है काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं के नृत्य की. जो हर साल चैत्र नवरात्रि के सप्तमी तिथि को मणिकर्णिका घाट पर देखने को मिलती है. एक ओर घाट पर चिताएं जलती हैं तो दूसरी तरफ नगर वधुएं यहां अपना नृत्य प्रस्तुत करती हैं. पूरी दुनिया में सिर्फ काशी ही एकमात्र ऐसा शहर है जहां ऐसी तस्वीर देखने को मिलती है.

वाराणसी के इस अनोखे आयोजन की शुरुआत मणिकर्णिका घाट पर स्थित बाबा महाश्मशान नाथ के श्रृंगार से होती है. श्रृंगार के बाद नगर वधुएं बाबा के दरबार में मत्था टेकती हैं और फिर अपना नृत्यांजलि अर्पित करती हैं. साढ़े तीन सौ साल से ज्यादा की परंपरा के तहत शुक्रवार रात नगर वधुओ ने बाबा मशाननाथ के दरबार में नृत्य की भावांजलि प्रस्तुत कर अपने मोक्ष मुक्ति की कामना की. रात में शुरू हुआ यह आयोजन मंगला आरती तक चलता रहा.

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मन्दिर बाबा मशान नाथ मन्दिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि यह आयोजन काशी की प्राचीन परम्पराओं मे से एक है. यह नवरात्रि के पँचमी तिथि से लेकर के सप्तमी तिथि तक तीन दिवसीय श्रृंगार मणिकर्णिका घाट पर बाबा श्मशाननाथ का आयोजित किया जाता है. जिसमे आज अंतिम बाबा तांत्रिक विधान से श्रृंगार व पूजन होता है. इसके बाद नगर वधुवे बाबा को नृत्यंजलि अर्पित कर अपने मुक्ति व मोक्ष की कामना करती हैं.

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ऐसा कहा जाता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह ने प्राचीन नगरी काशी में भगवान शिव के स्वरूप बाबा मशाननाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इस मौके पर राजा मानसिंह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराना चाह रहे थे, लेकिन कोई भी कलाकार इस श्मशान में आने और अपनी कला के प्रदर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ. इसकी जानकारी काशी की नगरवधुओं को हुई तो वे स्वयं ही श्मशान घाट पर होने वाले इस उत्सव में नृत्य करने को तैयार हो गईं.

इस दिन से धीरे-धीरे यह उत्सवधर्मी काशी की ही एक परंपरा का हिस्सा बन गई। तब से आज तक चैत्र नवरात्रि की सातवीं निशा में हर साल यहां श्मशानघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. नगर वधु सुनीता भी बताती है कि हमलोग हर साल यहाँ बाबा के दरबार में नृत्य प्रस्तुत करने के माध्यम से यह मनोकामना करते हैं कि हमे अगले जन्म में इस नगर वधु के जीवन से बाबा मुक्ति प्रदान करे।

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