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पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज की अस्थियां गंगा में विसर्जित, परिवार वालों ने नम आंखों से दी विदायी

पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज की अस्थि कलश आज वाराणसी के अस्‍सी घाट के गंगा में विसर्जित की गयी. अस्थि कलश को उनके बड़े बेटे पं. जयकिशन महाराज ने गंगा में प्रवाहित किया.

वाराणसी में कथक सम्राट पद्म भूषण बिरजू महाराज का अस्थि कलश आज अस्‍सी घाट के गंगा में प्रवाहित किया गया. कलश विसर्जन के पूर्व अस्थि कलश को अंतिम दर्शन के लिए कबीरचौरा और सिगरा के कस्तूरबा नगर कॉलोनी स्थित नटराज संगीत अकादमी परिसर में रखा गया. यहां पंडित जी के शिष्यों ने उन्हें कथक नृत्य के जरिये भावभीनी श्रद्धांजलि दी. उनके नृत्य ने कथक कला के सम्राट को हमेशा स्मृतियों में कैद करते हुए अश्रुपूरित आंखों से नमन कर सदैव उनके दिखाए गए पद्चिन्हों पर चलने का प्रण लिया.

काशी के कलाकारों और पंडित बिरजू महाराज के प्रशंसकों की ओर से पुष्पांजलि और श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद अस्थि कलश को अस्सी घाट लाया गया. अस्सी घाट पर अस्थि कलश का वैदिक रीति रिवाज से पूजा करके, पंडित बिरजू महाराज के परिजनों की ओर से उसे गंगा में प्रवाहित किया गया. अस्थि कलश पंडित बिरजू महाराज के बड़े पुत्र पंडित जय किशन महाराज और शिष्या शाश्वती सेन के अलावा परिवार के अन्य लोग भी अस्थि विसर्जन के समय मौजूद रहें.

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पंडित बिरजू महाराज के बड़े पुत्र पंडित जय किशन महाराज ने भावुक होकर बड़ी ही मुश्किल से खुद को संभालते हुए कहा कि पंडित जी का साथ हमेशा हमलोगों के साथ जिंदगीभर चलता रहेगा. हमसभी परिजन, शिष्यों के साथ पंडित जी का आशीर्वाद युही जुड़ा रहेगा, कभी खत्म नहीं होगा. आज भी उनके होने का एहसास हमारे साथ ही है. हर कदम पर जो सिख मिली है, उसकी अनुभूति हमेशा ये एहसास कराती हैं कि वे हमसब के समीप यही बैठे हैं. चाहे नृत्य की सिख हो या संगीत की या फिर जीवन जीने की सिख हो सबकुछ पंडित जी के साथ अभी तक हमसे जुड़ा है, उनकी यादों के साथ, और ये कभी खत्म नहीं होने वाला है.

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उन्होंने कहा कि पंडित जी की बातों में हमेशा ज्ञान और उद्देश्यपूर्ण विचार सम्मिलित होते थे. आज उनके नहीं होने के बाद हमलोगों को यह एहसास हो रहा है कि कितने महत्वपूर्ण विचार उनके की ओर से दिये गए हैं. हम सबको जिसे आगे चलकर हमे पंडित जी के आशाओं के रूप में पूरा करना है. उनके दिखाए गए मार्ग पर चलकर हमसब उनके सपनों को साकार करेंगे. हम सब लोगों और उनके शिष्यों की ओर से अब ये जिम्मेदारी बनती है कि उनकी कला नृत्य संगीत को अब लखनऊ घराने की तर्ज पर प्रचारित प्रसारित करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करे.

उन्होंने आगे कहा कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी नृत्य कला को फैलाये, ताकि उन्हें आत्मा से एक सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके. पंडित जी नृत्य, कला, गायन, वाद्य कला, साहित्य, कविता हर एक विधा में निपुण थे. एक सम्पूर्ण कलाकार के रूप में पंडित बिरजू महाराज ने अपनी जिंदगी को जिया है. ऐसे कलाकार का दोबारा जन्म लेना अब मुमकिन नहीं है. उनकी स्थानपुर्ति कोई नहीं कर सकता.

रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी

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